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Vrishchik Sankranti 2022: आज वृश्चिक संक्रांति के दिन करें ये छोटा सा काम, तिजोरी भरते नहीं लगेगी देर

Vrishchik Sankranti 2022: वृश्चिक संक्रांति के दिन सूर्य देव की पूजा का विधान है। इससे व्यक्ति को सुख-समृद्धि के साथ मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।

Written By: Poonam Yadav @R154Poonam
Published on: November 16, 2022 10:07 IST
वृश्चिक संक्रांति - India TV Hindi
Image Source : FREEPIK वृश्चिक संक्रांति

हिंदू धर्म में सूर्य के किसी भी संक्रांति वाले दिन पुण्यकाल का बहुत महत्व होता है। मार्गशीर्ष माह की अष्टमी तिथि को सूर्य देव अपनी राशि परिवर्तन करने जा रहे हैं। हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं, तो उस दिन संक्रांति मनाई जाती है। साथ ही वो जिस राशि में प्रवेश करते हैं संक्रांति को उसी राशि के नाम से जाना जाता है। जैसी आज यानी 16 नवंबर को सूर्य तुला राशि से निकल कर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए आज इसे वृश्चिक संक्रांति के नाम से जाना जाएगा।

वृश्चिक संक्रांति महत्व

आज के दिन सूर्य देव की पूजा आराधना कर उन्हें अर्घ्य दिया जाता है। उसके बाद उनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है।वृश्चिक संक्रांति के दिन धन, कर्म और दान पुण्य का महत्व होता है। इसलिए इस दिन खाने-पीने की वस्तुएं और कपड़े दान करने का विशेष महत्व होता है। आज के दिन सूर्य चालीसा का पाठ करने से व्यक्ति की धन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं और सूर्य देव क्र विशेष फलों की प्राप्ति होती है। 

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वृश्चिक संक्रांति पर करें सूर्य चालीसा का पाठ

जय सविता जय जयति दिवाकर!।सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥

भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!।सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन।मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते।वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि।मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर।हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी।तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते।देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर।सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै।हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं।मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै।दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥
नमस्कार को चमत्कार यह।विधि हरिहर को कृपासार यह॥
सेवै भानु तुमहिं मन लाई।अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥
बारह नाम उच्चारन करते।सहस जनम के पातक टरते॥
उपाख्यान जो करते तवजन।रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥
धन सुत जुत परिवार बढ़तु है।प्रबल मोह को फंद कटतु है॥
अर्क शीश को रक्षा करते।रवि ललाट पर नित्य बिहरते॥
सूर्य नेत्र पर नित्य विराजत।कर्ण देस पर दिनकर छाजत॥
भानु नासिका वासकरहुनित।भास्कर करत सदा मुखको हित॥
ओंठ रहैं पर्जन्य हमारे।रसना बीच तीक्ष्ण बस प्यारे॥
कंठ सुवर्ण रेत की शोभा।तिग्म तेजसः कांधे लोभा॥
पूषां बाहू मित्र पीठहिं पर।त्वष्टा वरुण रहत सुउष्णकर॥
युगल हाथ पर रक्षा कारन।भानुमान उरसर्म सुउदरचन॥
बसत नाभि आदित्य मनोहर।कटिमंह, रहत मन मुदभर॥
जंघा गोपति सविता बासा।गुप्त दिवाकर करत हुलासा॥
विवस्वान पद की रखवारी।बाहर बसते नित तम हारी॥
सहस्रांशु सर्वांग सम्हारै।रक्षा कवच विचित्र विचारे॥
अस जोजन अपने मन माहीं।भय जगबीच करहुं तेहि नाहीं ॥
दद्रु कुष्ठ तेहिं कबहु न व्यापै।जोजन याको मन मंह जापै॥
अंधकार जग का जो हरता।नव प्रकाश से आनन्द भरता॥
ग्रह गन ग्रसि न मिटावत जाही।कोटि बार मैं प्रनवौं ताही॥
मंद सदृश सुत जग में जाके।धर्मराज सम अद्भुत बांके॥
धन्य-धन्य तुम दिनमनि देवा।किया करत सुरमुनि नर सेवा॥
भक्ति भावयुत पूर्ण नियम सों।दूर हटतसो भवके भ्रम सों॥
परम धन्य सों नर तनधारी।हैं प्रसन्न जेहि पर तम हारी॥
अरुण माघ महं सूर्य फाल्गुन।मधु वेदांग नाम रवि उदयन॥
भानु उदय बैसाख गिनावै।ज्येष्ठ इन्द्र आषाढ़ रवि गावै॥
यम भादों आश्विन हिमरेता।कातिक होत दिवाकर नेता॥
अगहन भिन्न विष्णु हैं पूसहिं।पुरुष नाम रवि हैं मलमासहिं॥

॥ दोहा ॥
भानु चालीसा प्रेम युत,गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध,होंहिं सदा कृतकृत्य॥

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। INDIA TV इसकी पुष्टि नहीं करता है।)

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