Tulsi Vivah 2023 Mukti Nath Dham: कार्तिक मास के सबसे बड़े और पवित्र त्योहारों में से आज का सबसे पावन त्योहार तुलसी विवाह का दिन है। आज माता तुलसी का भगवान विष्णु के शालिग्राम अवतार के साथ विवाह कराया जाएगा। वैष्णव संप्रदाय के देश भर के बड़े-बड़े मंदिरों में हर जगह आज तुलसी विवाह होगा। वहीं कुछ जगह कल भी तुलसी विवाह मनाया गया है।
भारत ही नहीं अपितु भारत देश के बाहर एक ऐसी जगह है जहां देवी तुलसी और भगवान शलिग्राम की कथा को मूल रूप मिलता है। माना जाता है कि भगवान विष्णु का शालिग्राम शिला अवतार वृंदा देवी के श्राप देने के कारण हुआ था। आज हम आपको तुलसी विवाह के विशेष दिन पर इस घटना से जुड़े सबसे बड़े पौराणिक स्थल के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां वृंदा जी ने भगवान विष्णु को पत्थर के बन जाने का श्राप दिया था।
जब भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण किया
भगवान विष्णु ने जगत कल्याण के लिए देवी वृंदा के पति दैत्य जालंधर का वध छल से किया था। इसके पीछे कारण ये था कि वृंदा पतिव्रता थीं और इस कारण उनके पति जालंधर का आतंक इतना बड़ गया था कि संपूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया था। देवता परेशान होकर भगवान विष्णु के पास पहुंचे और बताया कि जालंधर का वध करना अति आवश्यक है। लेकिन उसका वध करना इतना आसान नहीं है क्योंकि उसकी पत्नी के पतिव्रता होने की वजह से उसे कोई भी नहीं पराजित कर सकता। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को आश्वासन दिया और अपनी लीला से वृंदा के सामने उसके पति का रूप धारण कर उनके पास पहुंच गए। वृंदा विष्णु जी की लीला समझ न पाईं और अपने पति के रूप को समझ कर उनके चरण स्पर्श कर लिए। वृंदा के पैर छूते ही देवताओं से चल रहे जालंधर के युद्ध में उसका वध हो गया। वृंदा को जब इस बात का पता चला तो उसने पूछा की आप कौन हैं? तब भगवान विष्णु ने अपना असली रूप धारण किया।
तुलसी विवाह से जुड़ी पौराणिक घटना
भगवान विष्णु ने जैसे ही अपना रूप धारण किया वृंदा ने रूठे मन से कहा है प्रभु मैने सदैव आपकी भक्ति की है। फिर भी आपने मेरे साथ इतना बड़ा छल किया है। जाइए में आपको श्राप देती हूं कि आप पत्थर के बन जाएं। भगवान विष्णु ने अपनी परम भक्त वृंदा का मान रखा और पत्थर के बन गए। जब लक्ष्मी जी को यह बात पता चली तो वह वृंदा के पास आईं और उनसे विनती की। है, देवी आप मेरे पति को क्षमा कर कृप्या अपना श्राप वापस ले लीजिए नहीं तो सृष्टि का संचालन रुक जाएगा। इस पर देवी वृंदा ने अपना श्राप वापस लिया और अपने पति के व्योग में उन्होनें अपना शरीर त्याग दिया और सती हो गईं। सती होने पर उनके पंच तत्व शरीर से राख प्रकट हुई और उसमे से एक वृक्ष निकला। उस वृक्ष को भगवान विष्णु ने तुलसी का नाम दिया और यह वरदान दिया कि संपूर्ण जगत में मैरे शालिग्राम व्रिगह के साथ देवी तुलसी अर्धांगनी के रूप में पूजी जाएंगी। जिस घर में मैरे शालिग्राम विग्रह की पूजा देवी तुलसी जी से होगी वहां सदैव संपन्नता होगी और उस घर में सदैव के लिए सुख-समृद्धि का वास होगा।
वृंदा के श्राप से मुक्त होने क बाद इसक जगह का नाम पड़ा मुक्तिनाथ क्षेत्र
देवी वृंदा ने जिस जगह भगवान विष्णु को मां लक्ष्मी के कहने पर श्राप से मुक्त किया था। वह जगह वर्तमान समय में भगवान विष्णु के प्रमुख तीर्थस्थलों में से सबसे बड़ा तीर्थ स्थल कहलाता है। यह तीर्थस्थल नेपाल देश के लोअर मुस्तांग क्षेत्र में पड़ने वाली काली गंडकी नदी के पास स्थित मुक्तिनाथ धाम नाम से है। देवी वृंदा का श्राप लक्ष्मी जी के आग्रह करने पर वापस लेन के कारण ये स्थान मुक्तिनाथ क्षेत्र कहलाया। यह घटना जिस जगह हुई वहां आज मुक्तिनाथ धाम मंदिर है। भारत के वैष्णव संप्रदाय के सभी लोग और विष्णु भक्त लाखों की संख्या में इस तीर्थस्थान पर दर्शन करने जाते हैं। हिमालय की चोटी के बीचों-बीच बसा यह मुक्तिनाथ क्षेत्र अति पावन तीर्थस्थान है। यहां हिमालय पर्वत और कैलाश की चोटी के मार्ग से निकलने वालि पवित्र तीर्थ निदियों के 108 जलधारा श्रोत हैं। जो भी भक्त यहां दर्शन करने आते हैं ऐसी मान्यता है कि इन 108 जलधारा श्रोतों में जो भी स्नान करने के बाद समीप में बने दोनों कुंडों में स्नान कर के भगवान शालिग्राम के दर्शन करता है। फिर उन्हें जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति मिल जाती है। यहां कहा जाता है कि जिस तरह नर्मदा नीद के तट पर नर्मदेश्वर शिवलिंग मिलते हैं। उसी तरह मुक्ती नाथ क्षेत्र के काली गंडकी नदी में शालिग्राम शिलाएं मिलती हैं। यहां तुलसी जी के भी छोटे-छोट वृक्ष हैं। मंदिर के अंदर शालिग्राम भगवान का जो विग्रह है वह स्वयंभु हैं अर्थात वो वहां स्वयंम प्रकट हुए हैं।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
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