Sawan 2023 Special Story: भगवान शिवजी सभी देवी-देवताओं में अत्याधिक भोले माने जाते हैं। वे अपने भक्तों से आसानी से प्रसन्न होकर उन्हें मनचाहा वरदान प्रदान कर देते हैं। भोलेनाथ ही एक ऐसे देव हैं, जिन्हें कोई 56 भोग नहीं चढ़ाया जाता है। महादेव को खुश करने के लिए एक लोटा जल और कुछ बेलपत्र के पत्ते ही काफी होते हैं। इतने साधारण और भोले स्वाभाव होने के बावजूद भी शिवजी को सति से विवाह उनके पिता के विरुद्ध जाकर करना पड़ा था। राजा दक्ष भगवान शिव शंकर बिल्कुल भी पसंद नहीं थे। वह अपनी बेटी का विवाह उनसे कभी नहीं करवाना चाहते थे। यही वजह है कि विवाह के बाद भी शिवजी को जमाई के रूप में राजा दक्ष ने उन्हें कभी नहीं अपनाया था। तो आइए जानते हैं कि आखिर ऐसा क्यों था कि दक्ष शिवजी को इतना नापसंद करते थे।
भगवान शिव को नहीं मानते थे अपनी बेटी के योग्य
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, भोलेनाथ अक्खड़ और योगी थे, जिनका रंग-रूप और रहन-सहन का तरीका भी अन्य देवताओं से बिल्कुल अलग था। जहां अन्य देव सोने, हीरे-मोती के गहने और रेशम के कपड़े पहन कर महलों में रहते थे। वहीं इसके उलट भगवान शिव शरीर पर भस्म लगाएं, गले में सांप लिपटे बर्फ से घिरे कैलाश पर्वत और जंगलों में अपना बसेरा बनाए हुए थे। ऐसे में राजा दक्ष शिवजी को अपनी बेटी सती के योग्य नहीं मानते थे। उन्हें लगता था कि उनकी बेटी जो महलों में पली-बढ़ी और दास-दासियों से घिरी रही वह कैसे एक अक्खड़ शिव के साथ रहेंगी। लेकिनमाता सती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तप और पूजा किया।
राजा दक्ष ने माता सती का स्वयंवर आयोजन किया और उसमें भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया। हालांकि सती ने महादेव को अपना पति मान लिया था। उन्होंने शिवजी को पाने के कठोर तप और पूजा किया। सती ने भगवान शिव का नाम लेते हुए स्वयंवर में पृथ्वी पर वरमाला डाल दी। तब स्वयं शिव वहां पर प्रगट होकर सती के द्वारा डाली गई वरमाला को पहन लिया था। इसके बाद शिव जी ने सती को अपनी पत्नी स्वीकार कर वहां से चल गए। यह बात राजा दक्ष को बिल्कुल पसंद नहीं आई कि उनकी इच्छा के विपरीत सती का विवाह शिव के साथ हुआ।
... इसलिए भोले शंकर को नहीं पसंद करते थे राजा दक्ष
प्रचलित मान्यताओं के मुताबिक, दक्ष प्रजापति को ब्रह्मा जी ने मानस पुत्र के रूप में पैदा किया था। वे विष्णु जी के भी परम भक्त थे। कहते हैं कि ब्रह्मा जी के 5 सिर हुआ करते हैं। इसमें से 3 सिर वेदपाठ करते थे लेकिन बाकी दो सिर वेद को भला-बुरा कहा कहते थे। इसी से नाराज होकर शिवजी ने एक दिन ब्रह्मा जी के पांचवें सिर को काट दिया। दक्ष प्रजापित अपने पिता ब्रह्राा के सिर को काटने की वजह से शिवजी से क्रोधित रहने लगे। हालांकि इस कथा को ज्यादा नहीं माना जाता है।
शिव का नहीं उठना दक्ष को खल गया
एक अन्य मान्यता के अनुसार, एक यज्ञ का आयोजन था जिसमें सभी देवी-देवता पहुंचे हुए थे। उस यज्ञ में शामिल होने के लिए राजा दक्ष भी पहुंचे तब उनके स्वागत में वहां मौजूद सभी लोग और देवी-देवता खड़े हो गए लेकिन शिवजी ब्रह्मा जी के साथ बैठे रहे। इस बात को लेकर दक्ष काफी अपमानित महसूस करने लगे। इसी घटना के बाद से राजा दक्ष ने भगवान शिव को कभी पसंद नहीं किया।
जब सती ने अग्नि में कूदकर दे दी थी जान
आपके बता दें कि माता सती और भगवान शिव के विवाह के काफी समय बाद राजा दक्ष ने कनखल में एक यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ में उन्होंने सभी देवी-देवता को बुलाया लेकिन अपनी बेटी और जमाई को नहीं बुलाया। जब माता सती को इस बात का पता चला तो वह बिना बुलाए उस यज्ञ में शामिल होने के लिए चली गई। यज्ञस्थल में दक्ष प्रजापति ने सती और शिवजी का अपमान किया, जिसे सती सहन नहीं कर सकीं ओर यज्ञ की अग्निकुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया। इस बाद का पता जब भगवान शिव को चला चला तो हर जगह त्राहिमाम मच गया। भगवान् शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा उस यज्ञ का विध्वंस करा दिया।वीरभद्र ने दक्ष प्रजापति का सिर भी काट डाला। बाद में ब्रह्मा जी के द्वारा प्रार्थना किए जाने पर भगवान् शिव ने दक्ष प्रजापति को उसके सिर के बदले में बकरे का सिर प्रदान कर यज्ञ को पूरा कराया।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। इंडियाटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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