पांच दिन के टेस्ट मैच में खेल का एक पल, 5-6 ओवर का एक स्पैल या फिर पुछल्ले बल्लेबाज़ो का 15 मिनट का संघर्ष जीत या हार तय कर देता है. पिछले ढाई साल का इतिहास देखें तो अंतिम पांच बल्लेबाज़ों की वजह से टीम इंडिया टेस्ट मैच के नाज़ुक पलों पर ख़री उतरी है. ये देखा गया है नागपुर में साउथ अफ़्रीका के ख़िलाफ़, वेस्ट इंडीज़ के ख़िलाफ़, कानपुर और कोलकता में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़, राजकोट और मोहली में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ और धर्मशाला में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़.
विदेश में अंतिम पांच बल्लेबाज़ो के कम योगदान से हुआ था रैंकिंग में नुकसान
इसमें कोई ताज्जुब नहीं कि 2015 में मोहाली टेस्ट के बाद से टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन टीम इंडिया के अंतिम पांच बल्लेबाज़ों का औसत सबसे बेहतर है हालंकि 2013 के अंत से 2015 की शुरुआत तक विदेशी ज़मीन पर खेले गए 13 टेस्ट में इंडिया के आख़िरी पांच बल्लेबाज़ों का औसत सिर्फ़ वेस्ट इंडीज़, ज़िम्बाब्वे और बांग्लादेश से ही बेहतर था. लेकिन मोहली टेस्ट के बाद से अंतिम पांच बल्लेबाज़ों ने इंडिया के स्कोर में 166 रन जोड़े हैं जो विदेशी दौरे पर जोड़े गए रनों से 53 रन ज़्यादा है. विदेश में अंतिम पांच बल्लेबाज़ो के कम योगदान की वजह से टीम इंडिया ICC रैंकिंग में 7 नंबर पर खिसक गई थी. विदेश में खेले गए 13 टेस्ट में एकमात्र जीत उस मैच में मिली है जिसमें जडेजा और भुवनेश्वर कुमार ने बल्ले से महत्वपूर्ण योगदान किया.
अश्विन, साहा, जडेजा ने जिताए हैं मैच
इसी तरह जहां विदेशी दौरे पर इंडिया के बॉलर्स को विरोधी टीम के अंतिम पांच बल्लेबाज़ों ने धुना है वही घर में बॉलरों का बोलबाला रहा है. हाल ही में इंडिया को मिली सफलता में अधिकतर 6,7 और 8 नंबर के बल्लेबाज़ का योगदान रहा है. इस नंबर पर अश्विन, साहा और जडेजा बल्लेबाज़ी करते रहे हैं. इनकी बल्लेबाज़ी की वजह से इंडिया एक अतिरिक्त गेंदबाज़ खिला सकी है. दरअसल ये तीन मिलकर दो ऑलराउंडर का काम करते हैं. साउथ अफ़्रीका के दौरे पर टीम इंडिया चाहेगी कि ये तीनों अपना प्रदर्शन दोहराएं. साउथ अफ़्रीका में इंग्लैंड ने सिरीज़ जीती थी और उस टीम में बेन स्टोक्स, जॉनी बैरस्टो और मोईन अली 6,7 और 8 नंबर पर आए थे. इस दौरे पर भले ही नज़रे टॉप पांच बल्लेबाज़ों और तीन तेंज़ गेंदबाज़ों पर हों लेकिन अगर मैच फंसता है तो ये तीन खिलाड़ी मैच का नतीजा तय कर सकते हैं. लेकिन इनके लिए कंडीशन्स एक बड़ी चुनौती होगी. कठिन परिस्थितियों में निचले क्रम के बल्लेबाज़ों संघर्ष करते दिखते हैं.
रोहित और पंड्या में से कौन खेलेगा?
