जकार्ता। रियो ओलंपिक में घुटने में लगी चोट के कारण सफर बीच में थमने के बाद विनेश फोगाट के चहरे पर दर्द और आंसू दोनों झलके थे और आज भी एशियाई खेलों में महिला कुश्ती के 50 किग्रा वर्ग में स्वर्ण जीतने के बाद विनेश की आंखें नम थीं लेकिन अब इन आंसुओं का अलग ही मतलब था। यह आंसू इतिहास रचने की खुशी थी जो विनेश ने अपने नाम किया।
इस पदक के साथ विनेश एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली भारत की अब तक की पहली महिला पहलवान बन गयीं। दो साल पहले ब्राजील के रियो डि जिनेरियो में हुए ओलंपिक खेलों में एक मैच के दौरान विनेश चोटिल हो गयी थीं जिसके बाद उन्हें वहां से स्ट्रेचर पर ले जाया गया। विनेश इसके बाद खेल से दूर रही और चोट से उबरने में लगी रही।
विनेश को शारीरिक चोट भले ही लगी हो लेकिन मानसिक रूप से उन्होंने खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया और नये सिरे से शुरूआत करने की ठानी।
हरियाणा की 23 साल की खिलाड़ी ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद नम आंखों के साथ कहा, ‘‘मेरा लक्ष्य स्वर्ण पदक जीतना था। मैंने एशियाई स्तर पर तीन-चार रजत पदक जीते हैं। इसलिए इस बार मैं स्वर्ण जीतने का दृढ़ निश्चय बनाकर आयी थी। मेरे शरीर ने भी मेरा साथ दिया। मैंने कड़ा प्रशिक्षण लिया था और ईश्वर ने भी मुझ पर कृपा दिखायी। आज सब कुछ मेरे अनुकूल रहा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘चोटें एक खिलाड़ी के करियर का हिस्सा होती हैं। यह भावनात्मक और शारीरिक दोनों रूप से मुश्किल होता है। लेकिन तमाम चीजों को पीछे छोड़ते हुए हाल में कुछ अच्छे पदक जीते। किसी ने कहा है कि एक खिलाड़ी चोट के बाद मजबूत होकर उभरता है और मुझे लगता है कि सच में मैं पहले से ज्यादा मजबूत हुई हूं।’’
और किस्मत का ही खेल था कि विनेश ने एशियाई खेलों में अपने पहले मैच में उसी चीनी खिलाड़ी यनान सुन को हराया जिसके खिलाफ मुकाबले में वह रियो में चोटिल हुई थीं। विनेश ने कहा कि उन्हें हमेशा लगता रहा कि वह सुन से ज्यादा मजबूत खिलाड़ी हैं और यह बात साबित करने का आज दिन था।
विनेश ने कहा, ‘‘दबाव था लेकिन यह साबित करने का कि मैं असल में उससे ज्यादा मजबूत हूं। मैं आज यह साबित कर देना चाहती थी क्योंकि मैं पूर्व में उससे तीन बार हार चुकी हूं। और आज मैंने यह कर दिखाया।’’ विनेश को भारत के मानसिक रूप से सबसे मजबूत पहलवानों में से एक माना जाता है और उन्होंने कहा कि यह नैसर्गिक है।
इस साल की शुरूआत में गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण जीतने वाली खिलाड़ी ने कहा, ‘‘मैं इस पर काम करती हूं लेकिन मैं बचपन से ही ऐसी हूं। मैं हमेशा से मजबूत रही हूं। मैं जीवन में जोखिम उठाती हूं और उसका फायदा मिलता है। मैं खुद में भरोसा करती हूं। मैं वहां लगा कि ऐसा कुछ नहीं है जो मैं नहीं कर सकती हूं।’’ यह पूछे जाने पर कि क्या वह किसी पहलवान को अपना आदर्श मानती हैं, विनेश ने ना में जवाब दिया।
हालांकि विनेश ने कहा कि सुशील कुमार के साथ बातचीत का उन पर सकारात्मक असर पड़ता है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं सुशील को काफी ध्यान से सुनती हूं। वह जो भी सलाह देते हैं, मैं उस पर ध्यान देती हूं। 2014 में जब मैंने इंचिओन (एशियाई खेल) में कांस्य जीता था, उन्होंने कहा था ‘चिंता मत करो, जो होता है अच्छे के लिए होता है। शायद तुम्हारे लिए आगे इससे कुछ बड़ा हो।’ मुझे उनकी यह बात हमेशा याद रहती है।’’