Highlights
- 1905 को यूपी के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में हुआ था मेजर ध्यानचंद का जन्म
- 1922 में भारतीय सेना के साथ जुड़ गए थे ध्यानचंद
- मेजर ध्यानचंद को जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने दी थीं कई लुभावनी पेशकश
National Sports Day: मेजर ध्यानचंद (Major Dhyanchand) भारतीय खेल के इतिहास का ऐसा नाम हैं जिन्हें शायद ही कोई हो जो नहीं जानता हो। देश में हर साल 29 अगस्त को राष्ट्रीय खेल दिवस मनाया जाता है। यह दिन हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। मेजर ध्यानचंद ने अपनी हॉकी स्टिक से पूरी दुनिया में डंका बजाया था। उन्होंने भारत को लगातार तीन ओलंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जिताया था। उनके खेल और जज्बे को देख जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर भी उनसे प्रभावित हो गए थे।
मेजर ध्यानचंद कैसे बने हॉकी के जादूगर
मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद (अब प्रयागराज) जिले में हुआ था। अपनी शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1922 में एक सैनिक के रूप में भारतीय सेना की सेवा करने का प्रण लिया। इसके बाद वह हॉकी खेलने के लिए सूबेदार मेजर तिवारी से प्रेरित हो गए। ध्यानचंद ने उन्हीं की देखरेख में हॉकी खेलना शुरू किया। हॉकी में उनके शानदार प्रदर्शन के कारण 1927 में उन्हें 'लांस नायक' के रूप में नियुक्त किया गया। फिर 1932 में नायक और 1936 में सूबेदार के रूप में भी वह पदोन्नत किए गए। इसी वर्ष वह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान बने। सेना में भी वह इसके बाद लेफ्टिनेंट, फिर कैप्टन और आखिर में मेजर के रूप में पदोन्नत हुए।
जर्मनी की चाल को ध्यानचंद ने किया विफल
दरअसल एक वाकया है भारत को स्वतंत्रता मिलने से 11 साल पहले का। 15 अगस्त 1936 के दिन ध्यानचंद की अगुआई में भारतीय हॉकी टीम ने करिश्माई प्रदर्शन करते हुए बर्लिन ओलंपिक फाइनल में जर्मनी को हराकर गोल्ड मेडल जीता था। इस मैच में हिटलर मैदान पर मौजूद थे और जर्मनी की हर हाल में जीत के लिए मैदान को गीला कर दिया गया ताकि भारतीय खिलाड़ी हल्के जूतों में खेल नहीं पाएं।
बर्लिन ओलंपिक के फाइनल में हाफ टाइम तक भारतीय खिलाड़ी काफी परेशानियों में दिखे। लेकिन ब्रेक के बाद मेजर ध्यानचंद ने कुछ ऐसा किया जिसे देखकर स्टेडियम में मौजूद सभी दर्शकों के साथ खुद हिटलर भी चौंक गए। ध्यानचंद ने ब्रेक के बाद बिना जूतों के मैदान पर उतरने का फैसला किया। परिणामस्वरूप भारत ने जर्मनी को 8-1 से रौंदकर गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया।
हिटलर भी हुए 'दद्दा' से प्रभावित !
मेजर ध्यानचंद को प्यार से 'दद्दा' कहकर भी संबोधित किया जाता था। बर्लिक ओलंपिक फाइनल में हिटलर मेजर ध्यानचंद के खेल से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने दद्दा को जर्मनी कि नागरिकता ऑफर की और अपनी आर्मी में फील्ड मार्शल के पद की भी पेशकश की। ओलंपिक के बाद हिटलर ने उन्हें डिनर पर आमंत्रित किया था। हिटलर ने उन्हें जर्मनी की तरफ से हॉकी खेलने का प्रस्ताव भी दिया था लेकिन मेजर ध्यानचंद ने इसे ठुकरा दिया और कहा कि, उनका देश भारत है और वह उसके लिए ही खेलेंगे। यह पल भारत के लिए सबसे ज्यादा गर्व का पल था।
मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियां
मेजर ध्यानचंद ने अपने करियर में 400 से अधिक गोल किए, जबकि अपने पूरे करियर में उनके नाम लगभग 1,000 गोल दर्ज हैं। भारत सरकार ने ध्यानचंद को 1956 में देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। वहीं महान खिलाड़ी को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली भारत सरकार ने 2012 में उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया। तब से आज तक उनके जन्मदिन यानी 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है।