माता दुर्गा भक्तों को सुख-शांति और समृद्धि देने वाली हैं। नवरात्रि के 9 दिनों में माता के नौ रूपों की पूजा करके भक्तों को ज्ञान और विवेक की प्राप्ति भी होती है। नवरात्रि के इन पावन दिनों में आज हम आपको एक ऐसी कहानी सुनाने जा रहे हैं, जिसके बारे में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं। इस कथा के अनुसार, एक बार जब देवता अपनी शक्ति के घमंड में आ गए थे तो माता ने उन्हें सबक सिखाया था।
यह कथा देवी महात्म्य से जुड़ी एक लोकप्रिय और पौराणिक कथा है। इस कथा में आप जानेंगे कि, कैसे माता दुर्गा ने अपनी असीमित शक्ति और ब्रह्मांड पर उनके नियंत्रण को दर्शाते हुए देवताओं के घमंड को चूर-चूर कर दिया था। आइए विस्तार से जानते हैं माता दुर्गा से जुड़ी इस कहानी के बारे में।
कथा
देवी महात्म्य में वर्णित है कि, एक समय जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ, तो देवी दुर्गा ने देवताओं की ओर से युद्ध में भाग लिया, माता जैसे ही मैदान में उतरीं तो असुरों में हाहाकार मच गया। माता ने सभी आसुरी शक्तियों का नाश कर दिया। अंत में देवताओं की विजय हो गई। इस विजय के बाद, देवताओं के अंदर एक प्रकार के गर्व और अहंकार की भावना जाग उठी। उन्हें यह घमंड हो गया कि, उनकी शक्ति से ही यह युद्ध जीता गया है। देवता यह समझने लगे कि वो ही संसार को नियंत्रित करने वाले हैं। उन्होंने ही सृजन किया है, वो ही पालन करते हैं और उनके द्वारा ही संहार किया जाता है।
माता ने किया देवताओं के अहंकार को चूर-चूर
माता दुर्गा को देवताओं का यह अहंकार देखकर अचंभा हुआ। इसके बाद माता को लगा कि, देवताओं को उनकी वास्तविक स्थिति का एहसास कराया जाना जरूरी है। देवी दुर्गा ने सोचा कि देवताओं को उनकी शक्तियों की सीमाओं का पता होना ही चाहिए। ऐसे में एक दिन देवी एक तेजपुंज के रूप में देवताओं के समक्ष प्रकट हुईं। उस तेजपुंज को देखकर देवता अचंभित हो गए। इंद्र ने तेजपुंज के बारे में जानने के लिए वायुदेव को भेजा। तेजपुंज के पास जाकर वायुदेव ने पुंज से उसका परिचय पूछा और साथ ही वायुदेव ने अहंकार में बताया कि, मैं अतिबलवान और प्राणस्वरूप हूं।
वायुदेव की यह बात सुनकर तेजपुंज रूपी माता ने वायुदेव के सामने एक तिनका रख दिया, और कहा कि, अगर तुम सचमुच बलवान हो तो इस तिनके को हिलाकर दिखाओ। वायुदेव ने अपनी पूरी शक्ति झोंक दी पर उस तिनके को नहीं हिला पाए। वायुदेव इंद्र के पास पहुंचे और सारी बात बताई। इसके बाद इंद्र ने अग्नि देव को उस तिनके को जलाने का आदेश दिया, लेकिन अग्नि देव भी हारकर वापस आ गए। यह देखकर इंद्र देव अचंभे में पड़ गए और तेजपुंज के पास जाकर उसकी उपासना करने लगे।
माता ने दिए दर्शन
अंत में पुंज से माता प्रकट हुईं। उन्होंने इंद्र को बताया कि सृष्टि के नियंता तुम नहीं हो और तुम्हें अपनी शक्तियों का अहंकार नहीं करना चाहिए। इस प्रकार, माता दुर्गा ने देवताओं का अहंकार नष्ट किया और उन्हें यह सिखाया कि हर शक्ति और शक्ति का स्रोत केवल माता दुर्गा या आदिशक्ति हैं। यह कथा अहंकार के विनाश और सत्य विनम्रता की शिक्षा देती है।
शिक्षा
यह कहानी हमें संदेश देती है कि, संसार में कोई भी शक्ति देवी दुर्गा की कृपा के बिना संभव नहीं है, और हमें कभी भी अपने किसी भी गुण या शक्ति पर अहंकार नहीं करना चाहिए। बल्कि इन गुणों और शक्तियों का इस्तेमाल हमको दूसरों की भलाई के लिए करना चाहिए।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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