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जिम्बाब्वे पर बैन लगने के बाद पाकिस्तान क्रिकेट भी आया कटघरे में, इस वजह से लग सकता है उस पर भी बैन

जिम्बाब्वे के मसले के बाद पीसीबी को अगर प्रतिबंध से बचना है तो उसे उन अनुच्छेदों को संविधान से अलग करना पड़ सकता है। 

Reported by: IANS
Published : July 21, 2019 10:53 IST
Pakistan Cricket Fan
Image Source : TWITTER- @THEREALPCB Pakistan Cricket Fan

अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) ने जिम्बाब्वे को प्रतिबंधित कर दिया है। इसका कारण आईसीसी ने जिम्बाब्वे बोर्ड में सरकार के दखल को बताया और यही कारण पाकिस्तान के लिए चेतावनी हो सकता है क्योंकि पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) में पाकिस्तान सरकार का सीधा दखल है। यहां का प्रधानमंत्री पीसीबी का पैट्रन होता है। पाकिस्तानी अखबार 'द डॉन' के मुताबिक, पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के संविधान के मुताबिक उसमें कई ऐसे अनुच्छेद हैं जो सरकारी दखल की बात कहते हैं। साथ ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को पीसीबी के पैट्रन का दर्जा भी हासिल है। 

पीसीबी के मौजूदा संविधान को 2014 में पूर्व अध्यक्ष नजम सेठी के रहते मंजूरी मिल गई थी। सेठी से पहले पीसीबी अध्यक्ष जाका अशरफ के रहते भी संविधान में कुछ बदलाव किए गए थे और तब अशरफ ने कहा था कि आईसीसी ने संविधान को मान्यता दे दी है। 

इस संविधान में कई जगह सरकार के दखल का जिक्र है। जिम्बाब्वे के मसले के बाद पीसीबी को अगर प्रतिबंध से बचना है तो उसे उन अनुच्छेदों को संविधान से अलग करना पड़ सकता है। 

पीसीबी के संविधान में एक अनुच्छेद है नंबर-45। इसके मुताबिक, "अगर सरकार चाहे तो या उसे लगे तो वह बोर्ड के संविधान में बदलाव, परिवर्तन, कुछ हटाना, जोड़ना कर सकती है।"

एक और नियम के मुताबिक, "पैट्रन समय-समय पर बोर्ड की जनरल पॉलिसी में निर्देश दे सकता है और बोर्ड से उन्हें लागू करने को भी कह सकता है।"

वहीं, पैट्रन को पीसीबी अध्यक्ष को हटाने और बोर्ड की सर्वोच्च परिषद-बोर्ड ऑफ गर्वनर्स को हटाने का अधिकार भी होता है। वहीं बोर्ड ऑफ गर्वनर्स के दो सदस्य पैट्रन द्वारा नामित किए जाते हैं और उनमें से एक पीसीबी चैयरमैन बनता है। 

जिम्बाब्वे से पहले भी आईसीसी ने सरकारी दखल के कारण श्रीलंका और नेपाल को प्रतिबंधित किया है। हालांकि आईसीसी ने भारतीय क्रिकेट बोर्ड मामले में अलग रुख अख्तियार किया था। भारत की सर्वोच्च अदालत ने 2013 आईपीएल स्पॉट फिक्सिंग मामले के बाद बीसीसीआई का कामकाज देखने के लिए लोढ़ा समिति को नियुक्त किया था। तब हालांकि बोर्ड के तत्कालीन सचिव अजय शिर्के ने आईसीसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) डेव रिचर्डसन से इस मामले में हस्तक्षेप करने को कहा था। 

तब रिचडर्सन ने यह कहा था कि पहले बीसीसीआई इस संबंध में न्यायालय के हस्तक्षेप को लेकर आईसीसी को लिखित जानकारी दे और अपनी आपत्ति जताए। 

शिर्के ने इसके बाद कहा था कि 2013 में शशांक मनोहर ने सर्वोच्च अदालत में एफिडेविट डाल कहा था कि वह इस मामले को लेकर आईसीसी, बीसीसीआई को प्रतिबंधित कर सकता है, लेकिन मनोहर इस समय आईसीसी चैयरमेन रहते बीसीसीआई के खिलाफ कोई भी कदम नहीं उठा रहे हैं। 

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