Monday, November 18, 2024
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पिता ने लंगोट बेचकर बेटी दिव्या को बनाया राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन, जानें संघर्ष की कहानी

संघर्ष, मेहनत और कामयाबी की मिसाल पेश की है राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन दिव्या काकरण

Written by: India TV Sports Desk
Published on: November 19, 2017 13:38 IST
राष्ट्रीय कुश्ती...- India TV Hindi
राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन दिव्या काकरण

नई दिल्ली: कहते हैं प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती है सिवाय मेहनत की. लेकिन साथ ही अगर आसपास के लोगं का साथ न मिले तो कई बार ये प्रतिभा गुमनामी मके अंधेरे में गुम हो जाती है. हाल ही में संघर्ष, मेहनत और कामयाबी की मिसाल पेश की है राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन दिव्या काकरण ने.

आज दिव्या काकरण को हर कोई जानता है लेकिन शायद ही लोग इनके संघर्ष से वाक़िफ़ होंगे. एक लंगोट बेचने वाली की बेटी कैसे एक अखाड़े तक पहुंची इसकी कहानी बहुत कम लोग जानते होंगे. आपको बता दें कि दिव्या के पिता लंगोट बेचते थे. दरअसल दिव्या को सफल बनाने के पीछे उनके पिता सूरज का अहम रोल हैं.

नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में बार सीनियर लेवल का स्वर्ण पदक जीतने वाली दिव्या की कहानी बहुत ही प्रभावित करने वाली है. दिव्या के पिता लंगोट बेचते थे और सबसे दिलचस्प बात यह है कि जब भी दिव्या किसी जगह कुश्ती खेलने जाती थी, उनके पिता मैदान के बाहर लंगोट बेचा करते थे ताकि घर चल सके. पिता अपनी बेटी के सपनों को पूरा करने के लिए अखांड़े के बाहर जितने भी लोग जमा होते थे उन्हें लंगोट बेचते थे। पिता की मेहनत रंग लाई और देखते देखते दिव्या भारत की होनहार युवा रेसलर बन गई हैं.

बेटी की कामयाबी पर बात करते हुए दिव्या के पिता ने कहा कि मैंने पिछले कई सालों में मैंने ऐसे कई हसीन पल मिस किया हैं जब मेरी बेटी कुश्ती के मैदान में विजेता बनी है क्योंकि उस वक्त मैं मैदान के बाहर बैठकर लंगोट बेच रहा होता था. मेरी बेटी के कमाए हुए पैसे से ही हमारा घर चलता है.

 राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन दिव्या काकरण अपने पिता के साथ

राष्ट्रीय कुश्ती चैंपियन दिव्या काकरण अपने पिता के साथ

बता दें कि शुक्रवार को नेशनल कुश्ती चैंपियनशिप में मेडल जीतने के बाद घर वापस लौटी दिव्या के वहां के रहने वाले लोगों ने स्वागत किया. पूर्वी दिल्ली के गोकुलपुरी में दो कमरों के एक मकान में रहने वाली दिव्या को उसके पिता ने पुरुष प्रभुत्व वाले इस खेल में इसलिए डाला क्योंकि घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा किया जा सके.

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