नयी दिल्ली: सोमवार को टीम इंडिया और मेहमान साउथ अफ़्रीका के बीच दूसरे T20 मैच के दौरान दर्शकों का संभावित हार को देखकर हिंसक हो जाना और इस वजह से खेल का रुक जाना वाक़ई हमारे और ख़ासकर क्रिकेट खेल के लिए शर्म की बात है। ये एक ऐसी घटना है जिसने मेहमानों के सामने हमारी छवि पर बट्टा लगाया है। ग़ौरतलब है कि ये वही मेहमान हैं जिनकी रंगभेद नीति ख़त्म होने के बाद 1992 में क्रिकेट जगत में वापसी पर हमने ही मेहमानवाज़ी की थी।
घटना सोमवार रात टीम इंडिया और दक्षिण अफ्रीका के बीच हुए कटक में टी-20 मैच की है। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 92 रन बनाए। जवाब में दक्षिण अफ्रीका 11 ओवर में 3 विकेट खोकर 60 रन पार चुका था।
अचानक स्टेडियम में बैठे दर्शकों का गुस्सा फूटा और उन्होंने मैदान में बोतले फेंकना शुरू किया। दर्शक टीम इंडिया के खिलाफ नारेबाजी करने लगे।
जिस देश में क्रिकेट बेमौसम भी जुनून पैदा करने की ताक़त रखता है वहां इस तरह की घटना का हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है लेकिन हां आश्चर्य इस बात का हुआ कि जब दर्शक बदसलूकी पर आमादा हो गए और खेल रुक गया। टीम इंडिया भी हाथ पर हाथ रखकर बैठ गई। सवाल ये है कि ये वही दर्शक तो थे जिन्होंने आपको सिर आंखों पर बैठाया। बस ज़रा नाराज़ हो गए थे और ऐसे में क्या धोनी और विराट जैसे टीम इंडिया के सीनीयर खिलाड़ियों का फर्ज़ नहीं बनता था कि वे मैदान का चक्कर लगाकर उन्हें शांत करने की कोशिश करें...? क्यों उन्होंने हस्तक्षेप करके साउथ अफ़्रीका के खिलाड़ियों को ये भरोसा नहीं दिलाया कि उनकी हिफ़ाज़त के लिए पुलिस ही नहीं वे भी हैं...? लेकिन वे बीच मैदान में घेरा बनाकर यूं इत्मिनान से बैठे रहे मानों साउथ अफ़्रीका की तरह वो भी कोई मेहमान हों।
जब डालमिया और सचिन ने उग्र दर्शकों को शांत किया, पढ़ें अगले पेज पर