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U 19 : किस्मत की कसौटियां भी नहीं डिगा सकीं भारतीय क्रिकेट की इस ‘युवा ब्रिगेड’ के हौसले

साउथ अफ्रीका में खेले जा रहे अंडर 19 क्रिकेट विश्व कप में पाकिस्तान को सेमीफाइनल मुकाबले में हराकर भारतीय क्रिकेट टीम फाइनल में अपनी जगह बना ली है।। 

Edited by: Bhasha
Published : February 06, 2020 15:42 IST
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Image Source : TWITTER  Under 19 Indian cricket team

''क्रिकेट के मैदान पर घंटों पसीना बहाने के बाद मेरे पास उसे जूस पिलाने या अच्छा खाना देने के पैसे नहीं होते थे लेकिन वह फोड़नी का भात खाकर खुश हो जाता और विश्व कप जीतने के बाद भी वह छप्पन पकवान नहीं, यही मांगेगा।'' यह कहना है दक्षिण अफ्रीका में टी20 विश्व कप फाइनल तक के सफर में भारत के स्टार ऑलराउंडर रहे अथर्व अंकोलेकर की मां वैदेही का। यह कहानी सिर्फ अथर्व की नहीं बल्कि विश्व चैम्पियन बनने की दहलीज पर खड़ी भारत की अंडर 19 टीम के कई सितारों की है जो किस्मत की हर कसौटी पर खरे उतरकर यहां तक पहुंचे हैं।

वैदेही ने पति की मौत के बाद मुंबई की बसों में कंडक्टरी करके उसे क्रिकेट के मैदान पर भेजा जबकि कप्तान प्रियम गर्ग के पिता स्कूल की वैन चलाते थे। पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल में शतक जमाने वाले यशस्वी जायसवाल की गोलगप्पे बेचने की कहानी तो अब क्रिकेट की किवदंतियों में शुमार है। किस्मत ने इन जांबाजों की कदम कदम पर परीक्षा ली लेकिन इनके सपने नहीं छीन सकी और अपनी लगन, मेहनत और परिवार के बलिदानों ने इन्हें विश्व चैम्पियन बनने से एक कदम दूर ला खड़ा किया है। 

श्रीलंका में पिछले साल एशिया कप फाइनल में बांग्लादेश के खिलाफ पांच विकेट लेने वाले अथर्व ने नौ वर्ष की उम्र में अपने पिता को खो दिया था। सास, ननद और दो बेटों की जिम्मेदारी उनकी मां वैदेही पर आन पड़ी जो घर में बच्चों को ट्यूशन पढाती थी। वैदेही ने अपने पति की जगह वृहनमुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाय एंड ट्रांसपोर्ट (बेस्ट) की बसों में कंडक्टर की नौकरी करके अथर्व को क्रिकेटर बनाया। 

वैदेही ने भाषा से बातचीत में कहा ,‘‘ अथर्व के पापा का सपना था कि वह क्रिकेटर बने और उनके जाने के बाद मैने उसे पूरा किया। वह हमेशा नाइट शिफ्ट करते थे ताकि दिन में उसे प्रेक्टिस करा सके लेकिन उसकी कामयाबी देखने के लिये वह नहीं है।’’ 

अपने संघर्ष के दौर को याद करते हुए उन्होंने बताया ,‘‘ वह काफी कठिन दौर था। मैं उसे मैदान पर ले जाती लेकिन दूसरे बच्चे अभ्यास के बाद जूस पीते या अच्छी चीजें खाते लेकिन मैं उसे कभी ये नहीं दे पाई।’’ 

उन्होंने कहा ,‘‘ लेकिन अथर्व के दोस्तों के माता पिता और उसके कोचों ने काफी मदद की।’’ एशिया कप जीतने के बाद मां ने अपने बेटे को कोई तोहफा नहीं दिया लेकिन उसके लिये फोड़नीचा भात (बघारे चावल) और चनादाल का पोड़ा बनाया। उन्होंने कहा ,‘‘ अब हमारे हालात पहले से बेहतर है लेकिन अपने बुरे दौर को हममें से कोई नहीं भूला है। आज भी खुशी के मौके पर उसे छप्पन पकवान नहीं बल्कि वही खाना चाहिये जिसे खाकर वह बड़ा हुआ है।’’ 

अक्सर अथर्व के मैच के दिन वैदेही की ड्यूटी होती है लेकिन अब अंडर 19 विश्व कप फाइनल रविवार को है तो वह पूरा मैच देखेंगी। मेरठ के करीब किला परीक्षित गढ के रहने वाले कप्तान प्रियम गर्ग के सिर से मां का साया बचपन में ही उठ गया था। तीन बहनों और दो भाइयों के परिवार को उनके पिता नरेश गर्ग ने संभाला जिन्होंने दूध , अखबार बेचकर और बाद में स्कूल में वैन चलाकर उसके सपने को पूरा किया। 

गर्ग के कोच संजय रस्तोगी ने भाषा से कहा ,‘‘ प्रियम ने अपने पापा का संघर्ष देखा है जो इतनी दूर से उसे लेकर आते थे। यही वजह है कि वह शौकिया नहीं बल्कि पूरी ईमानदारी से कुछ बनने के लिये खेलता है। यह भविष्य में बड़ा खिलाड़ी बनेगा क्योंकि इसमें वह संजीदगी है।’’ 

नरेश ने दोस्तों से उधार लेकर प्रियम के लिये कभी क्रिकेट किट और कोचिंग का इंतजाम किया था और उनकी मेहनत रंग लाई जब वह 2018 में रणजी टीम में चुना गया। 

वहीं उत्तर प्रदेश के भदोही से क्रिकेट में नाम कमाने मुंबई आये यशस्वी की अब ‘गोलगप्पा ब्वाय’ के नाम से पहचान बन गई है। अपना घर छोड़कर आये यशस्वी के पास न रहने की जगह थी और ना खाने के ठिकाने। मुफलिसी के दौर में रात में गोलगप्पे बेचकर दिन में क्रिकेट खेलने वाले यशस्वी इस बात की मिसाल बन गए हैं कि जहां चाह होती है, वहां राह निकल ही आती है। ऐसे में उनके सरपरस्त बने कोच ज्वाला सिंह ने उसे अपनी छत्रछाया में लिया और यही से शुरू हुई उसकी कामयाबी की कहानी। 

अब तक अंडर-19 विश्व कप में खेले गए पांच मैच में उसने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ नाबाद 105 रन ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ 62, न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ नाबाद 57, जापान के ख़िलाफ़ नाबाद 29 और श्रीलंका के ख़िलाफ़ 59 रन बनाए। 

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