परिवर्तन ही संसार का नियम है और पिछले एक दशक (2010-2019) की बात करें तो, पूरी दुनिया में काफी तेजी से बदलाव आया है। इस बदलाव से खेल जगत भी अछूता नहीं रहा। वैसे तो पिछले 10 सालों में भारत ने खेलों के क्षेत्र में तेजी से प्रगति करते हुए काफी ख्याति अर्जित की लेकिन देश के सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट में कुछ ज्यादा ही बदलाव देखने को मिला।
इस दशक के अपने आखिरी मैच में भारत ने वेस्टइंडीज को 4 विकेट से हराया और 3 मैचों की वनडे सीरीज पर कब्जा जमाने के साथ ही दशक का अंत शानदार जीत के साथ किया। भारतीय क्रिकेट के पिछले 10 साल के प्रदर्शन पर नजर डाले तो इस दौरान टीम इंडिया ने केवल 28 साल बाद घर में वर्ल्ड कप पर कब्जा किया बल्कि क्रिकेट जगत में अपनी उस बादशाह को भी कायम किया जिसके लिए सिर्फ ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम जानी जाती थी।
वनडे में सचिन का दोहरा शतक
भारतीय क्रिकेट टीम के इस सुहाने दशक का सफर वैसे तो 1 जनवरी 2010 से माना जा सकता है लेकिन असल मायनों में इसका आगाज 24 फरवरी को उस समय हुआ जब सचिन तेंदुलकर वनडे क्रिकेट में पहला दोहरा शतक लगाने वाले दुनिया के पहले खिलाड़ी बने।
इस दोहरे शतक से ये तो साबित हो गया कि आखिर क्यों सचिन तेंदुलकर को भारत में धर्म की तरह पूजे जाने वाले क्रिकेट का भगवान कहती है। हालांकि क्रिकेट के असंख्य रिकॉर्ड्स अपने नाम करने के बावजूद भगवान और इसके भक्तों का एक सपना अब भी अधूरा था। ये सपना था भारत को एक बार फिर से वर्ल्ड कप जीतते देखना। हालांकि भक्तों की ये मुराद भी जल्द ही पूरी हो गई।
2011 वर्ल्ड कप
भगवान ने भक्तों की मुराद को पूरा करने के लिए चुना महेंद्र सिंह धोनी को जिनकी कप्तानी में भारत 28 साल बाद अपने घर में वर्ल्ड कप जीता और सचिन समेत करोड़ों भारतीय फैंस का सपना साकार हुआ। टीम इंडिया ने भले ही ये वर्ल्ड कप धोनी की कप्तानी में अपना नाम किया लेकिन मैन ऑफ द टूर्नामेंट रहे युवराज सिंह जिन्होंने कैंसर से जूझते हुए गेंद और बल्ले के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। युवराज ने टूर्नामेंट में 90 से ज्यादा की औसत से 362 रन बनाए और 15 विकेट अपने नाम किए।
एक तरफ जहां भारतीय टीम इस दशक की शुरूआत के साथ ही वनडे क्रिकेट में इतिहास रच रही थी। वहीं, दूसरी तरफ टीम इंडिया पहली बार टेस्ट क्रिकेट में नंबर 1 बनने का नया-नया स्वाद भी चख रही थी। टीम इंडिया को भले ही दिसंबर 2009 में टेस्ट की नंबर 1 टीम का दर्जा मिल गया हो लेकिन विदेशी धरती पर भारत का निराशाजनक प्रदर्शन में अभी भी कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया था।
सचिन, लक्ष्मण और द्रविड़ की विदाई
वर्ल्ड कप जीतने के लगभग 1 साल बाद भारतीय क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर ने मार्च 2012 में एशिया कप में अपने शतकों का शतक पूरा कर वनडे क्रिकेट को अलविदा कह दिया। हालांकि एक साल बाद उन्होंने टेस्ट समेत क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया। इसी के साथ भारतीय क्रिकेट में सचिन युग का अंत हो गया।
ऑस्ट्रेलिया की धरती पर साल 2012 में टेस्ट सीरीज में करारी शिकस्त खाने के बाद भारत क्रिकेट के दो महान बल्लेबाज- वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ ने भी क्रिकेट को अलविदा कह दिया। जिसके बाद इन दो महान बल्लेबाजों की जगह को भरने के लिए युवा बल्लोबाजों के बीच जद्दोजहद शुरू हो गई।
