युवराज सिंह ने 2000 में पहली बार टीम इंडिया में जगह बनाई थी और तब से वह सीमित ओवरों के क्रिकेट में मैच विनर रहे हैं। 2011 विश्व कप जीतने में उनकी अहम भूमिका रही थी।
2011 में ही अचानक पता चला कि युवराज सिंह को कैंसर है लेकिन युवी ने हिम्मत नहीं हारी और इलाज के बाद वापसी की। लेकिन वापसी के बाद युवराज वो नहीं रहे जो वो हुआ करते थे यानी युवराज अपने अतीत का साया भर रह गए। बाएं हाथ के धाकड़ बल्लेबाज़ का टीम में आना जाना लगा रहा और जब भी मौक़ा मिला संघर्ष करते नज़र आए। लेकिन इस साल की शुरुआत में मिले एक मौक़े का उन्होंने भरपूर फ़ायदा उठाया। उन्होंने इंग्लैंड के ख़िलाफ़ शानदार 150 रन बनाए और इसीलिए उन्हें चैंपियंस ट्रॉफ़ी और वेस्ट इंडीज़ के दौरे के लिए चुना गया।
चैंपियंस ट्रॉफ़ी में युवराज ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ लीग स्टेज में मैच जिताऊ पारी खेली लेकिन बाद में श्रीलंका और फ़ाइनल में पाकिस्तान के ख़िलाफ़ फ़्लॉप हो गए। वेस्ट इंडीज़ में भी तीन वनडे पारियों में वह सिर्फ 57 रन ही बना सके।
दरअसल अब युवराज की बैटिंग में वह दम नहीं रहा जो एक समय हुआ करता था। वह अब बॉलिंग भी नहीं करते। यही नहीं उनकी फ़ील्डिंग भी ढीली पड़ गई है हालंकि वह ज़बरदस्त फ़ील्डर हुआ करते थे। युवी 35 साल के हो गए हैं और इस उम्र में आप उनसे 20 साल की चपलता की उम्मीद नहीं कर सकते।
युवराज ने अपनी ज़िंदगी में बहुत बुरे दिन देखें हैं। आपको बता दें कि विराट कोहली जिस तरह का क्रिकेट खेल रहे हैं, वो युवराज सिंह पहले ही खेल चुके हैं।