इंदौर: पद्मश्री से सम्मानित मशहूर खेल कमेन्टेटर सुशील दोशी टीवी चैनलों पर बतौर हिंदी कमेंटेटर्स पूर्व क्रिकेटरों की हिन्दी से ख़ासा नाराज़ हैं. उनका कहना है कि क्रिकेट को देश के घर-घर तक पहुंचाने वाली जुबान से इन कमेंटेटरों का ‘‘खिलवाड़’’ रोकने के लिये बीसीसीआई को अपनी ज़िम्मेदारी निभानी ही चाहिये।
अगले साल खेल कमेंट्री की दुनिया में 50 साल पूरे करने जा रहे दोशी ने यहां ‘‘भाषा’’ को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘‘ज्यादातर पूर्व क्रिकेटर व्याकरण के हिसाब से निहायत ग़लत और अशुद्ध हिन्दी बोलकर कमेंट्री कर रहे हैं। नतीजतन खासकर टीवी चैनलों पर हिन्दी को उचित मान-सम्मान नहीं मिल रहा है।’’
ग़ौरतलब है कि इन दिनों टीवी पर क्रिकेट की हिंदी कमेंट्री करने वालों में वीरेंदर् सहवाग, सुनील गावस्कर, सौरव गांगुली, आकाश चोपड़ा, वीवीएस लक्ष्मण और आशीष नेहरा जैसे पूर्व खिलाड़ी हैं.
दोशी ने, ‘‘हिन्दी वह ज़ुबान है जिसने भारत में क्रिकेट को मशहूर करने में अहम भूमिका निभायी है। बड़े दर्शक और श्रोता वर्ग के कारण हिन्दी का महत्व दिनों-दिन बढ़ ही रहा है लेकिन मुझे अफसोस है कि देश में पूर्व क्रिकेटरों की गलत हिन्दी कमेंट्री खामोशी से सहन की जा रही है। कमेंट्री के नाम पर इस भाषा से पूर्व क्रिकेटरों का खिलवाड़ बंद होना चाहिये।’’
दोशी ने कहा, ‘‘अच्छे कमेंटेटरों से मुझे कोई शिकायत नहीं है। भारतीय टीम के पूर्व कप्तान सुनील गावस्कर अच्छी हिन्दी कमेंट्री कर लेते हैं। पूर्व बल्लेबाज नवजोत सिंह सिद्धू भी हिन्दी कमेंटेटर के रूप में खासे लोकप्रिय हैं।’’
भाषाई शुद्धता की कसौटी पर हिन्दी और अंग्रेजी कमेंट्री की तुलना करते हुए वह सवाल करते हैं, ‘‘क्या टीवी चैनलों पर कमेंट्री के दौरान गलत अंग्रेजी बोली जा सकती है। मुझे याद है कि दक्षिण अफ्रीका में कुछ पूर्व क्रिकेटरों ने जब एक बार कमेंट्री के वक्त व्याकरण की दृष्टि से गलत अंग्रेजी बोली थी, तो वहां के अखबारों में उनकी कड़ी आलोचना की गयी थी।’’
दोशी ने जोर देकर कहा कि कमेंट्री की दुनिया में हिन्दी की अस्मिता की रक्षा की जिम्मेदारी से बीसीसीआई पल्ला नहीं झाड़ सकता। इस 70 वर्षीय कमेंटेटर ने कहा, ‘‘बीसीसीआई टीवी चैनलों को क्रिकेट मैचों के प्रसारण के अधिकार बेचता है। लेकिन इस देश में हिन्दी भाषा की अस्मिता को हर्गिज नहीं बेचा जा सकता। बीसीसीआई को मैचों के प्रसारण अधिकार बेचने के अनुबंध में विशेष प्रावधान करने चाहिये, ताकि संबंधित टीवी चैनलों पर शुद्ध हिन्दी कमेंट्री सुनिश्चित हो सके।’’
दोशी ने यह भी कहा कि बीसीसीआई को अच्छे हिन्दी कमेंटेंटरों का चुनाव कर एक पैनल तैयार करनी चाहिये। इसके साथ ही, पूर्व क्रिकेटरों को हिन्दी कमेंट्री का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। वह इस बात से कतई सहमत नहीं हैं कि अच्छी क्रिकेट कमेंट्री के लिये एक पेशेवर खिलाड़ी के रूप में खेल की बारीकियां जाननी अनिवार्य है।
हिन्दी के सबसे ज्यादा अनुभवी खेल कमेंटेटरों में शामिल दोशी ने कहा, ‘‘क्रिकेट कोई रॉकेट साइंस नहीं है। कोई गैर खिलाड़ी कमेंटेटर भी अध्ययन और मनन के जरिये इस खेल की बारीकियां समझकर अच्छी कमेंट्री कर सकता है। इस सिलसिले में हमारे पास उदाहरणों की कोई कमी नहीं है।’’
हिन्दी कमेंट्री करने वाले कुछ पूर्व क्रिकेटरों का नाम लिये बगैर वह कटाक्ष करते हैं, ‘‘हिंदी कमेंट्री की दुनिया में कुछ ऐसे पूर्व क्रिकेटर भी सक्रिय हैं, जिन्होंने अपने करियर में इक्का-दुक्का टेस्ट मैच खेले हैं और इनमें उन्हें नाकाम होते देखा गया है। लेकिन आज वे कमेंटेटर के रूप में देश के स्टार क्रिकेटरों के खेल की कुछ इस तरह कमियां निकालते हैं, मानो मौजूदा खिलाड़ियों को खेलना ही नहीं आता।’’
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने तो अपनी पारी खेल ली। मैं बस इतना चाहता हूं कि नयी पीढ़ी को शुद्ध हिन्दी कमेंट्री सुनने को मिले और इस भाषा की गरिमा बरकरार रह सके।’’
दोशी ने वर्ष 1968 में मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच इंदौर के नेहरू स्टेडियम में खेले गये रणजी मैच के लिये पहली बार हिन्दी में कमेंट्री की थी। गुजरे 49 वर्षों में वह अलग-अलग रेडियो और टेलीविजन चैनलों के लिये 400 से ज्यादा एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय मैचों और टी-20 मैचों की कमेंट्री कर चुके हैं। इसके अलावा, उन्होंने 85 से ज्यादा टेस्ट मैचों के लिये भी कमेंट्री की है।
दोशी संभवत: ऐसे अकेले हिन्दी कमेंटेटर हैं, जिन्होंने क्रिकेट के एक दिवसीय और टी-20 प्रारूपों के कुल 10 विश्व कप का आंखों देखा हाल श्रोताओं और दर्शकों को सुनाया है। खेल कमेंट्री की दुनिया में उल्लेखनीय योगदान के लिये उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान "पद्मश्री" से वर्ष 2016 में नवाजा गया था।