बीसीसीआई की वर्कलोड मैनेजमेंट को लेकर नीति साफ है और यह कई बार खिलाड़ियों को काउंटी खेलने से रोक भी देती है। उमेश यादव का कहना है कि इसी नीति के कारण उन्हें काउंटी क्रिकेट खेलने के प्रस्ताव को मना करना पड़ा। दिल्ली और विदर्भ के बीच रविवार से शुरू हो रहे रणजी ट्रॉफी मैच की पूर्व संध्या पर उमेश ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि उन्हें ग्लोसेस्टशायर से खेलने का प्रस्ताव भी मिला था लेकिन बोर्ड की वर्कलोड मैनजमेंट नीति के कारण उन्हें दूर रहना पड़ा।
उन्होंने बताया, "पिछले सीजन मुझे ग्लोसेस्टशायर से प्रस्ताव भी मिला था। काउंटी चाहती थी कि मैं उनके साथ सात मैच खेलूं लेकिन बीसीसीआई की वर्कलोड मैनेजमेंट नीति के कारण मैं दो-तीन मैच से ज्यादा नहीं खेल सकता था। इसलिए यह करार काम नहीं किया। साथ ही मुझे आईपीएल में चोट भी लग गई थी।"
तो क्या इसका मतलब है कि वर्कलोड नीति को दोबारा देखने की जरूरत है? उमेश को लगता है कि यह मैच के समय और एक खिलाड़ी को उसके स्थान के हिसाब से किस तरह लिया जाता है इस बात का मामला है।
उन्होंने कहा, "वर्कलोड मैनेजमेंट वो चीज है जो तब चीजों को संतुलन में लाने के लिए उपयोग में लाई जाती है जब आप लगातार मैच खेल रहे हो। मेरा मामला इससे उलट है। मैं बीते दो साल में कम से कम खेला हूं। इसलिए मेरे ऊपर ज्यादा वर्कलोड नहीं था।"
उन्होंने कहा, "मैं 31 साल का हूं और अगले चार-पांच साल मेरे लिए काफी अहम हैं। अगर आप मेरे रिकॉर्ड को देखेंगे तो मैंने 2019 में चार टेस्ट मैच खेले हैं और उससे पहले 2018 में भी चार मैच खेले थे। सीमित ओवरों में बीते दो साल में मैंने सिर्फ एक मैच खेला है।"
उन्होंने कहा, "इस उम्र में, मैं जितनी गेंदबाजी करूंगा मैं उतना बेहतर रहूंगा। इसलिए मैं इस मैच के बाद पांच प्रथम श्रेणी मैच खेलूंगा।"
भारतीय चयनकर्ता उमेश को टेस्ट क्रिकेट के विशेषज्ञ के रूप में देख रहे हैं लेकिन उमेश के पास इस साल न्यूजीलैंड दौरे के बाद ज्यादा क्रिकेट खेलने को बचेगी नहीं।
उन्होंने कहा, "इसलिए टी-20 विश्व कप के इस साल में, न्यूजीलैंड दौरे के बाद मेरे पास सिर्फ आईपीएल बचेगा और इसके बाद कोई क्रिकेट नहीं। अगर मैं टेस्ट के लिए टीम में नहीं चुना जाता हूं तो मेरे पास ज्यादा कुछ बचेगा नहीं।"