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Mata Vaishno Devi Mandir: चाहे कुछ भी हो जाए, वैष्णो माता के दर्शन से पहले हर हाल में अर्द्धकुंवारी मंदिर में टेकें मत्था, जानिए ऐसा क्यों है जरूरी

Vaishno Devi: माता वैष्णो देवी की यात्रा पर जाने के लिए हर साल लाखों की संख्या में भक्तगण कटरा आते हैं। यहां माता रानी के भवन से पहले बाणगंगा और अर्द्धकुंवारी मंदिर आते हैं। इन दोनों जगहों को लेकर अहम मान्यताएं प्रचलित हैं। तो आइए जानते हैं अर्द्धकुंवारी मंदिर की पौराणिक कथा।

Written By: Vineeta Mandal
Updated on: October 11, 2023 16:55 IST
Vaishno Devi Mandir- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Vaishno Devi Mandir

Mata Vaishno Devi Mandir: इस साल शारदीय नवरात्रि 15 अक्टूबर 2023 से प्रारंभ हो रहे हैं। पूरे नौ दिनों तक देवी के हर मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। खासतौर से प्रसिद्ध देवी मंदिर और शक्तिपीठ में नवरात्रि की खास रौनक देखने को मिलती है। माता रानी के जयकारों से दुर्गा मंदिर गूंज उठते हैं। माता वैष्णो देवी मंदिर में भी नवरात्र के मौके पर भक्तों की काफी भीड़ जुटती है। हर साल लाखों भक्तों माता वैष्णो के दरबार में मत्था टेकने आते हैं।  त्रिकुट पर्वत पर स्थित मां वैष्णों देवी के दर्शन के लिए भक्तगण करीब 14 किलोमिटर की चढ़ाई पूरी कर के आते हैं। बता दें कि मां वैष्‍णो देवी को त्रिकुटा के नाम से जाना जाता है, इसलिए इस पर्वत को त्रिकुटा पर्वत कहते हैं। वैष्णों देवी की यात्रा के दौरान बाणगंगा और अर्द्धकुंवारी मंदिर भी आते है। माता रानी के भक्तों को अर्द्धकुंवारी मंदिर के दर्शन भी जरूर करना चाहिए। इस मंदिर को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। 

अर्द्धकुंवारी मंदिर की मान्यताएं

अर्द्धकुंवारी मंदिर को गर्भजून गुफा के नाम से भी जाना जाता है। इस गुफा को लेकर मान्यता है कि यहां माता वैष्णो देवी ने पूरे 9 माह तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा के दर्शन करता है उसे मृत्यु और जीवन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। गर्भजून गुफा का आकार दिखने में बहुत छोटा है लेकिन हर तरह के व्यक्ति यहां से आसानी से निकल जाता है। बस उसके मन और दिल में माता रानी की भक्ति हो और किसी के लिए कोई द्वेष न हो। इतना ही नहीं गर्भजून गुफा के दर्शन करने से भक्तों का जीवन खुशहाल और समृद्ध हो जाता है। 

अर्द्धकुंवारी मंदिर की पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, एक गांव में श्रीधर नाम के व्यक्ति थे। वे माता रानी के परम भक्त थे। दिन रात माता वैष्णो की भक्ति में लीन रहते थे। एक दिन माता रानी ने कन्या रूप में श्रीधर को दर्शन दिए और कहा कि वह एक भव्य भंडारा आयोजित करें। देवी मां के आशीर्वाद से श्रीधर ने भंडारा का आयोजन किया, जिसमें भैरव नाथ को भी निमंत्रण दिया गया। वैष्णव भंडारे में भैरवनाथ ने मांस और मदिरा की मांग की। उस भंडारे में कन्या रूपी वैष्णो देवी भी मौजूद थीं। उन्होंने भैरव से कहा कि यह वैष्णव भंडारा है यहां मांसहार भोजन नहीं मिलेगा। जब भैरव नाथ ने उस कन्या को पकड़ना चाहा, तब मां ने उसके कपट को जान लिया और अपना रूप बदलकर त्रिकूटा पर्वत की तरफ चली गई। भैरव नाथ भी उनके पीछे गया। कहा जाता है कि माता वैष्णो की रक्षा के लिए उनके साथ हनुमान जी भी थे। इसी बीच बजरंगबली को प्यास लग गई और उन्होंने माता रानी से पानी देने का आग्रह किया। तब माता वैष्णो ने धनुष बाण से पहाड़ पर जलधारा निकाली, जिसमें उन्होंने अपने बाल भी धोएं। बाद में इसी जगह को बाणगंगा के नाम से जाना जाने लगा।

इसके बाद देवी मां एक गुफा में चली गई जहां उन्होंने पूरे 9 मास तक तपस्या की। कथा के मुताबिक, जब भैरव नाथ मां वैष्णो का पीछा करते हुए उस गुफा तक पहुंच गया तब माता वैष्णो ने भैरव नाथ का वध कर दिया। अपने अंतिम समय में भैरव नाथ ने अपनी गलती की माफी मांगी। कहते हैं कि इसी के बाद माता वैष्णो ने भैरव नाथ को वरदान दिया और कहा कि तुम्हारे दर्शन के बिना मेरे दर्शन पूरे नहीं होंगे। इसके बाद से ही जो भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करता है वो भैरव नाथ मंदिर जरूर जाता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।) 

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