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Shiv Nandi Katha: शिव जी के साथ इसलिए विराजित हैं नंदी, जानें ये पौराणिक कथा

Shiv Nandi Katha: नंदी शिवजी के सबसे बड़े भक्त हैं। उन्हें शक्ति और भक्ति का प्रतीक कहा जाता है। शिवजी के साथ नंदी की पूजा का भी महत्व है। इसलिए शिवजी के साथ नंदी की प्रतिमा भी घर मंदिर में विराजित होती है।

Edited By: Sushma Kumari @ISushmaPandey
Published on: October 30, 2022 20:03 IST
Shiv Nandi Katha- India TV Hindi
Image Source : SOURCED Shiv Nandi Katha

Shiv Nandi Katha: भगवान शिव के सभी मंदिरों में आपने देखा होगा कि शिवजी के साथ ही नंदी की प्रतिमा भी स्थापित होती है। शिवजी के सामने नंदी विराजित होते हैं। भक्त को शिवजी के दर्शन करने से पहले नंदी के दर्शन करने पड़ते हैं। नंदी शिवजी की सवारी है, इतना ही नहीं उन्हें शिवजी का सबसे बड़ा भक्त भी कहा जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि शक्ति और भक्ति का प्रतीक नंदी आखिर कैसे बने शिव जी की सवारी और क्यों शिवजी के सभी मंदिरों में विराजित होते हैं नंदी। दरअसल इससे पौराणिक कथा जुड़ी हुई है। जानते हैं शिव नंदी की कथा के बारे में।

शिव नंदी की पौराणिक कथा

शिव पुराण से जुड़ी कथा के अनुसार, शिलाद नामक मुनि हमेशा तप और योग में लीन रहते थे। जिस कारण वे अपने गृहस्थ जीवन को समय नहीं दे पाते थे। शिलाद मुनि के योग और तप में व्यस्त रहने और ब्रह्माचारी होने के कारण उनका वंश समाप्ति की ओर था। ये सब देख उनके पितरों की चिंता बढ़ गई। तब शिलाद मुनि ने संतान की कामना के लिए देवराज इंद्र को अपने तप से प्रसन्न किया। शिलाद मुनि ने इंद्र देव से ऐसे संतान का वरदान मांगा जोकि जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो। लेकिन इंद्र देव ऐसा वरदान देने में असमर्थ थे। उन्होंने शिलाद मुनि को भगवान शिव से वरदान मांगने को कहा। शिलाद मुनि ने फिर कठोर तपस्या की और भगवान शिव को प्रसन्न किया।

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शिलाद मुनि की तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनके स्वयं पुत्र के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। शिवजी नंदी के रूप में प्रकट हुए। इसके बाद शिवजी ने माता पार्वती की सम्मति से संपूर्ण गणों और वेदों के समक्ष गणों के अधिपति के रूप में नंदी का अभिषेक कराया। इस तरह के नंदी नंदीश्वर बन गए और शिवजी के वरदान से नंदी जन्म के बाद मृत्यु से मुक्त और अजर-अमर हो गए। शिवजी ने नंदी को यह भी वरदान दिया कि जहां उनका निवास होगा वहां नंदी का भी निवास होगा। इसलिए शिवजी के सभी मंदिरों या शिवालयों में नंदी की स्थापना की जाती है।

 
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नंदी के समर्पण से प्रसन्न हुए थे महादेव

शिवजी और नदी से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकला था। संपूर्ण संसार की रक्षा के लिए शिवजी ने स्वयं इसे पी लिया। लेकिन विषपान करते समय कुछ बूंदे धरती पर गिर गई थी, जिसे नंदी ने चाट लिया। नंदी का ये प्रेम और समर्पण देख भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्होंने नंदी को अपने सबसे बड़े भक्त की उपाधि दी। इस तरह नंदी भगवान शिव की सवारी के साथ ही उनके सबसे बड़े भक्त भी कहलाते हैं।

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