2 और 3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात भोपाल के इतिहास का काला अध्याय बन गई। अमेरिकी कंपनी से रिसी जहरीली गैस 'मिथाइल आइसोसाइनाइट' भोपाल में हवा के सहारे फैल गई और देखते ही देखते यह गैस हजारों लोगों की जिंदगियों को खत्म कर गई। पढ़ें कैसा था उस रात को तबाही का मंजर।
भोपाल गैस त्रासदी के बाद पूरे देश में वारेन एंडरसन को दोषी मानते हुए सजा देने की मांग हुई थी। हालांकि वो इतने बड़े हादसे के बाद भी कुछ ही घंटों में देश से निकलने में सफल रहा था।
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से दो-तीन दिसंबर 1984 की मध्य रात्रि को मिथाइल आइसोसाइनेट के रिसाव से शहर के 15 हजार से अधिक लोग मारे गए थे और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित हुए।
कोविड-19 की वजह से हुई बहुसंख्यक गैस पीड़ितों की मौतों से यह सिद्ध होता है कि 35 साल बाद गैस पीड़ितों का स्वास्थ्य इसलिए नाजुक है
विशाखापत्तनम में जहरीली गैस के रिसाव की इस घटना ने करीब 36 साल पहले हुई ऐसी ही एक दुर्घटना की यादें ताजा कर दीं। भोपाल के इस हादसे में 3000 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी।
करीब 35 साल पहले हुई भयावह औद्योगिक त्रासदी ‘भोपाल गैस कांड’ की जंग जीतने वाले पांच व्यक्ति कोरोना वायरस महामारी की जंग हार गए।
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने सोमवार को केंद्र और राज्य सरकार, याचिकाकर्ताओं तथा अन्य से 1984 की भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को उपलब्ध कराई जा रही स्वास्थ्य सुविधाओं की गुणवत्ता में सुधार के लिए आवश्यक कदमों पर सुझाव मांगे।
दिल्ली में रहने वाले स्वतंत्र डॉक्यूमेंट्री फोटोग्राफर रोहित जैन ने ‘चिल्ड्रन डिसैबिलिटीज: अ फॉरगॉटेन केस ऑफ यूनियन कार्बाइड' प्रोजेक्ट के लिए दिव्यांग बच्चों और युवाओं की खौफनाक तस्वीरों को अपने कैमरे में कैद किया था।
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की सड़कों पर रविवार को यूनियन कार्बाइड गैस पीड़ितों ने एक बार फिर सरकारों के खिलाफ गुस्सा दिखाते हुए मशाल जुलूस निकाला।
गैस हादसे के समय पदस्थ तत्कालीन जिलाधिकारी मोती सिंह और पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भोपाल के सीजेएम की अदालत में दायर याचिका पर जबलपुर उच्च न्यायालय ने रोक जारी रखी है।
भोपाल गैस हादसे की 33वीं बरसी को आज सभी याद कर रहे हैं। रविवार की सुबह कुछ लोगों ने कफन ओढ़कर राजभवन के सामने प्रदर्शन किया।
मध्यप्रदेश की राजधानी में 33 साल पहले हुए गैस हादसे में मिली बीमारी ने कई महिलाओं की कोख को आबाद नहीं होने दिया। कई परिवारों के आंगन में हादसे के बाद कभी किलकारी नहीं गूंजी।
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