नई दिल्ली। ऑकलैंड टी-20 मैच में भारत मेजबान टीम द्वारा रखे गए 204 रनों के लक्ष्य का पीछा कर रहा था। कप्तान विराट कोहली और लोकेश राहुल के विकेट पर रहते भारत के लिए सब कुछ अच्छा जा रहा था। अचानक यह दोनों आउट हो गए और टीम पर संकट आ गया। भारत के इस बात के लिए विख्यात है कि अगर उसका शीर्ष क्रम निपट जाए तो मध्य क्रम में कोई संभालने वाला नहीं है।
यही डर ईडन पार्क में भी था। लेकिन श्रेयस अय्यर ने यहां से जो पारी खेली उसने उन्हें लेकर सभी परिभाषाओं को बदल दिया। अय्यर ने 29 गेंदों पर 58 रनों की पारी खेली और भारत को जीत दिलाकर लौटे। इस पारी ने भारत को न सिर्फ जीत दिलाई बल्कि भारतीय टीम के सूने मध्य क्रम को भरने का काम भी किया। जाहिर है, इस पारी ने भारतीय टीम में अय्यर के कद को और 'बड़ा' कर दिया।
अय्यर ने जिस जिम्मेदारी से पारी खेली और टीम को संकट से निकालते हुए भारत को जीत दिलाई वो इस बात का सबूत है कि वो प्रतिभा के धनी होने के साथ-साथ जिम्मेदारी भी ले सकते हैं। जिम्मेदारी लेने वाली बात शायद एक खिलाड़ी के रूप में परिपक्व होने का सबूत है। और फिर हर टीम और हर कप्तान को अपने साथ ऐसे ही खिलाड़ियों की जरूरत होती है जो आगे आकर जिम्मेदारी लें क्योंकि आखिरकार क्रिकेट एक टीम गेम है और कोई भी टीम किसी एक खिलाड़ी पर आश्रित नहीं रह सकती।
यह पारी अय्यर के लिए भारतीय क्रिकेट में नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है, लेकिन खुद अय्यर ने अपने लिए कहानी की इबारत 2015-16 में ही लिख दी थी। इस साल अय्यर ने रणजी ट्रॉफी में 11 मैचों में 1321 रन बनाए थे। जैसा कि आम है, अय्यर को नीली जर्सी के लिए फिर भी इंतजार करना पड़ा।
अगले रणजी सीजन में अय्यर ने फिर बल्ले से अच्छा किया। इस बार वह हालांकि 1000 का आंकड़ा पार नहीं कर पाए लेकिन 10 मैचों में दो शतक और दो अर्धशतकों की मदद से उन्होंने 725 रन जरूर बनाए।
इसके बाद भी उन्हें भारतीय टीम में इंतजार करना पड़ा। आखिरकार उनका इंतजार एक नवंबर-2017 को खत्म हुआ जब वह अपना पहला टी-20 अंतर्राष्ट्रीय खेले। इस मैच में उन्हें बल्लेबाजी तो नहीं मिली। चार नवंबर को राजकोट में न्यूजीलैंड के खिलाफ वह बल्लेबाजी करने उतरे और 23 रन बनाए। न्यूजीलैंड के बाद श्रीलंका के खिलाफ सीरीज में भी वह टी-20 टीम में खेले। श्रीलंका के खिलाफ ही उन्होंने वनडे पदार्पण किया।
अय्यर पहले मैच में तो विफल रहे लेकिन दूसरे मैच में उन्होंने 88 रन की पारी खेल अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।
इस बीच भारतीय टीम विश्व कप-2019 की तैयारी कर रही थी। इस दौरान नंबर-4 की बहस भारतीय क्रिकेट में चल रही थी। अय्यर का नाम भी इस रेस में था, लेकिन वह विजय शंकर से रेस हार गए वो भी तब जब उन्होंने आईपीएल में दिल्ली कैपिटल्स की कप्तानी करते हुए टीम को लंबे अरसे बाद प्लेऑफ में पहुंचाया और बल्ले से भी अच्छा किया।
विश्व कप के लिए नहीं चुना जाना किसी भी खिलाड़ी के लिए यह बेशक निराशा वाली बात होगी। लेकिन विश्व कप के बाद अय्यर फिर टीम में आए। नंबर-4 तो नहीं लेकिन वह नंबर-5 पर खेलने लगे। विंडीज दौरे पर उन्होंने दो अर्धशतक जमाए। विंडीज भारत दौरे पर आई तो फिर अय्यर ने लगातार दो अर्धशतक जमाए।
लगने लगा था कि अय्यर टीम के वो खिलाड़ी बन गए हैं, जिसकी जरूरत टीम को है और जो मध्य क्रम की कमी को पूरा कर सकता है। इस बीच आस्ट्रेलिया ने भारत का दौरा किया। अय्यर शुरुआती दो वनडे में चले नहीं।
सवाल उठे कि मुंबई का यह बल्लेबाज क्या शीर्ष गेंदबाजी आक्रमण का सामना कर सकता है? अय्यर को अपने ऊपर भरोसा था जो बेंगलुरू में तीसरे वनडे में देखने को मिला। अय्यर ने फिर 35 गेंदों पर 44 रनों की पारी खेल टीम को जीत दिलाई। यह इनिंग भी फिनिशिंग इनिंग थी।
इस पारी ने सिर्फ अय्यर के आत्मविश्वास को ही नहीं बढ़ाया बल्कि टीम प्रबंधन को भी भरोसा दिया। ऑकलैंड में अय्यर ने जो किया वो उसी को आगे ले जाने की कहानी है।
कप्तान कोहली हालांकि विश्व कप के बाद से अय्यर के साथ खड़े नजर आए हैं। इसका एक कारण यह हो सकता है कि विजय शंकर और ऋषभ पंत को तमाम मौके देने के बाद भी इन दोनों ने निराश किया वहीं अय्यर ने अधिकतर मौकों पर टीम को संभाला। ऑकलैंड की पारी ने कप्तान को राहत दी होगी और उनका भरोसा और मजबूत हुआ है।
नंबर-4 की रेस में भी अय्यर विजेता लग रहे हैं। पहले मैच की पूर्व संध्या पर संवाददाता सम्मेलन में कोहली ने लोकेश राहुल की दोहरी भूमिका के सवाल में कहा था कि वनडे में राहुल कीपिंग करेंगे और नंबर-5 खेलेंगे। इससे साफ है कि अय्यर का नंबर-4 पर खेलना पक्का है।