Sawan 2023: हिंदू पंचांग के अनुसार 4 जुलाई 2023 को सावन की शुरुआत होगी और 18 जुलाई को मलमास शुरू होगा, जो 16 अगस्त तक रहेगा। वही श्रावण मास 31 अगस्त को समाप्त होगा। बताया जा रहा है कि ऐसा संयोग 19 साल बाद यानी करीब दो दशक बाद बन रहा है। यूं तो यूं तो पूरा सावन शिवजी को समर्पित होता है लेकिन सावन के महीने में सोमवार का काफी महत्व माना जाता है क्योंकि सावन का महीना और सोमवार दोनों ही भगवान शिव को समर्पित हैं और सावन सोमवार का व्रत करने से व्यक्ति पर भगवान शिव की कृपा बनी रहती है।
मान्यता है कि सावन सोमवार का व्रत करने, भगवान शिव की पूजा करने और शिवलिंग का अभिषेक करने से जीवन में अपार सुख-संपत्ति, मान-सम्मान आदि की प्राप्ति होती है। अविवाहित लड़कियां मनचाहा वर पाने के लिए सावन सोमवार का व्रत रखती हैं। सावन सोमवार का व्रत और पूजा करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
वहीं शिवजी की पूजा करते वक्त शिव चालीसा और शिवजी की आरती का खास महत्व होता है। कहा जाता है कि शिव चालीसा का पाठ करने से भगवान शिव भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं साथ ही आपके जीवन में तरक्की के नए रास्ते खुलते हैं। तो चलिए जानते हैं सावन माह के दौरान शिव चालीसा का पाठ कैसे करें ताकि आपको पूजा का पूर्ण फल मिलें।
शिव चालीसा का पाठ कैसे करें?
शिव चालीसा का पाठ करने से पहले आपको कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी है। जिस दिन शिव चालीसा का पाठ करना हो उस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर पूर्व दिशा में अपना मुख कर बैठ जाएं। पाठ शुरू करने से पहले घी का दीपक जलाएं। उसके बाद तांबे के लोटे में साफ जल भरकर उसमें गंगाजल मिला लें। इस बात का ध्यान रखें कि शिव चालीसा का पाठ शुरू करने से पहले श्री गणेश का श्लोक का जाप करें, इसके बाद शिव चालीसा का पाठ शुरू करें।
सावन 2023 के सोमवार की तिथियां
- सावन का पहला सोमवार - 10 जुलाई
- सावन का दूसरा सोमवार - 17 जुलाई
- सावन का तीसरा सोमवार - 24 जुलाई
- सावन का चौथा सोमवार - 31 जुलाई
- सावन का पांचवा सोमवार - 07 अगस्त
- सावन का छठा सोमवार - 14 अगस्त
- सावन का सातवां सोमवार - 21 अगस्त
- सावन का आठवां सोमवार - 28 अगस्त
सावन में पढ़ें शिव चालीसा का पाठ
॥ दोहा ॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान ।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ॥
॥ चौपाई ॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला ।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला ॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ॥
अंग गौर शिर गंग बहाये ।
मुण्डमाल तन क्षार लगाए ॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे ।
छवि को देखि नाग मन मोहे ॥
मैना मातु की हवे दुलारी ।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी ॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी ।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी ॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे ।
सागर मध्य कमल हैं जैसे ॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ ।
या छवि को कहि जात न काऊ ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा ।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा ॥
किया उपद्रव तारक भारी ।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ॥
तुरत षडानन आप पठायउ ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ ॥
आप जलंधर असुर संहारा ।
सुयश तुम्हार विदित संसारा ॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई ।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई ॥
किया तपहिं भागीरथ भारी ।
पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं ।
सेवक स्तुति करत सदाहीं ॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई ॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला ।
जरत सुरासुर भए विहाला ॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई ।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई ॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा ।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥
सहस कमल में हो रहे धारी ।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी ॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई ।
कमल नयन पूजन चहं सोई ॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर ।
भए प्रसन्न दिए इच्छित वर ॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी ।
करत कृपा सब के घटवासी ॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै ॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो ।
येहि अवसर मोहि आन उबारो ॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो ।
संकट से मोहि आन उबारो ॥
मात-पिता भ्राता सब होई ।
संकट में पूछत नहिं कोई ॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी ।
आय हरहु मम संकट भारी ॥
धन निर्धन को देत सदा हीं ।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं ॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी ।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ॥
शंकर हो संकट के नाशन ।
मंगल कारण विघ्न विनाशन ॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं ।
शारद नारद शीश नवावैं ॥
नमो नमो जय नमः शिवाय ।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ॥
जो यह पाठ करे मन लाई ।
ता पर होत है शम्भु सहाई ॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी ।
पाठ करे सो पावन हारी ॥
पुत्र हीन कर इच्छा जोई ।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे ।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा ।
ताके तन नहीं रहै कलेशा ॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे ।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ॥
जन्म जन्म के पाप नसावे ।
अन्त धाम शिवपुर में पावे ॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी ।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी ॥
॥ दोहा ॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा ।
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान ।
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
डिस्क्लेमर - ये आर्टिकल जन सामान्य सूचनाओं और लोकोक्तियों पर आधारित है। इंडिया टीवी इसकी सत्यता की पुष्टि नहीं करता।
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