Friday, November 22, 2024
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Pitru Paksha 2023: इस समय बिल्कुल न करें पितरों का श्राद्ध, जानिए आखिर क्यों जरूरी होता है पूर्वजों का श्राद्ध करना?

Pitru Paksha 2023: पितरों का श्राद्ध करना क्यों जरूरी होता है और इसके पीछे क्या मान्यताएं जुड़ी हुई हैं। पूर्वजों का श्राद्ध किस समय नहीं करना चाहिए। इन सभी सवालों का जवाब जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Vineeta Mandal Published on: October 04, 2023 6:30 IST
pitru paksha 2023- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV pitru paksha 2023

Pitru Paksha 2023: पितृ दोष को सबसे बड़ा दोष माना गया है। कुंडली का नौंवा घर धर्म का होता है । यह घर पिता का भी माना गया है। यदि इस घर में राहु, केतुऔर मंगल अपनी नीच राशि में बैठे हैं तो यह इस बात का संकेत है कि आपको पितृ दोष है। पितृ दोष के कारण जातक को मानसिक पीड़ा, अशांति, धन की हानि, गृह-क्लेश जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पिण्डदान और श्राद्ध नहीं करने वाले लोगों के संतान की कुंडली में भी पितृदोष का योग बनता है और अगले जन्म में वह भी पितृ दोष से पीड़ित होता है। पितृ दोष में पिंड दान और श्राद्ध कर्म करने से पितरों को मुक्ति मिलने के साथ ही आपका भागयोदय भी होता है, साथ ही सुख, शांति और वैभव की प्राप्ति होती है।

पितृपक्ष की शुरुआत आश्विन कृष्ण पक्ष की शुरुआत के एक दिन पहले, यानि भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से ही हो जाती है। इस तरह सभी स्थितियां सामान्य होने पर यह पक्ष सोलह दिन का होता है। पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध उसी तिथि को किया जाता है, जिस दिन उनका स्वर्गवास हुआ हो।

श्राद्ध का क्या है महत्व, क्यों है यह इतना जरूरी?

ब्रह्मपुराण के अनुसार जो कुछ उचित काल, पात्र, एवं स्थान के अनुसार उचित विधि द्वारा पितरों को लक्ष्य करके श्रद्धापूर्वक ब्राह्मणों को दिया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है। मिताक्षरा ने लिखा है- पितरों को उद्देश्य करके, उनके कल्याण के लिए, श्रद्धापूर्वक किसी वस्तु का या उनसे संबंध्त किसी द्रव्य का त्याग श्राद्ध है।

श्राद्ध के बारे में याज्ञवल्कय का कथन है कि पितर लोग, यथा- वसु, रुद्र एवं आदित्य, जो श्राद्ध के देवता हैं, श्राद्ध से सन्तुष्ट होकर मानवों के पूर्वपुरुषों को संतुष्टि देते हैं। मत्स्यपुराण और अग्निपुराण में भी आया है कि पितामह लोग श्राद्ध में दिए गए पिंडों से स्वयं सन्तुष्ट होकर अपने वंशजों को जीवन, संतति, सम्पत्ति, विद्या, स्वर्ग, मोक्ष, सभी सुख एवं राज्य देते हैं। 

इसके अलावा गरूण पुराण के हवाले से श्री कृष्ण का वचन भी उद्धृत है। समयानुसार श्राद्ध करने से कुल में कोई दुःखी नहीं रहता। पितरों की पूजा से मनुष्य आयु, पुत्र, यश, कीर्ति, स्वर्ग, पुष्टि, बल, श्री, सुख-सौभाग्य और धन-धान्य को प्राप्त करता है । देव कार्य की तरह पितृकार्य का भी विशेष महत्व है। देवताओं से पहले पितरों को प्रसन्न करना अधिक कल्याणकारी है।

पितरों का श्राद्ध इस समय बिल्कुल न करें

श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है। मान्यताओं के मुताबिक, शाम का समय दैत्यों का माना जाता है। श्राद्ध कर्म कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए। जैसे अगर आप अपने किसी रिश्तेदार के घर हैं और श्राद्ध चल रहे हैं तो आपको वहां पर श्राद्ध करने से बचना चाहिए। अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध ही फलदायी होता है। हालांकि पुण्यतीर्थ या मंदिर या अन्य पवित्र स्थान दूसरे की भूमि नहीं माने जाते। अतः आप पवित्र स्थानों पर श्राद्ध कार्य कर सकते हैं। 

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)

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