घर में चमकने वाले इन तीन खिलाड़ियों में से सिर्फ़ एक का ही स्थान 11 में पक्का है. विकेटकीपर रिधिमन साहा के लिए ये दौरा चुनौतीपूर्ण होगा. साहा फ़्रंटफुट के बल्लेबाज़ हैं और इसलिए सपाट विकेट पर भी कभी-कभी उन्हें बाउंसर लग जाती है हालंकि अपनी दृढ़ता की वजह से वह रन बनाते हैं लेकिन साउथ अफ़्रीका के उछाल भरे विकेट पर उन्हें डटकर खेलना होगा. हार्दिक पंड्या भी फ़्रंटफुट के बल्लेबाज़ हैं और शॉट खेलना पसंद करते हैं. पंड्या से इस दौरे पर काफी उम्मीदें हैं. उन्हें इस दौरे के लिए श्रीलंका के खिलाफ़ टेस्ट सिरीज़ में आराम दिया गया था. रोहित शर्मा को दो मौक़े मिले और उन्होंने दो सेंचुरी लगाई हैं. कोलकता की ग्रीन पिच पर भारतीय बल्लेबाज़ी ढह गई थी और यही वजह है कि यहां की कंडीशन्स में इंडिया एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ को खिला सकता है. पोर्ट एलिज़ाबेत में ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ चार दिन का टेस्ट दो दिन में ख़त्म हो गया था. अगर कंडीशन्स ऐसी ही रहती हैं तो इंडिया को पांचवे बॉलर की ज़रुरत ही नहीं पड़ेगी. इसी कंडीशन्स पर निर्भर करेगा कि रोहित और पंड्या में से किसे खिलाया जाता है. पिच अगर बॉलर के लिए मददगार होती है तो रोहित को मौक़ा मिल सकता है. अगर पिच पर घास रहती है तो दो स्पिनर की जगह पंड्या को टीम में रोहित के साथ जगह मिल सकती है.
वर्नोन फ़िलैंडर हैं सबसे बड़ा ख़तरा
इस सिरीज़ में भारत के लिए सबसे बड़ा ख़तरा वर्नोन फ़िलैंडर हालंकि बहुत तेज़ गेंदबाज़ नहीं हैं लेकिन ऐसे विकेट पर उनकी सटीक गेंदबाज़ी बहुत कारगार साबित होती है जिस पर बॉल स्विंग नहीं होती. फ़िलैंडर ने एशिया के सपाट विकेट पर 2.42 रन प्रति ओवर की दर से 32 विकेट लिए हैं जो अश्विन और जेडजा के लिए आंख खोलने वाला हो सकता है. इस दौरे पर अश्विन और जडेजा की अलग-अलग रणनीति होगी. दोनों को वनडे सिरीज़ में नहीं खिलाया गया था. जिस स्पिनर को भी यहां खोलने का मौक़ा मिलता है और अगर वह अच्छा प्रदर्शन करता है तो दूसरा स्पिनर साल भर बाहर ही बैठा रहेगा क्योंकि इस साल इंडिया घर में कोई सिरीज़ नहीं खेलेगी. अश्विन ने अपनी लेग स्पिन पर मेहनत की है. अश्विन विदेश में तकनीकी रुप से सक्षम बल्लेबाज़ है लेकिन जडेजा ने भी लॉर्ड्स पर बल्लेबाज़ी करके दिखा दिया है कि वह भी कम नही हैं. जडेजा अश्विन से बेहतर फ़ील्डर हैं. विरोधी टीम में दाएं हाथ के बल्लेबाज़ों की भरमार है और दोनों ही टीमों में बाएं हाथ के तेंज़ गेंदबाज़ नही हैं. इस वजह से दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के ऑफ़ स्टंप के पास पिच पर रफ पैच नहीं बनेंगे और ऐसे में बाएं हाथ के गेंदबाज़ जडेजा का दावा मज़बूत हो जाता है लेकिन अश्विन के पास गेंदबाज़ी में विविधता है और अनुभव भी.