भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) ने जैसे ही पृथ्वी शॉ को बैन किया उधर सरकार ने उसके कुछ दिन पहले ही बीसीसीआई को फटकार लगाई थी। जिसमें खेल मंत्रालय की ओर से बीसीसीआई सीईओ राहुल जौहरी को कड़े शब्दों में एक पत्र लिखा गया था। जिसमें इंगित किया गया कि बीसीसीआई के एंटी डोपिंग प्रोग्राम में काफी खामियां है और यहाँ हितो का टकराव भी है क्योंकि बीसीसीआई खुद ही टेस्ट लेता है ओए खुद से ही सजा देता है, जो गलत है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में कहा गया कि बीसीसीआई को डोप टेस्ट कराने का अधिकार नहीं है। उसे न तो भारत सरकार और न वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेंसी (वाडा) की ओर से इसका अधिकार दिया गया है। खेल मंत्रालय के 26 जून को लिखे खत के हवाले से एक्सप्रेस ने लिखा है, 'वाडा के नियमों की धारा 5.2 कहती है कि खिलाड़ियों से सैंपल लेने का अधिकार अधिकृत एंटी डोपिंग संगठन के पास ही होता है। तथ्य यह है कि बीसीसीआई न तो वाडा के तहत कोई एंटी डोपिंग संगठन है और इसके पास ऐसी कोई ताकत है।'
बता दें कि बीसीसीआई का नेशनल एंटी डोपिंग एजेंसी (नाडा) से न जुड़ने को लेकर भी बरसों से सरकार से टकराव चल रहा है। देश में बाकी खेलों के खिलाड़ी नाडा के तहत आते हैं लेकिन बीसीसीआई इसके तहत नहीं आना चाहता।
बोर्ड का कहना है कि नाडा की प्रक्रिया में कई कमियां हैं इस वजह से वह उसके नियम नहीं मानता। इसके साथ ही बीसीसीआई सरकार के मदद से चलने वाली राष्ट्रीय संस्था नहीं है तो यह नाडा के अधिकार क्षेत्र में भी नहीं आती।
रिपोर्ट के अनुसार, खेल मंत्रालय ने अपने पत्र में इन सब दावों को खारिज किया है। उसकी ओर से कहा गया है, 'बीसीसीआई का भारतीय क्रिकेट को साफ और डोपिंग मुक्त रखने के लिए विस्तृत तंत्र होने का दावा तथ्यों पर आधारित नहीं है। 2018 में बीसीसीआई ने 215 सैंपल नेशनल डोप टेस्टिंग लेबोरेट्री में भेजे थे। इनमें से 5 पॉजीटिव थे लेकिन इस बात की कोई खबर नहीं है कि ये नमूने किसके थे और इनसे कैसे निपटा गया।'
बता दें कि बीसीसीआई ने हाल ही में पृथ्वी शॉ को डोप टेस्ट में फेल होने के चलते 15 नवंबर 2019 तक सस्पेंड किया गया है। जिसमें कहा गया था की उन्होंने कप सीरप का सेवन किया जिसमें एक ऐसी मनाही वाली दवा पाई जाती है जो बीसीसीआई के डोपिंग सिस्टम में फिट नहीं बैठती है। इसलिए शॉ को 8 महीने का बैन झेलना पड़ रहा है।