इस दशक के आगाज के 4 साल के भीतर ही टीम इंडिया ने वनडे क्रिकेट में वो कीर्तिमान स्थापित कर दिए थे जिसकी कल्पना शायद ही किसी ने की होगी। साल 2011 में वर्ल्ड कप जीतने के 2 साल बाद ही टीम इंडिया ने साल 2013 में इंग्लैंड में हुए आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी पर कब्जा जमाया। ये दूसरी बार था जब भारतीय टीम इस खिताब को जीतने में सफल रही और टूर्नामेंट की हीरो बने शिखर धवन जिन्होंने 5 मैचों में 90 की औसत से 363 रन बनाए।
इस बीच वनडे में भारतीय टीम जहां आए दिन नए रिकॉर्ड बना रही थी, वहीं, विदेशी धरती पर टेस्ट में अभी भी भारत का खराब रिकॉर्ड जारी था। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसी के घर में भारत लगातार दूसरी सीरीज हारने की कगार पर खड़ा था। इस सीरीज के बीच में ही धोनी ने अचानक कप्तानी के साथ-साथ टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया।
विराट युग का आगाज
धोनी के टेस्ट कप्तानी छोड़ने के बाद विराट कोहली ने टीम इंडिया की कमान संभाली। इसके बाद टीम इंडिया ही नहीं बल्कि विराट कोहली के प्रदर्शन में तेजी से सुधार देखने को मिला। कोहली की कप्तानी में भारतीय टीम आक्रामक होती जा रही थी जिसका असर अब विदेशी धरती पर भी साफ नजर आ रहा था। हालांकि विदेश में जीतना भारत के लिए अब भी दूर की कौड़ी था।
फिर वो पल भी आया जब भारत ने 'घर में शेर और बाहर ढेर' का दाग अपने सिर से मिटा दिया। कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया ने सितंबर 2015 में श्रीलंका को उसी के घर में हराया और तीन मैचों की सीरीज 2-1 से अपने नाम की। भारत ने 22 साल बाद श्रीलंका को उसी के घर में हराने में कामयाबी हासिल की। साल 2011 के बाद ये पहली बार था जब टीम इंडिया ने विदेश में कोई सीरीज जीती। इस जीत से प्रेरणा लेकर भारत ने घर में साउथ अफ्रीका को भी क्लीन स्वीप किया।
साल 2013 में चैंपियंस ट्रॉफी में जीतने के बाद अब भारत के सामने वर्ल्ड कप का खिताब बचाने की चुनौती थी। इसके लिए 2015 में ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड की सरजमीं पर मंच सज चुका था और शानदार फॉर्म में चल रही टीम इंडिया ने 2015 वर्ल्ड कप में विश्व विजेता टीम के तौर पर आगाज किया।
भारतीय टीम टूर्नामेंट में शानदार अंदाज में सभी मैच जीतते हुए सेमीफाइनल में पहुंची। हालांकि भारत का विजयी अभियान उस समय थम गया जब सेमीफाइनल में मेजबान ऑस्ट्रेलिया ने टीम इंडिया को हरा दिया। इस हार के साथ ही टीम इंडिया का लगातार दूसरी बार वर्ल्ड कप जीतने का सपना भी चकनाचूर हो गया।
इस हार के बाद धोनी की वनडे कप्तानी पर सवाल उठने लगे और आखिरकार साल 2017 के पहले महीने में उन्होंने लिमिटेड ओवर की कप्तानी भी त्याग दी। धोनी के बाद विराट को टीम इंडिया के सभी फॉर्मेट का कप्तान नियुक्त किया गया और टीम पहली बार युवा कप्तान के नेतृत्व में इंग्लैंड में खेले गए चैंपियंस ट्रॉफी में अपना खिताब बचाने के इरादे से उतरी।
विराट कोहली की कप्तानी में युवा खिलाड़ियों से सजी भारतीय टीम ने पूरे टूर्नामेंट में बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए फाइनल में अपनी जगह बनाई और खिताबी मुकाबले में उसका सामना चिर-प्रतिद्ंवदी पाकिस्तान से हुआ, लेकिन टीम एक बार फिर आईसीसी टूर्नामेंट जीतने में नाकाम रही।
विदेशी धरती पर रचा इतिहास
