नई दिल्ली। आईजी स्टेडियम के केडी जाधव हाल में इन दिनों दुनिया भर की महिला मुक्केबाजों का जमावड़ा लगा हुआ है जिसमें भारतीय सुपरस्टार एम सी मैरी कॉम समेत ऐसी कई धुरंधर शामिल है जो घर के अलावा रिंग में जलवा बिखेकर अपने देशों का नाम इतिहास में दर्ज करा रही हैं। शानदार मैरी कॉम हालांकि इन सभी में एकमात्र ऐसी मुक्केबाज हैं जो पांच बार विश्व चैम्पियन बनने का गौरव हासिल कर चुकी हैं और छठी बार यह कारनामा करने की कोशिश में जुटी हैं।
लंदन ओलंपिक की यह कांस्य पदकधारी कई मुक्केबाजों के लिये प्रेरणास्रोत भी है और पैंतीस साल की उम्र में उनका फिटनेस का स्तर शानदार है। अपार अनुभव की धनी मैरी कॉम ने हाल में गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किया था। उनके नाम एशियाई चैम्पियनशिप में भी पांच स्वर्ण और एक रजत पदक हैं।
मैरी कॉम ने मां बनने के बाद वापसी करते हुए कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में जीत का परचम लहराया। उन्हीं की तरह डेनमार्क की वाईवोने बाएक रासमुसेन भी दो बच्चों के जन्म के बाद वापसी कर रही हैं जबकि उन्होंने 2008 में खेल को अलविदा कह दिया था, उन्होंने 2014 में ट्रेनिंग शुरू करना शुरु किया।
फिनलैंड की मीरा पोटकोनेन ने 2016 रियो ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक अपने नाम किया था और अस्ताना में हुई पिछली एआईबीए महिला विश्व चैम्पियनशिप में भी वह तीसरे स्थान पर रही थी। गत यूरोपीय चैम्पियन मीरा की दो बेटिया हैं और उनकी अनुपस्थिति में उनकी देखभाल उनके पति करते हैं। मीरा ने घर और रिंग की जिम्मेदारी संभालने के बारे में यहां आई जी स्टेडियम में कहा, ‘‘जब मैं टूर्नामेंट के लिये बाहर होती हूं तो मेरी दोनों बेटियों की देखभाल मेरे पति करते हैं। ’’
मीरा ने दूसरी बेटी के जन्म के बाद मोटापे को कम करने के लिये मुक्केबाजी करना शुरू किया था लेकिन धीरे धीरे यह खेल उनका जुनून बनता गया। उन्होंने कहा, ‘‘मां बनने से मेरा मुक्केबाजी करियर प्रभावित नहीं हुआ। जब बेटियां छोटी थीं, तब थोड़ी मुश्किल आती थी लेकिन उनके बड़े होने के बाद घर और मुक्केबाजी के बीच अच्छा संतुलन बन गया है। ’’
डेनमार्क की रासमुसेन 64 किग्रा लाइट वेल्टरवेट में खेलती हैं, उन्होंने 2005 में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता था। वह अपने बच्चों का स्कूल का काम करवाती हैं, दिन में दो बार ट्रेनिंग करती हैं और साथ ही अपने पारिवारिक कृषि व्यवसाय में हाथ बंटाती हें। मुक्केबाजी के लिये खुद को फिट रखने के लिये हर दिन अपने मुक्केबाजी क्लब के लिये डेढ़ घंटे ड्राइविंग करती हैं।
कोलंबिया की रियो ओलंपिक की कांस्य पदकधारी इनग्रिट वालेंसिया ने 2006 में अपने बेटे के जन्म के बाद दो साल के लिये ट्रेनिंग छोड़ दी थी लेकिन वापसी के बाद उन्होंने ओलंपिक में कांसे के अलावा इस साल दक्षिण अमेरिकी खेलों और अमेरिकी एंड कैरेबियन खेलों में भी जीत हासिल की। तीस साल की यह मुक्केबाज फ्लाईवेट 51 किग्रा में खेलती है।
फिलीपींस की 31 साल की मुक्केबाज जोसी गाबुको ने 2012 विश्व चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीता था और यह उनके देश के इस प्रतियोगिता में इतिहास में एकमात्र स्वर्ण पदक है। उनका 11 साल का बेटा है जिसने एक साक्षात्कार में कहा था, ‘‘प्लीज मेरी मां को मत मारना। ’’