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अंतराष्ट्रीय मैचों में घरेलू अंपायरों की मांग से भारतीय क्रिकेट के सामने खड़ी हो सकती है ये समस्या

अंतराष्ट्रीय मैचों में घरेलू अंपायरों के इस्तेमाल की बात से अब भारतीय मैच में अधिकारियों के लिए अलग समस्या खड़ी हो सकती है।

Written by: India TV Sports Desk
Updated : May 19, 2020 17:32 IST
Umpire
Image Source : GETTY IMAGES Umpire

नई दिल्ली| कोरोना महामारी के चलते जहां आईसीसी (अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद) क्रिकेट समिति ने गेंद पर लार को लगाने के बैन की मांग रखी। वहीं दूसरी तरफ उसने अंतराष्ट्रीय मैचों में घरेलू अंपायरों के इस्तेमाल की भी बात रखी। जिससे अब भारतीय मैच में अधिकारियों के लिए अलग समस्या खड़ी हो सकती है।

देश के कई मौजूदा और पूर्व मैच अधिकारियों का मानना है कि अंतरराष्ट्रीय मैचों खासकर टेस्ट मैच में कम अनुभव के कारण यह भारत के घरेलू अंपायरों के लिए चुनौतीपूर्ण होगा।

पिछले साल आईसीसी के एलीट पैनल के अंपायरों से भारतीय अंपायर एस रवि को बाहर कर दिया गया। इसके बाद इसमें कोई भी भारतीय अंपायर नहीं है। टेस्ट मैच के लिए अंपायरों को इसी सूची से चुना जाता है। इससे नीचे की श्रेणी में आने वाले आईसीसी के अंतरराष्ट्रीय पैनल के अंपायरों में चार भारतीय है जिसमें से सिर्फ नितिन मेनन (तीन टेस्ट , 24 एकदिवसीय और 16 टी 20 अंतरराष्ट्रीय) के पास टेस्ट मैचों का अनुभव है।

इनके अलावा सी. शमशुद्दीन (43 एकदिवसीय , 21 टी20 अंतरराष्ट्रीय), अनिल चौधरी (20 एकदिवसीय , 20टी 20 अंतरराष्ट्रीय) और वीरेन्द्र शर्मा (दो एकदिवसीय और एक टी20) को टेस्ट मैचों का अनुभव नहीं है।

अनुभव नहीं होने के बाद भी ये अंपायर जनवरी में इंग्लैंड के खिलाफ घरेलू टेस्ट श्रृंखला में अंपायरिंग कर सकते है। दो टेस्ट और 34 एकदिवसीय में अंपायरिंग करने वाले पूर्व अंतरराष्ट्रीय अंपायर हरिहरन ने भाषा को बताया , ‘‘ यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन इसके साथ ही एक बड़ा अवसर है। विभिन्न प्रारूप में अलग - अलग तरह का दबाव होता है। टेस्ट में पास के क्षेत्ररक्षकों द्वारा दबाव बनाया जाता है जबकि सीमित ओवरों के क्रिकेट में दर्शकों का शोरगुल अंपायरों के काम को मुश्किल बनाता है। ’’

उन्होंने कहा, ‘‘ सिर्फ अंपायरिंग फैसले ही नहीं , आक्रामक अपील और खराब रोशनी जैसी अन्य चीजें मुश्किल स्थिति पैदा कर सकती है। ऐसे में न्यूट्रल अंपायरों को स्थानीय अंपायरों की तुलना में निष्पक्ष फैसला लेने की संभावना अधिक होती है।’’

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मैचों में दो न्यूट्रल अंपायरों को रखने का नियम 2002 से लागू हुआ था। इससे पहले 1994 से लेकर 2001 तक एक स्थानीय और एक न्यूट्रल अंपायर रहता था। आईसीसी, स्थानीय एलीट और अंतरराष्ट्रीय पैनल के रेफरी और अंपायरों में से नियुक्ति करेगी। जिस देश में एलीट पैनल के मैच अधिकारी नहीं है वहां अंतरराष्ट्रीय पैनल के मैच अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी।

भारत में सिर्फ जवागल श्रीनाथ एलीट पैनल के मैच रेफरी है जबकि इस सिफारिश को मंजूरी मिलने के बाद अनिल चौधरी , शम्सुद्दीन और नितिन मेनन स्वदेश में टेस्ट मैचों में अंपायरिंग कर सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय समिति के एक मौजूदा अंपायर ने कहा कि सिर्फ घरेलू मैचों में अंपायरिंग करने से उनका काम मुश्किल होगा लेकिन वह इस चुनौती का लुत्फ उठाऐंगे।

उन्होंने गोपनीयता की शर्त पर भाषा से कहा, ‘‘ अगर आप घरेलू अंपायर है और घरेलू टीम खराब रोशनी के कारण खेल रोकने की मांग कर रही हे तो आपके द्वारा न्यूट्रल अंपायर की तुलना में उस मांग को मानने की अधिक संभावना होगी। इसी तरह अगर घरेलू टीम ने गेंद से कुछ गलत किया तो घरेलू अंपायर से कुछ छूट मिलने की संभावना रहती है।“

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उन्होंने कहा, ‘‘ आईसीसी ने सही कारणों से न्यूट्रल अंपायरों को रखने का फैसला किया था। मुझे उम्मीद है कि यह व्यवस्था थोड़े समय के लिए होगी। मैं अपने अनुभव से कह सकता हूं कि ज्यादातर अंपायर अपने घरेलू टीम के मैच में अंपायरिंग नहीं करना चाहते है क्योंकि इससे दबाव अधिक रहता है।’’

( With Input From Bhasa )

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