Tuesday, November 05, 2024
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नहीं पूरी हुई बलबीर सिंह की आखिरी इच्छा, एक बार देखना चाहते थे साइ को 1985 में दी गई अपनी अनमोल धरोहरें

बलबीर सीनियर ने 1985 में साइ को खेल संग्रहालय के लिये ओलंपिक ब्लेजर ,दुर्लभ तस्वीरें और पदक दिये थे।

Reported by: Bhasha
Updated on: May 25, 2020 12:59 IST
Hockey legend Balbir Sr''s wish to see his lost memorabilia remains unfulfilled - India TV Hindi
Image Source : GETTY IMAGES Hockey legend Balbir Sr''s wish to see his lost memorabilia remains unfulfilled 

नई दिल्ली। आखिरी समय तक उन्हें इंतजार था कि 1985 में भारतीय खेल प्राधिकरण (साइ) को दी गई अनमोल धरोहरें वह एक बार फिर देख सकेंगे लेकिन पिछले आठ साल में तमाम प्रयासों के बावजूद महान हॉकी खिलाड़ी बलबीर सिंह की यह तमन्ना पूरी नहीं हो सकी। तीन बार के ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता बलबीर सीनियर का 96 वर्ष की उम्र में मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में सोमवार को निधन हो गया। भाषा ने पांच साल पहले बलबीर सीनियर के हवाले से यह खबर दी थी कि उन्होंने 1985 में साइ को ओलंपिक ब्लेजर ,दुर्लभ तस्वीरें और पदक दिये थे। उन्होंने तत्कालीन साइ सचिव को ये धरोहरें दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में प्रस्तावित राष्ट्रीय खेल संग्रहालय के लिये दी थी लेकिन वह संग्रहालय कभी बना ही नहीं। 

बलबीर सीनियर खुद इस मामले में कई खेलमंत्रियों और अधिकारियों से मिले और उनका नाती कबीर पिछले आठ साल से सैकड़ों ईमेल लिख चुका है लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। पिछले छह दशक से अधिक समय से बलबीर सीनियर करीबी सहयोगी रहे खेल इतिहासकार सुदेश गुप्ता ने भाषा को बताया,‘‘उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद बलबीर सीनियर खुद अपनी खोई धरोहरें पाने के लिये भाग दौड़ करने से पीछे नहीं हटे। दिल्ली से लेकर पटियाला तक हम हर जगह गए लेकिन कुछ नहीं हुआ।’’ 

उन्होंने कहा,‘‘पिछले आठ साल में वह खुद कई खेल मंत्रियों और सभी खेल सचिवों से मिले और सभी ने सिर्फ आश्वासन दिया। पूर्व खेलमंत्री सर्वानंद सोनोवाल 2014 में जब चंडीगढ उनके घर उनसे मिलने आये थे, तब भी हमने यह मसला उठाया था। उनके साथ आये साइ अधिकारियों ने मामले की पूरी जांच का आश्वासन दिया था।’’ 

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इन धरोहरों में ओलंपिक पदक नहीं थे लेकिन मेलबर्न ओलंपिक 1956 में कप्तान का ब्लेजर, टोक्यो एशियाड (1958) का रजत और करीब सौ दुर्लभ तस्वीरें थी। बलबीर सीनियर को लंदन ओलंपिक 2012 में जब आधुनिक ओलंपिक के महानतम 16 खिलाड़ियों में चुना गया तब वहां ओलंपिक म्युजियम में नुमाइश के लिये उनकी इन धरोहरों की जरूरत थी। तब पूछने पर साइ ने अनभिज्ञता जताई लेकिन जांच का वादा किया। बाद में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के वकीलों के समूह ने दिल्ली और राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला के साइ कार्यालयों में आरटीआई अभियान चलाया। 

इनसे पुष्टि हो गई कि बलबीर सीनियर ने ये धरोहरें साइ को दी थी। कबीर ने बताया था कि इस मामले में पहली आरटीआई नौ दिसंबर 2014 को दाखिल की गई थी जिसका जवाब पांच जनवरी 2015 को मिला जिसमें कहा गया था कि ऐसे किसी राष्ट्रीय खेल संग्रहालय की स्थापना का प्रस्ताव ही नहीं था और ना ही कोई सामान बलबीर सीनियर से मिला था। 

फिर 19 दिसंबर 2014 को दाखिल दूसरी आरटीआई का जवाब दो जनवरी 2015 को मिला जिसमें सामान मिलने की पुष्टि की गई थी। बाद की तमाम आरटीआई के जवाब भी विरोधाभासी रहे। बलबीर सीनियर की बेटी सुशबीर और हॉकीप्रेमियों ने भी लगातार यह मसला सोशल मीडिया पर भी उठाया लेकिन उनकी खोई धरोहरें नहीं मिल सकी। 

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