Vrindavan: यूं तो पूरे बृज के कण-कण में कान्हा जी बसे हुए हैं लेकिन वृंदावन वह स्थान है जहां यशोदा नंदन साक्षात विराजमान हैं। वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर वो पावन स्थान है जहां आपको भगवान कृष्ण के होने की अनुभूति होगी। इस मंदिर से लोगों की आस्था इतनी गहरी जुड़ी है कि यहां हर रोज भक्तों का तांता लगा रहता है। बिहारी जी की एक झलक पाने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। बांके बिहारी मंदिर से हर भक्त अपनी झोली भरकर लौटता है यहां से कृष्ण-कन्हैया किसी भी भक्त को खाली हाथ नहीं लौटाते हैं। लेकिन वृंदावन की पावन धरती पर हर किसी को आने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हो पाता है। यहां आने के लिए भक्तों को कठिन तप, इंतजार और कृष्ण प्रेम में डूबना पड़ता है उसके बाद ही उसे यहां आने का मौका मिल पाता है।
धार्मिक मान्यता है कि वृंदावन में भगवान कृष्ण के शरण में आने के लिए बड़े-बड़े महात्मा मुनि और ऋषियों ने भी घोर तप किया है उसके बाद ही उन्हें यहां स्थान मिल पाया है। वृंदावन में मौजूद पशु-पक्षी, घास-पौधा, कीड़ा, चींटी आदि चीजें अपने तप और भक्ति के कारण यहां बसे हुए हैं। ऐसे में प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि वृंदावन से लोगों को तुलसी, घास, पेड़-पौधे, मिट्टी आदि चीजें कभी भी घर नहीं लानी चाहिए। प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक, इन सब चीजों को वृंदावन से दूसरे स्थान पर ले जाना किसी अपराध से कम नहीं होता है। वृंदावन से गिरीराज जी को भी कभी घर नहीं लाना चाहिए यह भी पाप समान माना गया है।
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि अगर लोगों को वृंदावन धाम से कुछ ले जाना है तो उन्हें यहां से चंदन, रंग, पंचामृत और कान्हा जी के कपड़े ले जा सकते हैं। लेकिन वृक्ष, लता, जीव, तुलसी आदि चीजें ले जाने की भूल कभी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि ये सब चीजें अपने तप के कारण ही वृंदावन में हैं और लोग इन्हें यहां से दूर कर के बहुत बड़ा अपराध कर देते हैं। लोग अनजाने में इन्हें बांके बिहारी जी अलग कर देते हैं जिनके पास रहने के लिए उन्होंने सालों तप और इंतजार किया था।
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