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भारतीय स्पिनरों की हो सकती है साउथ अफ़्रीका में धुनाई, जानें क्यों

घरेलू धरती पर नियमित तौर पर टीम का हिस्सा रहने वाले रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शायद ही एक साथ अंतिम एकादश में जगह बनाने का मौका न मिले

Edited by: Bhasha
Published on: December 29, 2017 15:02 IST
Jadeja, Ashwin- India TV Hindi
Jadeja, Ashwin

घरेलू धरती पर नियमित तौर पर टीम का हिस्सा रहने वाले रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा को दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ शायद ही एक साथ अंतिम एकादश में जगह बनाने का मौका न मिले क्योंकि अफ्रीकी महाद्वीप के इस देश में स्पिनरों के प्रदर्शन में लगातार गिरावट आयी है और वह बद से बदतर होता रहा है.

तेज़ गेंदबाज़ों के माकूल पिचें हैं

दक्षिण अफ्रीका की टेस्ट क्रिकेट में वापसी के बाद से उसकी सरज़मीं पर अब तक जो 125 टेस्ट मैच खेले गये हैं अगर उनमें स्पिनरों के प्रदर्शन पर गौर करें तो साफ हो जाता है कि दक्षिण अफ्रीकी टीम में अदद स्पिनर की कमी के कारण उन्होंने अमूमन तेज गेंदबाजों के माकूल पिचें ही बनायीं और इसमें दो राय नहीं कि विराट कोहली एंड कंपनी को पांच जनवरी से केपटाउन में शुरू हो रही तीन टेस्ट मैचों की श्रृंखला में तेज़ और उछाल वाले विकेटों से ही दो-चार होना पड़ेगा। 

स्पिनरों को 19 प्रतिशत ही विकेट मिले हैं

दक्षिण अफ्रीका में खेले गये पिछले 125 टेस्ट मैचों में तेज़ गेंदबाज़ों और स्पिनरों के प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन करें तो अंतर स्पष्ट नज़र आता है। इन मैचों में तेज़ या मध्यम गति के गेंदबाज़ों ने 75.46 प्रतिशत गेंदबाज़ी (29,385 ओवर) की और 81 प्रतिशत विकेट अपने नाम लिखवाये। इस बीच अधिकतर टीमों ने स्पिनरों को मारक हथियार के तौर पर नहीं बल्कि तेज गेंदबाजों को विश्राम देने या ओवर गति तेज करने की खातिर इस्तेमाल किया। यही वजह है कि भले ही 24.54 प्रतिशत (9556 ओवर) गेंदबाजी की लेकिन उन्हें 19 प्रतिशत ही विकेट मिले। 

पिछले दस और पांच वर्षों के दौरान भी यह स्थिति नहीं बदली तथा इस बीच स्पिनरों ने तेज गेंदबाजों के दो अन्य गढ़ इंग्लैंड और आस्ट्रेलिया में भी दक्षिण अफ्रीका की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया। पिछले दस वर्षों में दक्षिण अफ्रीका में स्पिनरों को गेंदबाजों को मिले कुल विकेट के लगभग 21 प्रतिशत विकेट मिले जबकि इस बीच आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में इस बीच उन्होंने 22 प्रतिशत से अधिक की दर से विकेट हासिल किये। पिछले पांच वर्षों में आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में यह आंकड़ा क्रमश: 24.04 और 22.24 प्रतिशत रहा जबकि दक्षिण अफ्रीका में यह गिरकर 20.16 प्रतिशत हो गया। 

वार्न, कुंबले और मुरलीधरन ही हुए हैं कामयाब

अगर दक्षिण अफ्रीका में विदेशी स्पिनरों के प्रदर्शन पर गौर करें तो 1992 के बाद उन्होंने वहां 27.21 प्रतिशत विकेट हासिल किये लेकिन पिछले दस साल में यह आंकड़ा 26.60 प्रतिशत हो गया। एक दौर था जब शेन वार्न (दक्षिण अफ्रीका में 12 मैच में 61 विकेट), अनिल कुंबले (12 मैच में 45 विकेट) और मुथैया मुरलीधरन (छह मैच में 35 विकेट) जैसे स्पिनरों ने दक्षिण अफ्रीका में भी अपनी बलखाती गेंदों का जादू बिखेरा लेकिन इसके बाद कोई भी ऐसा स्पिनर नहीं हुआ जिसने वहां अपना दबदबा बनाया हो। 

यहां तक कि दक्षिण अफ्रीका भी पाल एडम्स (19 मैचों में 57 विकेट), पाल हैरिस (18 मैचों में 48 विकेट) और निकी बोए (22 मैचों में 35 विकेट) जैसे कुछ स्पिनर ही पैदा कर पाया। अभी उसके पास केशव महाराज हैं जिन्होंने अपनी धरती पर पांच टेस्ट मैचों में 20 विकेट लिये हैं। 

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