पूरी दुनिया में इस समय कोरोना वायरस के काले बादल मंडरा रहे हैं। जिसके चलते सभी गतिविधियों समेत खेल जगत में भी सन्नाटा सा पसर गया है। मगर इसी बीच तमाम बाधाओं को पार करते हुए 11 मार्च को भारतीय जैवलिन थ्रोअर ( यानि भाला फेंक ) एथलीट शिवपाल सिंह ने कमाल कर दिया। भारत से हजारों किलोमीटर दूर अफ्रीकी सरजमीं पर शिवापाल ने 85.47 मीटर की दूरी पर भाला फेंकते हुए टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए पहली बार अपना दावा ठोंका। जिसके चलते टोक्यो जाने वाले वो नीरज चोपड़ा के बाद दूसरे भारतीय जैवलिन थ्रोअर खिलाड़ी बने। इस तरह अपने शानदार प्रदर्शन के बाद शिवपाल ने इंडिया टी.वी. से ख़ास बातचीत करते हुए बताया कि अपने जीवन में कितने उतार-चढाव को पार करते हुए उन्होंने काशी नगरी से टोक्यो तक का रास्ता जैवलिन के सहारे तय किया।
साल 2015 से जैवलीन थ्रो में अपना नाम बनाने वाले शिवपाल ने टोक्यो ओलंपिक 2020 के लिए क्वालीफाई करने के बाद कहा, "टोक्यो ओलंपिक के क्वालिफिकेशन पड़ाव को पार करके काफी अच्छा लग रहा है। मुझे आत्मिवश्वास था कि मैं कर जाऊँगा क्योंकि पिछले काफी दिनों से मैं यूरोप के टूर्नामेंट में अच्छा कर रहा था। जिसके चलते मुझे इस बात का अहसास था।"
शिवपाल ने इस प्रतियोगिता में 85.47 मीटर का थ्रो किया जो की उनके बेस्ट थ्रो से तुलना करें तो कम दूरी का है। इससे पहले भी शिवपाल ने बीते साल दोहा में आयोजित एशियाई चैम्पियनशिप में 86.23 मीटर की दूरी नापी थी, जो उनका पर्सनल बेस्ट है। इस तरह साउथ अफ्रीका में ज्यादा दूरी तय ना कर पाने का कारण जब शिवपाल से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "इस टूर्नामेंट पर मेरा ज्यादा फोकस नहीं था क्योंकि हमारा प्लान 17 मार्च का था लेकिन सबने कहा तो इसमें सिर्फ साधारण तौर पर अभ्यास करके मैंने थ्रो किया। जबकि मेरी पीठ में भी समस्या थी। इसके बाद भी मैंने क्वालिफिकेशन मार्क ( 85.00 मीटर ) पार किया जिससे खुश हूँ।"
शिवपाल ने टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालिफिकेशन तो हासिल कर ली है। मगर उन्हें पदक जीत कर देश का नाम रौशन करना है तो अभी दिल्ली थोड़ी दूर नजर आती है। क्योंकि अगर उन्हें ओलंपिक की प्रतिस्पर्धा में कोई पदक हासिल करना है तो जैवलिन थ्रो में लगभग 90 मीटर के आस-पास या उससे अधिक का थ्रो हासिल करना होगा। तब जाकर वो ओलंपिक जैसे खेलों के महाकुम्भ में पदक जीत इतिहास रच सकते हैं।
हलांकि इस बात से शिवपाल भी वाकिफ हैं और उन्होंने 90 मीटर की दूरी के लिए क्या करना है इसके लिए बताते हुए कहा, "तकनीक में जो कमी थी उसमें मैंने सुधार किया हो और मैं अभी सिर्फ ब्लॉक पर ध्यान दे रहा हूँ। जिसके चलते अगर मैंने ब्लॉक हासिल कर लिया तो मैं निश्चित रूप से 90 मीटर की दूरी पार सकता हूँ। इतना ही नहीं आगामी फेडरेशन कप में मैं 90 मीटर से अधिक का थ्रो जरूर फेंकूंगा।"
शिवपाल सिंह को अपने करियर में पिछले 4 सालों में कई बार चोटों का सामना करना पड़ा है। जिसके चलते वो नीरज चोपड़ा से भी काफी पीछे निकल गए थे। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और उनके परिवार से मिली जैवलिन थ्रो की कला को उन्होंने कभी जाने नहीं दिया। शिवपाल ने अपने जैवलिन थ्रो के सफर की शुरुआत को याद करते हुए कहा, " मैं काशी नगरी से हूँ और यहाँ जो भी एक तरह से आता है तो उसके भाग्य खुल जाते हैं। तो मैं काफी भाग्यशाली हूँ कि भारत और उसके बाद बनारस से आता हूँ। मेरे परिवार में सभी जैवलिन थ्रो करते हैं। मेरा भाई और मेरे चाचा अपने जमाने में राष्ट्रीय जैवलिन थ्रोअर रहे हैं। जग मोहन सिंह चाचा के कारण ही मैं आज यहाँ तक पहुंचा जो मुझे बनारस से निकालकर दिल्ली तक लाए थे।"
भारत में जब भी जैवलीन थ्रोअर का नाम लिया जाता है तो सबसे पहले नीरज चोपड़ा का नाम लोगो के जहन में आता है। इस तरह अब नीरज के बराबर दावेदारी पेश करने वाले शिवपाल ने साउथ अफ्रीका में टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करके अपनी एक अलग पहचान बनाई है। इतना ही नहीं अब शिवपाल ओलंपिक में कमाल करने के लिए अपनी तैयारियों को भी दुगने रूप से बढाना चाहेंगे। इस तरह शिवपाल से जब नीरज को लेकर प्रतिस्पर्धा के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "ओलंपिक में तो हम दोनों एक साथ खेलेंगे ही लेकिन उससे पहले फेडरेशन कप ( अप्रैल माह ) में भी हम दोनों एक साथ मैदान में दिखाई देंगे।"
बता दें कि बीते महीने नीरज ने भी साउथ अफ्रीका में 87.86 मीटर के साथ पहली बार ओलंपिक कोटा हासिल किया था। जबकि भारत के तीसरे जैवलिन थ्रोअर अर्शदीप सिंह टोक्यो ओलंपिक का कोटा नहीं हासिल कर सके। अर्शदीप ने दक्षिण अफ्रीका में 75.02 मीटर की दूरी नापी। ओलंपिक खेलों का आयोजन 24 जुलाई से 9 अगस्त तक जापान की राजधानी टोक्यो में होना है। ऐसे में सभी भारतीयों को इस बार अपने दोनों जैवलिन थ्रोअर शिवपाल और नीरज से पदक की काफी उम्मीदें हैं।