नई दिल्ली में 2010 में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण और 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में कांस्य पदक जीतने वाले अनुभवी भारतीय मुक्केबाज मनोज कुमार ने कहा है कि वो वादा करते हैं कि इस बार वो स्वर्ण पदक के साथ एशियाई खेलों से लौटेंगे। 32 साल के मनोज 2007 उलानबतार में हुए एशियाई एमेच्योर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप और 2013 में अम्मान में हुए एशियाई एमेच्योर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीत चुके हैं। इसके अलावा वो 2016 में गुवाहाटी में हुए दक्षिण एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक अपने नाम किए थे। मनोज ने कहा, "मुझे विश्वास है कि इस बार मैं अपने पदक का रंग बदलने के कामयाब रहूंगा और इसे लेकर मैं पूरी तरह से सकारात्मक हूं। हम सकारात्मक सोच के साथ ट्रेनिंग भी करते हैं और सब मिलजुल कर एक दूसरे की मदद करते हैं। इससे टीम के खिलाड़ियों का मनोबल ऊंचा रहता है। टीम में एकता और मेल-मिलाप के कारण ही हम अच्छा प्रदर्शन कर पाते हैं।"
एशियाई खेलों में मनोज 69 किलोग्राम भारवर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। 10 सदस्यीय मुक्केबाजी दल में वह एकमात्र ऐसे खिलाड़ी हैं, जिनके पास एशियाई एमेच्योर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में दो पदक हैं। वो लंदन ओलम्पिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। 2011 में वर्ल्ड एमेच्योर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में क्वार्टर फाइनल तक पहुंचने वाले भारतीय मुक्केबाज ने तैयारियों को लेकर कहा, "मेरी तैयारी काफी अच्छी है। लगभग हर बार मैं पदक के नजदीक जाकर चूक जाता हूं। लेकिन मैं आप सबको विश्वास दिलाता हूं कि मैं इस बार पदक के साथ स्वदेश लौटूंगा और आप सब को स्वतंत्रता दिवस की खुशियां दूंगा।"
ये पूछे जाने पर कि पदक का रंग बदलने के लिए उन्हें कड़ी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ेगा, अनुभवी मुक्केबाज ने कहा, " इन्ही चुनौतियों से निपटने के लिए हम कदम दर कदम हर टूर्नामेंट की तैयारी करते हैं। एशियाई खेलों से पहले हमने एक सुनियोजित तरीके से राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी की थी, जिसमें हम सफल रहे। इसी तरह ही हमने एक रणनीति के साथ एशियाई खेलों की तैयारी की है। इसके बाद हम विश्व चैम्पियनशिप और ओलम्पिक की भी तैयारी करेंगे।"
एशियाई खेलों का 18वां संस्करण 18 अगस्त से शुरू होगा, जिसमें मुक्केबाजी की स्पर्धाएं 24 अगस्त से शुरू होंगी और एक सितंबर तक चलेंगी। उन्होंने कहा, "दुनिया में एशिया की पांच-छह टीमें मुक्केबाजी में काफी मजबूत है और भारत उनमें से एक हैं। सभी मुक्केबाज शानदार फॉर्म में चल रहे हैं। लेकिन मेरा मानना है कि खेल में हर किसी का एक दिन होता है और हमें उम्मीद है कि एशियाई खेलों में भी हमारा दिन होगा और हम वहां ज्यादा से ज्यादा पदक जीतेंगे।"
राष्ट्रमंडल खेलों में हिस्सा लेने के बाद मनोज ने अपनी चोटों का इलाज करवाया है और इसके बाद फिर वो ट्रेनिंग पर लौटे हैं। उन्होंने कहा, " मेरी ग्रोइन की चोट थी। लेकिन ट्रेनिंग पर लौटने से पहले मैंने इसका इलाज करवाया है और फिर मैं एशियाई खेलों के लिए तैयारी में लौटा हूं।" हरियाणा में कैथल जिले के रहने वाले मनोज ने कहा, "टीम के सभी खिलाड़ियों ने मिलजुल कर काफी अच्छी तैयारी की है और अपनी तकनीक में सुधार किया है। हमें उम्मीद है कि हम जकार्ता में अपनी तकनीक पर खड़ा उतरेंगे और अच्छा प्रदर्शन करेंगे।"
ये पूछने पर कि 2020 में ओलम्पिक होने वाले हैं और उस लिहाज से इस प्रतियोगिता को कितना अहम मानते हैं, मुक्केबाज ने कहा, "एशियाई खेलों से सभी मुक्केबाजों का एक विश्वास जुड़ा हुआ है। अगर हम इसमें अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो ओलम्पिक के लिए हमारी उम्मीद जगेगी। इससे खिलाड़ियों का मनोबल बढ़ेगा ताकि वो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक के लिए लड़े।"
मुक्केबाजी में आने के कारणों के बारे में पूछे जाने पर मनोज ने कहा, "मेरे बड़े भाई राजेश कुमार मुक्केबाज थे और अब वो कोच हैं। वो एक अच्छे मुक्केबाज रह चुके हैं और उन्हीं के प्रदर्शन से प्रेरित होकर मैंने इस खेल में आने का फैसला किया। उन्हीं को देखकर मैंने मुक्केबाजी सीखी है। उनका सपना है कि मैं देश के लिए स्वर्ण जीतूं और मुझे खुशी है कि मैं उनके सपने को पूरा कर रहा हूं।"