चैंपिंयस ट्रॉफी की असफलता को भुलाकर टीम ने एकजुट होकर अपने प्रदर्शन में सुधार करना जारी रखा जिसका परिणाम उसे टेस्ट क्रिकेट में जल्द ही देखने को मिला। साल 2018 में साउथ अफ्रीका और इंग्लैंड को कड़ी टक्कर देने के बाद भारतीय टीम ने 2018-19 के दौरे पर ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर हराकर इतिहास रचा। भारतीय क्रिकेट के 72 साल के इतिहास में ये पहली बार था जब टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया को उसी की सरजमीं पर टेस्ट सीरीज में शिकस्त दी। इस दौरे पर भारत ने वनडे सीरीज भी अपने नाम की।
ऑस्ट्रेलिया को उसी के घर में धोने के बाद भारत ने न्यूजीलैंड को 5 मैच की वनडे सीरीज में 4-1 से करारी शिकस्त दी। ऑस्ट्रेलिय और न्यूजीलैंड के दौरे के साथ ही भारतीय टीम ने आखिरकार अपने सिर से विदेश में न जीत पाने का दाग भी धो डाला।
टेस्ट में झंडे गाड़ने के बाद भारत के सामने अब 2019 वर्ल्ड कप की चुनौती थी। पिछले वर्ल्ड कप की हार को भुलाकर टीम इंडिया विराट कोहली की कप्तानी में दूसरी वर्ल्ड कप खेलने के लिए इंग्लैंड पहुंची। राउंड रॉबिन फॉर्मेट में खेले जाने वाले इस वर्ल्ड कप से पहले ही टीम इंडिया को खिताब का दावेदार माना जा रहा था। भारतीय टीम ने टूर्नामेंट का आगाज भी प्रबल दावेदार के तौर पर किया और शानदार प्रदर्शन करते हुए सेमीफाइनल तक पहुंची, लेकिन एक बार फिर उसे सेमीफाइनल में उलटफेर का शिकार होकर टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा। पिछले 5 साल में ये तीसरा बार था जब कोहली की कप्तानी में टीम इंडिया आईसीसी का बड़ा खिताब जीतने से चूक गई।
इस हार की यादों को भुलाते हुए टीम इंडिया ने कैरेबियाई टीम का दौरा किया और T20I और वनडे सीरीज जीत अपनी लय हासिल की। इस बीच पूर्व कप्तान गांगुली के बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठने के साथ ही भारत ने पहली बार डे-नाइट टेस्ट में बांग्लादेश के खिलाफ अपना डेब्यू किया और शानदार जीत दर्ज करते हुए गुलाबी गेंद क्रिकेट में अपना नाम दर्ज कराया।
इस दशक में भारत के प्रदर्शन पर नजर डालें तो साल 2010 से 2019 के बीच टीम इंडिया ने क्रिकेट के तीनों फॉर्मेट में अपना परचम लहराया। भारतीय टीम ने 2010 के दशक में आईसीसी के 5 बड़े टूर्नामेंट में से 2 पर कब्जा जमाया जिसमें 2011 वर्ल्ड कप और 2013 चैंपियंस ट्रॉफी शामिल हैं। वहीं, बाकी 3 टूर्नामेंट में भी उसका प्रदर्शन शानदार रहा।
भारतीय टीम 2010 के दशक में सबसे ज्यादा वनडे मैच खेलने वाली टीम रही। टीम इंडिया ने 2010 से 2019 के बीच कुल 249 वनडे मैच खेले जिसमें 157 में उसे जीत हासिल हुई। वहीं, 79 में उसे शिकस्त झेलनी पड़ी। इस तरह भारतीय टीम इस दशक की सबसे सफल वनडे टीम बनीं जिसका जीत-हार का अनुपात 1.987 का रहा।
टेस्ट क्रिकेट में भी भारतीय टीम अव्वल रही। पिछले 10 सालों में टीम इंडिया ने 106 टेस्ट मैच खेले जिसमें उसे 55 टेस्ट मैचों में जीत तो 29 में हार का सामना करना पड़ा। इस तरह भारतीय टेस्ट टीम के जीत-हार का अनुपात 1.931 का रहा जोकि सभी टीमों में सर्वाधिक है।
क्रिकेट के सबसे छोटे फॉर्मेट भी भारत ने तेजी से सुधार करते हुए इंटरनेशनल क्रिकेट में अपना डंका बजाया और इस दशक में सबसे ज्यादा मैच जीतने के मामले में पाकिस्तान के बाद वह दूसरे स्थान पर रही। भारत ने 2010-2019 के बीच 106 मैचों में से 68 में जीत का स्वाद चखा जबकि 36 में उस हार का मुंह देखना पड़ा। हालांकि जीत-हार के अनुपात में पाकिस्तान को पछाड़ कर शीर्ष स्थान पर रही।