विश्व बैडमिंटन फेडरेशन (बीडब्ल्यूएफ) कोविड-19 महामारी के कारण अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में अगले साल सिंथेटिक शटल के इस्तेमाल की अपनी योजना से पीछे हट सकता है। इस साल जनवरी में इस वैश्विक संस्था ने 2021 से सभी स्तरों के मान्यता प्राप्त अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में सिंथेटिक पंख वाली शटल के उपयोग को मंजूरी दी थी। वर्तमान में उपयोग में आने वाली शटल आमतौर पर हंस या बत्तख के पंख से बनी होती हैं।
योनेक्स सनराइज (भारत) के प्रमुख विक्रम धर का हालांकि मानना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण इसे लागू करने में एक और साल लग सकता है। कोविड-19 महामारी के कारण लगभग सभी बैडमिंटन टूर्नामेंटों को स्थगित कर दिया है, जिससे उद्योग को बड़ा नुकसान हुआ है।
धर से जब सिंथेटिक शटल के 2021 में उपयोग के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पीटीआई से कहा, ‘‘ इसमें समय लगेगा, इसमें एक और साल लग सकता है।’’
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योनेक्स के तकनीकी सहयोग से विकसित सिंथेटिक शटल का बीडब्ल्यूएफ ने अनुमोदन किया था। इसे पक्षियों के पंखों के बजाय प्लास्टिक से बनाया गया है। कंपनी ने इस परियोजना के विकास के दौरान विभिन्न ‘प्रोटोटाइप’ का परीक्षण भी किया। भारतीय बैडमिंटन टीम के मुख्य को पुलेला गोपीचंद ने भी माना कि अगले साल सिंथेटिक शटल का इस्तेमाल करना संभव नहीं होगा।
उन्होंने हालांकि नयी तकनीक को अपना समर्थन दिया। गोपीचंद ने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि अगले ओलंपिक में इसका इस्तेमाल हो सकता है। मुझे हालांकि नहीं पता कि इसे शुरू करना कितना आसान होगा। मुझे लगता है कि हमें दीर्घकालिक रूप से सिंथेटिक शटल का इस्तेमाल करना होगा।’’
इस पूर्व भारतीय खिलाड़ी ने कहा, ‘‘ मुझे पता है कि यह इस समय एक समस्या है लेकिन हमें प्राकृतिक पंख के विकल्प की आवश्यकता है। हमने ‘एचवनएनवन’इको देखा है। जब भी सिंथेटिक शटल का इस्तेमाल होगा यह खेल को समग्र रूप से मदद करेगा। ’’
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कई खिलाड़ियों और कोचों ने ऐसी शटल की गुणवत्ता पर सवाल उठाये हैं लेकिन गोपीचंद ने कहा कि शुरू में इससे खिलाड़ियों को परेशानी होगी। उन्होंने कहा, ‘‘खिलाड़ियों को शुरू में परेशानी होगी। इससे खेल में कुछ बदलाव आयेगा लेकिन इससे हमारे (देश के) खिलाड़ियों को फायदा होगा या नुकसान यह पता नहीं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘परेशानियों के बाद भी मैं सिंथेटिक शटल का समर्थन करूंगा क्योंकि जब हम मूल्य निर्धारण और नियमों को देखते है तो प्राकृतिक पंख दीर्घकालिक समस्या का हल नहीं है। इसलिए हमें किसी समय इसे स्वीकार करना होगा।’’