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Bhisma Dwadashi 2024: कब है भीष्म द्वादशी? जानिए आखिर महाभारत से क्या है इस दिन का नाता

माघ माह की शुक्ल पक्ष की द्वादशी को प्रत्येक वर्ष भीष्म अष्टमी के चार दिन बाद भीष्म द्वादशी मनाई जाती है। इस बार भीष्म द्वादशी कब पड़ रही है, इसका महाभारत से क्या नाता है और यह दिन किसे समर्पित है? यह सब कुछ आज हम आपको धार्मिक मान्यता के अनुसार बताने जा रहे हैं।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: February 19, 2024 11:13 IST
Bhism Dwadashi 2024- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Bhism Dwadashi 2024

Bhisma Dwadashi 2024: हिंदू धर्म में माघ माह की द्वादशी तिथि को प्रत्येक वर्ष भीष्म द्वादशी का पर्व आता है। यह पर्व भीष्म अष्टमी से ठीक चार दिन बाद आता है। भीष्म द्वादशी का जुड़ाव महाभारत काल से बताया जाता है और यह दिन महाभारत के मुख्य पात्र भीष्म पितामह से जुड़ा हुआ है। आखिर क्यों भीष्म द्वादशी को महाभारत से जोड़ कर देखा जाता है और यह पर्व इस बार माघ माह में कब है? आइए जानते हैं हिंदू पंचांग के अनुसार। साथ ही जानेंगे इस दिन ऐसा क्या हुआ था कि इस पर्व का नाम भीष्म द्वादशी पड़ गया।

कब है भीष्म द्वादशी?

हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार माघ माह की भीष्म द्वादशी 20 फरवरी 2024 दिन मंगलवार को है। इस दिन एकादशी तिथि सुबह 9 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होने के बाद द्वादशी तिथि लग जाएगी और यह पूरे दिन रहेगी। द्वादशी तिथि 20 फरवरी को 9 बजकर 55 मिनट के बाद प्रारंभ होने के कारण भीष्म द्वादशी मंगलवार के दिन मान्य होगी।

महाभारत से क्या है भीष्म द्वादशी का नाता?

यह तो आप सभी जानते हैं कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को ज्ञान रूपी गीता बता कर महाभारत का युद्ध जिताया था। इसी महाभारत युद्ध के एक मुख्य पात्र भीष्म पितामह भी थे। यह भगवान कृष्ण के परम भक्त थे और इनको अपने पिता शांतनु से इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था। महाभारत युद्ध में उन्हें बाण लगने के कारण वह उसके  जाल में फंस कर शैय्या पर गिर पड़े और जीवन की अंतिम सांसे ले रहे थे। इस दौरान वह सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार कर रहे थे। क्योंकि श्री कृष्ण ने स्वयं गीता में कहा था कि जो प्राणी सूर्य के उत्तरायण के दौरान देह त्यागते हैं या जिनकी मृत्यु इस दौरान होती हैं उन्हें मोक्ष मिलता है। भीष्म पितामह ने भी ठीक उसी दिन को देह त्यागने के लिए चुना। जिस दिन उन्होंने देह त्यागा था मान्यता के अनुसार सूर्य उस समय उत्तरायण थे और वह माघ माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का दिन था। देह त्यागने के चार दिन बाद भीष्म पितामह को समर्पित उनके श्राद्ध कर्म का दिन भीष्म द्वादशी के रूप में पूजा जाने लगा।

भीष्म द्वादशी पर मिलता है पूर्वजों का आशीर्वाद

मान्यता के अनुसार माघ मास की शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को भीष्म पितामह का तर्पण और उनका श्राद्ध कर्म करने की परंपरा इस दिन से चलती चली आ रही है। माना जाता है कि भीष्ण द्वादशी के दिन पूर्वजों के प्रति पिंड दान करना, पूर्वजों का तर्पण करना और उनके निमित्त दान-पुण्य करने से पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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