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भारत में ग्रहण के दौरान सभी मंदिर हो जाते हैं बंद सिर्फ इन 3 मंदिरों को छोड़कर, जानें आखिर क्या है वजह?

ग्रहण के दौरान सभी मंदिर को बंद कर दिया जाता है।लेकिन कुछ ऐसे भी मंदिर हैं जो ग्रहण और सूतक काल में भी खुले रहते हैं।ऐसा क्यों होता है चलिए हम आपको बताते हैं.

Written By: Poonam Yadav @R154Poonam
Published : Oct 26, 2023 20:02 IST, Updated : Oct 26, 2023 20:05 IST
These temples are not closed during lunar eclipse
Image Source : FILE PHOTO These temples are not closed during lunar eclipse

शनिवार 28 अक्टूबर 2023 को शरद पूर्णिमा के दिन साल का अंतिम और चौथा चंद्र ग्रहण लगने वाला है। इस चंद्र ग्रहण को भारत के कुछ इलाकों में देखा जा सकता है। धार्मिक ग्रंथो में ग्रहण लगने की घटना को अशुभ माना गया है। इस दौरान पूजा पाठ भी नहीं किया जाता। ग्रहण के नियम सूतक काल से ही शुरू हो जाते हैं। चंद्र ग्रहण में 9 घंटे पहले सूतक लग जाता है। ऐसे में सूतक काल से ही पूजा पाठ नहीं किया जाता और मंदिर के कपाट बंद हो जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में ऐसे 3 अमंदिर हैं जो ग्रहण के दौरान बंद नहीं होते हैं।वे मंदिर कौन से हैं इसके पीछे क्या कारण हैं चलिए हम आपको बताते हैं।

विष्मुपद मंदिर

ग्रहण के दौरान बिहार के गया का विष्णुपद मंदिर बंद नहीं किया जाता। इस मंदिर पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता। इसलिए सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण में भी इस मंदिर के कपाट खुले रहते हैं। ग्रहण के दिन मंदिर की मान्यता काफी बढ़ जाती है। क्योंकि ग्रहण के दौरान यहां पिंडदान किए जाते हैं। ऐसा करना शुभ माना जाता है।

महाकाल मंदिर

अपनी भव्यता के लिए मशहूर उज्जैन का महाकाल मंदिर भी ग्रहण के दौरान खुला रहता है। ग्रहण काल में मंदिर के दर्शन करने पर भक्तों को किसी तरह की मनाही नहीं होती और ना ही मंदिर के पट बंद किए जाते हैं। हालांकि पूजा-पाठ और आरती के समय में अंतर होता है। ग्रहण लगते ही आरती का समय बदल जाता है।

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लक्ष्मीनाथ मंदिर

प्राचीन लक्ष्मीनाथ मंदिर का पट भी सूतक काल में खुला रहता है। दरअसल इससे जुड़ी एक कथा है, इसके अनुसार एक बार सूतक लगने पर पुजारी ने लक्ष्मीनाथ मंदिर के पट बंद कर दिए। उस दिन भगवान की पूजा नहीं हुई और ना ही उन्हें भोग लगाया गया। उसी रात एक बालक मंदिर के सामने वाली हलवाई की दुकान पर गया और उसने कहा कि इसे भूख लगी है। उसने हलवाई को एक पाजेब देकर प्रसाद मांगा। हलवाई ने भी उसे प्रसाद दे दिया। अगले दिन मंदिर से पाजेब गायब होने की बात फैल गई। तब हलवाई ने पुजारी को पूरी बात बताई। दरअसल जिस बालक को भूख लगी थी वह और कोई नहीं बल्कि स्वयं लक्ष्मीनाथ महाराज थे। इस घटना के बाद से ही ग्रहण के सूतक में इस मंदिर के पट नहीं बद होते। बल्कि यहां आरती होती है और भगवान को भोग लगाया जाता है। केवल ग्रहण काल में मंदिर के पट बंद किए जाते हैं।

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