नई दिल्ली: 1983 में भारत को पहला क्रिकेट विश्व कप ख़िताब दिलाकर इतिहास रचने वाले भारत के कप्तान कपिल देव के लिए कप्तानी की राह इतनी आसान नहीं थी जितना हम सोचते हैं. दरअसल उनकी कप्तानी का संबंध न तो उनकी क़ाबिलियत से था और न ही क्रिकेट की उनकी समझ से. इसका संबंध था अंग्रेज़ी की उनकी समझ से.
कपिल देव ने एक समारोह में पुरानी यादों को ताज़ा करते हुए ने कहा कि अंग्रेज़ी न जानने की वजह से लोगों ने उनके कप्तान होने पर सवाल उठाए थे. दिग्गज ऑलराउंडर ने कहा, 'मैं किसान परिवार से था जबकि मेरे साथी खिलाड़ी संभ्रांत परिवारों से थे. मेरी पारिवारिक पृष्ठभूमि मेरे जीवन का हिस्सा थी जो ज़ाहिर है मेरे व्यवहार में भी नजर आता था.'
कपिल ने कहा, "हमने जब खेलना शुरू किया, तो ज़्यादातर लोग अंग्रेज़ीदां थे, वे हमेशा हिंदी में नहीं अंग्रेज़ी में बात करते थे. मुझे जब कप्तान बनाया गया, तो लोगों ने कहा कि मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती और मुझे कप्तान नहीं होना चाहिए. इसके जवाब में मैंने कहा कि आप अंग्रेज़ी में बात करने के लिए किसी को ऑक्सफोर्ड से ले आइए, मैं क्रिकेट खेलना जारी रखूंगा.'
1983 विश्व कप के सफर के बारे में कपिल ने कहा कि शुरू में हममें आत्मविश्वास की कमी थी, लेकिन कुछ मैचों में मिली जीत ने हमारे आत्मविश्वास को मज़बूत कर दिया. कपिल ने कहा, 'हमने 1983 में शानदार प्रदर्शन किया. यह सच है कि हम मानसिक तौर पर मज़बूत नहीं थे, लेकिन कुछ मैच जीतने के बाद हमारा आत्मविश्वास बढ़ गया. 1983 में आखिरकार हमने खिताबी जीत हासिल की.'