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ओलम्पिक में न खेल पाने का मलाल रहेगा: अनूप कुमार

साल 2006 में दक्षिण एशियाई खेलों में डेब्यू करने वाले अनूप 2010 और 2014 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे।

Reported by: IANS
Updated on: December 21, 2018 11:10 IST
अनूप कुमार- India TV Hindi
Image Source : TWITTER अनूप कुमार

पंचकूला (हरियाणा): कबड्डी के मैट पर 15 साल तक ताल ठोकने वाले पूर्व भारतीय कप्तान अनूप कुमार ने अपने करियर में वह सब कुछ हासिल किया जो एक बतौर कप्तान और खिलाड़ी करते हैं, लेकिन इस सबके बावजूद ऐसी भी चीज है जिसका हिस्सा न बन पाने का अनूप को हमेशा मलाल रहेगा। 36 साल के अनूप ने बुधवार को ही कबड्डी से संन्यास लेने की घोषणा की। साल 2006 में दक्षिण एशियाई खेलों में डेब्यू करने वाले अनूप 2010 और 2014 में एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा थे। 

कैप्टन कूल के नाम से मशहूर अनूप इस समय प्रो कबड्डी लीग (पीकेएल) के छठे सीजन में अभिषेक बच्चन की मालिकाना हक वाली टीम जयपुर पिंक पैंथर्स की कप्तानी कर रहे हैं। अनूप की कप्तानी में 2016 में भारतीय टीम ने ईरान को हराकर कबड्डी विश्व कप जीता था। उसी साल भारत ने दक्षिण एशियाई खेलों में भी गोल्ड मेडल जीता था। उन्हें 2012 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 

अनूप ने संन्यास के बाद कहा, "मैट पर उतरने के बाद मैंने वह सब हासिल किया जो एक खिलाड़ी और कप्तान करना चाहते हैं, लेकिन मुझे हमेशा इस चीज की सबसे ज्यादा कमी खलेगी कि मेरे खेलने के समय तक हमारी कबड्डी ओलम्पिक में शामिल नहीं हो पाई और मैं उस टीम में नहीं खेल पाया।"

उन्होंने कहा, "कबड्डी में जो कुछ हासिल करना चाहिए, मैंने वह सब किया। भारतीय टीम का कप्तान रहा, देश के लिए एशियाई खेलों में गोल्ड मेडल जीता, विश्व कप में अपनी टीम को चैम्पियन बनाया और अर्जुन पुरस्कार हासिल किया, लेकिन ओलम्पिक में न खेल पाने का मलाल हमेशा रहेगा।"

बोनस के बादशाह कहे जाने वाले अनूप ने यहां तक पहुंचने के अपने सफर को लेकर कहा, "यहां तक पहुंचना मेरे लिए तो क्या किसी भी खिलाड़ी के लिए आसान नहीं होगा। देश का प्रतिनिधित्व करना और एशियाई खेलों तथा विश्व कप में देश के लिए पदक जीतना, बहुत ज्यादा लंबा और मुश्किल सफर रहा है। करियर में मुश्किल से मुश्किल समय भी आया जो सबके जीवन में आता हैं। इसलिए इन मुश्किलों से लड़कर यहां तक पहुंचना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।"

अनूप पीकेएल के पहले सीजन में यू मुंबा के लिए 169 अंक लेकर लीग के सर्वोच्च स्कोरर रहे थे। उन्होंने अपनी कप्तानी में सीजन-2 में यू मुंबा को चैम्पियन बनाया था। उन्होंने पीकेएल के सभी सीजन में कुल मिलाकर 91 मैच खेलें हैं, जिसमें उनके नाम 596 अंक हैं। 

अनूप ने पीकेएल के शुरू होने से पहले और इसके बाद कबड्डी में आए बदलावों को लेकर कहा, "पीकेएल शुरू होने से पहले कबड्डी का मीडिया कवरेज नहीं था। इसलिए कबड्डी को कोई ज्यादा जानता नहीं था, लेकिन पीकेएल के बाद जब इसका प्रसारण हुआ, कवरेज बढ़ा तो फिर कबड्डी को न सिर्फ भारत में बल्कि पूरी दुनियाा में इतना प्रचार प्रसार हुआ।"

अनूप ने 2006 में कबड्डी में पदार्पण किया था। उन्होंने 2006 से पहले कबड्डी की स्थिति को लेकर कहा, "2006 से पहले सिर्फ अंतर्राष्ट्रीय टूनार्मेंट होते थे जैसे कि एशियाई खेल, चैम्पियनशिप और विश्व कप जैसे टूनार्मेंट होते थे, लेकिन इनकी कवरेज ज्यादा नहीं होती थी। न्यूज पेपरों में थोड़ा सा कहीं छप जाती थी। इस खेल का ज्यादा कवरेज नहीं होने के कारण लोगों को ज्यादा पता नहीं चलता था लेकिन अब पीकेएल के शुरू होने से हर कोई कबड्डी को जानने-पहचानने लगा है।" 

हरियाणा के गुड़गांव जिले के रहने वाले अनूप बताते हैं कि वे गांव के पहले शख्स हैं जो किसी खेल के लिए चुने गये। उनका कहना है कि गांव में कबड्डी और कई अन्य खेल काफी पहले से खेलते आ रहे हैं लेकिन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के लिए किसी भी खेल के लिए चुने जाने वाले वे पहले शख्स हैं।

यह पूछे जाने पर कि आपके कबड्डी में आने और इससे संन्यास लेने के बाद इसमें क्या बदलाव आया है, उन्होंने कहा, "भारत में कबड्डी में अब की तुलना में पहले ज्यादा प्रतिस्पर्धा नहीं थी। लीग के शुरू होने से युवाओं में प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है। भारत में प्रतिस्पर्धा का बढ़ना अच्छी बात है क्योंकि जितनी ज्यादा प्रतिस्पर्धा होगी उतनी ही ज्यादा अच्छी टीम बनेगी और भारत विश्व स्तर पर और ज्यादा मजबूत बनेगा।"

यह पूछने पर अब आपके बाद दूसरा कैप्टन कूल कौन है, अनूप ने बेंगलुरू बुल्स के रोहित कुमार का नाम लेते हुए कहा, "वह काफी शांत रहकर अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं।"

करियर के सबसे यादगार लम्हों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि भारतीय टीम की कप्तानी करना, विश्व कप जीतना और यू मुंबा को चैम्पियन बनाना, उनके लिए सबसे यादगार पल रहेगा। 

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