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Pitru Paksha 2024: पितृ पक्ष के दौरान पितरों का श्राद्ध करते समय इन बातों का रखें ध्यान, बिल्कुल भी न करें ये गलतियां

Pitru Paksha 2024: पिंडदान और श्राद्ध नहीं करने वाले लोगों के संतान की कुंडली में भी पितृ दोष का योग बनता है और अगले जन्म में वह भी पितृदोष से पीड़ित होता है। पितृ दोष में पिंडदान और श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मुक्ति मिलने के साथ ही भागयोदय भी होता है। साथ ही सुख, शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Vineeta Mandal Published on: September 23, 2024 6:00 IST
Pitru Paksha 2024- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Pitru Paksha 2024

Pitru Paksha 2024 Shradh Niyam: पितृ पक्ष की शुरुआत आश्विन कृष्ण पक्ष की शुरूआत के एक दिन पहले यानि भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से ही हो जाती है। इस तरह सभी स्थितियां सामान्य होने पर यह पक्ष सोलह दिन का होता है। पितृ पक्ष में पितरों का श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है, जिस दिन उनका स्वर्गवास हुआ हो। देखिए कृष्ण पक्ष में केवल प्रतिपदा से अमावस्या तक की तिथियां होती हैं और अगर किसी का स्वर्गवास पूर्णिमा के दिन हुआ हो तो श्राद्ध कब करेंगे? इस परेशानी के निवारण के लिये ही शास्त्रों में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से महालया, यानि पितृ पक्ष की शुरुआत का प्रावधान किया गया है। 

श्राद्ध कितने प्रकार के होते हैं-

भविष्य पुराण के अनुसार कुल बारह प्रकार के श्राद्ध होते हैं, जो कि इस प्रकार हैं- पहला नित्य, दूसरा नैमित्तिक, तीसरा काम्य, चौथा वृद्ध, पांचवा सपिंडित, छठा पार्वण, सातवां गोष्ठ, आठवां शुद्धि, नौवां

कर्मांग, दसवां दैविक, ग्यारहवां यात्रार्थ और बारहवां पुष्टि।

श्राद्ध के दौरान इन बातों का रखें ध्यान

1. श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है क्योंकि शाम का समय दैत्यों का माना जाता है।

2. श्राद्ध कर्म कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए। जैसे अगर आप अपने किसी रिश्तेदार के घर हैं और श्राद्ध चल रहे हैं, तो आपको वहां पर श्राद्ध करने से बचना चाहिए। अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध ही फलदायी होता है। हालांकि पुण्यतीर्थ या मंदिर या अन्य पवित्र स्थान दूसरे की भूमि नहीं माने जाते। अतः आप पवित्र स्थानों पर श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। 

3. श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना बेहतर होता है। श्राद्ध में तुलसी व तिल के प्रयोग से पितृगण प्रसन्न होते हैं। अतः श्राद्ध के भोजन आदि में इनका उपयोग जरूर करना चाहिए। श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान बड़ा ही पुण्यदायी बताया गया है। अगर हो सके तो श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन भी चांदी के बर्तनों में ही कराना चाहिए।

4. श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना चाहिए और अपनी भूमि पर या किसी पवित्र स्थान पर करना चाहिए। श्राद्ध के दौरान हो सके तो चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान करना चाहिए।
साथ ही ब्राह्मणों को भी चांदी के बर्तनों में भोजन कराना चाहिए।

5. इसके अलावा श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण को भोजन कराये श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन ग्रहण नहीं करते और ऐसा करने से व्यक्ति को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। 

6. श्राद्ध से एक दिन पहले ही ब्राह्मण को खाने के लिये निमंत्रण दे आना चाहिए और अगले दिन खीर, पूड़ी, सब्जी और अपने पितरों की कोई मनपसंद चीज और एक मनपसंद सब्जी बनाकर ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए। 

7. आपके जिस भी पूर्वज का स्वर्गवास है, उसी के अनुसार ब्राह्मण या ब्राह्मण की पत्नी को निमंत्रण देकर आना चाहिए। जैसे अगर आपके स्वर्गवासी पूर्वज एक पुरुष हैं तो पुरुष ब्राह्मण को और अगर महिला है तो ब्राह्मण की पत्नी को भोजन खिलाना चाहिए। साथ ही ध्यान रखें कि अगर आपका स्वर्गवासी पूर्वज़ कोई सौभाग्यवती महिला थी, तो किसी सौभाग्यवती ब्राह्मण की पत्नी को ही भोजन के लिये निमंत्रण देकर आएं। 

8. ब्राह्मण को खाना खिलाते समय दोनों हाथों से खाना परोसें और ध्यान रहे श्राद्ध में ब्राह्मण का खाना एक ब्राह्मण को ही दिया जाना चाहिए। ऐसा नहीं है कि आप किसी जरूरतमंद को दे दें। श्राद्ध में पितरों की तृप्ति केवल ब्राह्मणों द्वारा ही होती है। अतः श्राद्ध में ब्राह्मण का भोजन एक सुपात्र ब्राह्मण को ही कराएं। 

9. भोजन कराते समय ब्राह्मण को आसन पर बिठाएं। आप कपड़े, ऊन, कुश या कंबल आदि के आसन पर बिठाकर भोजन करा सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे आसन में लोहे का प्रयोग बिल्कुल भी नहीं होना चाहिए।  भोजन के बाद ब्राह्मण को अपनी इच्छा अनुसार कुछ दक्षिणा और कपड़े आदि भी देने चाहिए। 

10. श्राद्ध के दिन बनाये गये भोजन में से गाय, देवता, कौओं, कुत्तों और चींटियों के निमित भी भोजन जरूर निकालना चाहिए। देखिये किसी भी हाल में कौओं और कुत्तों का भोजन उन्हें ही कराना चाहिए, जबकि देवता और चींटी का भोजन आप गाय को खिला सकते हैं। 

11. ब्राह्मण आदि को भोजन कराने के बाद ही घर के बाकी सदस्यों या परिजनों को भोजन कराएं। एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहन, जमाई और भांजे को भी श्राद्ध के दौरान भोजन जरूर कराएं। ऐसा न करने वाले व्यक्ति के घर में पितरों के साथ-साथ देवता भी भोजन ग्रहण नहीं करते। श्राद्ध के दिन अगर कोई भिखारी या कोई जरूरमंद आ जाए तो उसे भी आदरपूर्वक भोजन जरूर कराना चाहिए।  

12. श्राद्ध के भोजन में जौ, मटर, कांगनी और तिल का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। कहते हैं तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं। साथ ही श्राद्ध के कार्यों में कुशा का भी महत्व है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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