नई दिल्ली| कोरोना महामारी के चलते सभी प्रकार की खेल गतिविधियाँ ठप्प पड़ी हुई हैं। ऐसे में खिलाड़ी ट्रेनिंग भी नहीं कर पा रहे हैं उन्हें मैच भी नहीं खेलने को मिल रहा है। जिसके चलते साल 2021 में होने वाले आईसीसी विश्वकप को लेकर महिला टीम की खिलाड़ी झूलन गोस्वामी काफी चिंतित हैं। उनका मानना है कि अगर महिला टीम इंडिया को अपने देश में क्रिकेट विश्वकप जीतने का सूखा खत्म करना है तो ऑस्ट्रेलियाई टीम की मानसिकता से काफी सीखना होगा।
गौरतलब है कि 37 साल की हो चुकी झूलन गोस्वामी के लिए आगामी 2021 महिला विश्वकप उनका अंतिम विश्वकप हो सकता है। जिसके बाद वो संन्यास ले सकती हैं। इस तरह हर हाल में वो इस विश्वकप को जीत अपने करियर को यादगार बनाना चाहती है।
ऐसे में आगामी विश्वकप के बारे में भाषा से बात करते हुए झूलन ने कहा, ‘‘बेशक यह मानसिकता से जुड़ा मुद्दा है लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि खिलाड़ियों में खिताब जीतने की क्षमता नहीं है। पिछले तीन साल से हम अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं, बस विश्व खिताब जीतने में नाकाम रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया कहीं आगे है क्योंकि उन्हें पता है कि बड़े मैच कैसे जीते जाते हैं।’’
महिला टीम इंडिया ने ट्राई सीरीज और टी20 विश्व कप दोनों के लीग चरण में ऑस्ट्रेलिया को हराया था लेकिन दोनों ही टूर्नामेंटों के फाइनल में उसे इसी टीम के खिलाफ हार झेलनी पड़ी। झूलन ने कहा, ‘‘आपको पता है कि ग्रुप चरण में हार के बाद आप वापसी कर सकते हो लेकिन नाकआउट में ऐसा नहीं होता। ऐसे हालात में मानसिकता बड़ी भूमिका निभाती है और कौशल से अधिक महत्वपूर्ण होती है।’’
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उन्होंने कहा, ‘‘यह दिखाता है कि आप मानसिक रूप से कितने मजबूत हो, आप कैसे अपने आप को नियंत्रित करते हो। अगर आप ऐसा करने में सफल रहते हो तो आप अन्य टीमों से आगे होते हो।’’
झूलन ने आगे कहा, ‘‘महिला टीम को ही नहीं पुरुष और अंडर-19 टीम को भी हाल में फाइनल में हार का सामना करना पड़ा है।’’
जाहिर है कि पुरुष अंडर-19 टीम इंडिया विश्व कप के फाइनल में बांग्लादेश के हाथों हार गई जबकि सीनियर टीम इंडिया भी 2013 चैम्पियंस ट्रॉफी जीतने में नाकाम रही है।
ऐसे में झूलन का मानना है कि ऑस्ट्रेलियाई महिला टीम की सफलता में महिला बिग बैश लीग का अहम योगदान है जिसने उनकी खिलाड़ियों को अनुभव दिया है और कड़ी प्रतिस्पर्धा में खेलना सिखाया है।
झूलन ने कहा कि भारतीय महिला टीम को भी बेहतर होने के लिए टी20 लीग की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘‘आप देखिए आईपीएल (2008) के बाद भारतीय पुरुष क्रिकेट में कितना सुधार हुआ। पहले भारतीय क्रिकेटर और घरेलू क्रिकेटर के बीच अंतर होता था लेकिन आईपीएल के बाद यह बदल गया। युवा खिलाड़ी अब अधिक आत्मविश्वास से भरे नजर आते हैं और उन्हें पता है कि बड़े मंच के दबाव से कैसे निपटना है।’’
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( With Bhasa Input )