टीम इंडिया के शानदार लेग स्पिन गेंदबाज युजवेंद्र चहल ने बताया कि कैसे उन्हें बचपन में शतरंज के खेल को छोड़कर क्रिकेट में हाथ आजामना पड़ा और उसके बाद फिर क्रिकेट खेल में ही अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया। टीम इंडिया के लिए गेंदबाज बनने से पहले चहल शतरंज के काफी मंझे हुए खिलाड़ी थे। इस खेल में उन्होंने ना सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर बल्कि भारत के लिए वर्ल्ड चेस चैम्पियनशिप में भी हिस्सा लिया है। इस तरह शतरंज और क्रिकेट के दोहराए में फंसने के बाद चहल ने बताया कि कैसे उन्होंने फिर संतुलन बनाने के लिए किसी एक खेल को चुना।
चहल ने स्टार स्पोर्ट्स के शो माइंड मास्टर में कहा, "मैंने 1998 में चेस में अपना पहला राष्ट्रीय मुकाबला खेला था। उस समय मैं क्रिकेट भी खेला करता था। इस तरह आप दोनों खेल एक समय पर नहीं खेल सकते थे। शतरंज के लिए आपको 10 से 12 घंटे की ट्रेनिंग चाहिए उसके बाद फिर क्रिकेट के लिए भी आपको 5 से 6 घंटे की ट्रेनिंग चाहिए होती है। तो इस तरह जब मैं विश्वकप खेलकर वापस आया उसके बाद मैंने पापा से कहा कि मैं क्रिकेट पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहता हूँ।"
कुछ रिपोर्ट का भी कहना है कि शतरंज में विश्वकप खेलने के बाद चहल को कोई भी प्रायोजक नहीं मिला था जिसके बाद उन्होंने क्रिकेट में ही अपन करियर बनाना पसंद किया था। हलांकि इन सबसे इतर चहल इस समय टीम इंडिया के लिमिटेड ओवर्स फॉर्मेट में एक शानदार लेग स्पिन गेंदबाज की भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कई मैच टीम इंडिया को अपनी गेंदबाजी से जीताए भी हैं। इतना ही नहीं चहल का ये भी मानना है कि क्रिकेट और शतरंज दोनों खेल में संयम रखना ही आपकी सफलता की कुंजी है।
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जिसके बारे में उन्होंने कहा, " शतरंज के खेल में आपको संयम रखना होता है क्योंकि मैच 6 से 7 घंटे तक भी जा सकता है। आपको एक ही जगह पर बिना कुछ बोले बैठे रहना पड़ता है। इसी तरह क्रिकेट में भी कभी - कभी आप अच्छी गेंदबाजी करते हैं लेकिन आपको विकेट नहीं मिलते हैं। तो इसमें भी आपको संयम से काम लेते हुए दिमाग में एक बात रखनी होती है कि आप अच्छी गेंदबाजी कर रहे हैं तो समय दीजिये आपको विकेट जरूर मिलेंगे।"
बता दें कि चहल अभी तक टीम इंडिया के लिए 52 वनडे और 42 अंतराष्ट्रीय टी20 मैच खेल चुके हैं। ज्सिमें उनके नाम क्रमशः 91 व 55 विकेट शामिल हैं।