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क्यों युद्ध के मैदान में आमने-सामने आए भगवान राम और महादेव? किसकी हुई थी जीत, पढ़ें रोचक कहानी

हिंदू शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव और रामजी एक बार युद्ध के मैदान में आमने-सामने आए थे। ये युद्ध क्यों हुआ था और इसका नतीजा क्या निकाल, आइए जानते हैं विस्तार से।

Written By: Naveen Khantwal
Published on: April 14, 2024 13:05 IST
India Mythology - India TV Hindi
Image Source : INDIA TV India Mythology

राम जी ने लंका पर चढ़ाई करने से पहले भगवान शिव की आराधना की थी। राम जी महादेव को अपना आराध्य मानते थे, वहीं भगवान शिव भी राम की महिमा को समझते हैं। परंतु एक बार ये दोनों युद्ध के मैदान में आमने-सामने आ गए थे। युद्ध के मैदान में इन दोनों को एक दूसरे के खिलाफ क्यों लड़ना पड़ा, आइए विस्तार से जानते हैं। 

भगवान राम और शिव इसलिए युद्ध के मैदान में आए आमने-सामने 

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, एक बार भगवान राम ने अश्वमेघ यज्ञ करवाया था। इस यज्ञ के दौरान अश्व जिस भी राज्य में जाता है, उस राज्य के राजा को अश्मेघ करवाने वाले राजा की श्रेष्ठता को मानना पड़ता है। अगर राजा ऐसा नहीं करता तो अश्वमेघ करवाने वाले राजा के साथ उसे युद्ध के मैदान में उतरना पड़ता है। 

भगवान राम का अश्व यानि घोड़ा बहुत से राज्यों में गया और वहां के राजाओं ने राम जी की श्रेष्ठता को स्वीकार किया। लेकिन जब अश्व देवपुर पहुंचा तो वहां के राजा वीरमणि के पुत्र रुक्मांगद ने अश्व को बंदी बना लिया। आपको बता दें कि जिस भी राज्य में अश्व को बंदी बनाया जाता था, इसका अर्थ होता था कि वो राजा अश्वमेघ करवाने वाले राजा की श्रेष्ठता को नहीं मानता। राजा वीरमणि को जब ये बात पता चली कि उनके पुत्र ने भगवान राम के अश्वमेघ यज्ञ के अश्व को बंदी बना लिया है तो वो बहुत अप्रसन्न हुए, क्योंकि वीरमणि भी भगवान राम को सबसे उत्तम राजा मानते थे। 

वीरमणि और राम जी की सेना के बीच हुआ युद्ध

वीरमणि के पुत्र ने जब अश्व को बंदी बना लिया तो उसके बाद युद्ध होना स्वाभाविक हो गया, न चाहते हुए भी वीरमणि को युद्ध लड़ना पड़ा। युद्ध शुरू हुआ तो राम जी की सेना, जिसके सेनानायक शत्रुघ्न जी थे वीरमणि की सेना पर भारी पड़ने लगी। अपनी सेना को हारता देख वीरमणि ने भगवान शिव का आवाहन किया, वीरमणि को भगवान शिव का वरदान था कि वो स्वयं उनके राज्य की रक्षा करेंगे। वीरमणि की पुकार पर भगवान शिव ने अपने गणों नंदी, भृंगी और वीरभद्र को युद्ध के मैदान में भेजा। जिसके बाद वीरमणि की सेना राम जी की सेना पर हावी हो गई, वीरभद्र ने त्रिशूल से भरत के पुत्र पुष्कल का वध कर दिया साथ ही शत्रुघ्न को भी बंदी बना दिया। 

भगवान राम और शिव आए युद्ध के मैदान में 

शत्रुघ्न के बंदी बनाए जाने और पुष्कल के मृत्यु की खबर जब राम जी को मिली तो वो भरत और लक्ष्मण के साथ युद्ध के मैदान में पहुंचे। राम जी के आते ही शिव गणों का प्रभाव कम होने लगा। राम जी की सेना एक बार फिर वीरमणि की सेना पर हावी होने लगी। जब शिव ने देखा कि उनके गण परास्त होने लगे हैं तो वो स्वयं वहां प्रकट हो गए। इसके बाद शंकर जी और श्रीराम के बीच भयंकर युद्ध की शुरुआत हुई। 

यह युद्ध बहुत समय तक चला अंत में राम जी ने भगवान शिव से प्राप्त पाशुपतास्त्र उनपर चला दिया जो भगवान शिव के हृदय पर जाकर लगा। भगवान शिव यही चाहते थे कि संकट की घड़ी में राम जी उनके अस्त्र का इस्तेमाल करें। पाशुपास्त्र जब शिव जी पर लगा तो वो राम जी से संतुष्ट हुए और उनसे वर मांगने को कहा। श्रीराम ने शिवजी से कहा कि, हे महाकाल इस युद्ध में जितने भी योद्धा मरे हैं वो सब जीवित हो जाएं। इसके बाद सारे योद्धा जीवित हुए और युद्ध समाप्त हुआ। 

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