Highlights
- समुद्र मंथन से रत्न के रूप में मां लक्ष्मी भी निकली थीं
- कामधेनु गाय भी समुद्र मंथन से निकली थी
- ऐरावत हाथी समुद्र मंथन से निकला था
समुद्र मंथन और उससे जुड़ीं कहानियां हमेशा से ही सभी को आकर्षित करती हैं। कहा जाता है कि यह रोचक घटना बिहार के बांका में घटित हुई थी। बांका के मंदार पर्वत के पास पापहारिणी तालाब समुद्र मंथन का गवाह बना था। विष्णु पुराण से समुद्र मंथन के बारे में जानकारी मिलती है। दरअसल, महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण स्वर्गलोक धन, वैभव और ऐश्वर्य विहीन हो गया था। इस विकट परिस्थिति में स्वर्गलोक के सभी देवता परेशान हो गए और वे समाधान खोजते-खोजते भगवान विष्णु के पास गए। भगवान विष्णु ने उपाय सुझाया। उनका मत था कि असुरों के साथ देवताओं को समुद्र मंथन करना चाहिए। इससे अमृत निकलेगा, जिसे सभी देवता ग्रहण करके फिर से अमर हो जाएंगे। असुरों, वासुकि नाग और मंदार पर्वत की सहायता से देवताओं ने समुद्र मंथन किया। इसके परिणामस्वरूप 14 रत्न प्राप्त हुए। सभी 14 रत्नों से जीवन में बहुत कुछ सीखा जा सकता है। ऐसा मत है कि इन्हीं सीख को अपनाकर देवता पुनः देव गुणों से सम्पन्न हुए।
14 रत्नों के महत्वपूर्ण रहस्य ये हैं-
कालकूट विष रत्न
समुद्र मंथन में सबसे पहले यही रत्न निकला, इसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था। इस रत्न का राज यह है कि मन को मथने पर सबसे बुरे विचार पहले निकलते हैं। हमें कभी भी बुराइयों को मन के अंदर उतरने नहीं देना चाहिए। बल्कि उनका त्याग करना चाहिए।
कामधेनु रत्न
इस रत्न को ऋषि ने अपने पास रखा। इसका राज यह है कि जब मन से बुरे विचार निकल जाते हैं, तब हमारा मन कामधेनु की तरह पवित्र हो जाता है।
उच्चैश्रवा घोड़ा रत्न
कहा जाता है कि यह घोड़ा मन की गति के समान चलता था। इस रत्न को राजा बलि ने अपने पास रखा था। इस रत्न का राज यह है कि जब भी मन भटकता है, बुराइयों से लैस हो जाता है।
ऐरावत हाथी रत्न
इस रत्न को भगवान इंद्र ने अपने पास रखा। इसका राज यह है कि जब मन बुराइयों से दूर होगा तब ही बुद्धि शुद्ध होगी। उजाले सी चमकेगी।
कौस्तुभ मणि रत्न
इस रत्न को भगवान विष्णु ने हृदय पर धारण किया। इसका राज यह है कि जब हमारे मन से बुरे विचार निकल जाते हैं, बुद्धि शुद्ध हो जाती है तब मन में भक्ति का सूत्रपात होता है।
कल्पवृक्ष रत्न
इस रत्न को देवताओं ने स्वर्ग में लगाया था। इस वृक्ष को इच्छा पूर्ति करने वाला वृक्ष भी माना जाता है। इस रत्न का राज यह है कि भक्ति के समय अथवा मन के मंथन के दौरान अपनी सम्पूर्ण इच्छाओं को दूर रखना चाहिए।
अप्सरा रंभा रत्न
यह रत्न देवता के पास रहा था। यह कामवासना और स्वार्थ का पर्याय है। इसका राज यह है कि हमें भक्ति के दौरान लालच नहीं करना चाहिए।
देवी लक्ष्मी रत्न
इस रत्न को देवता, ऋषि और दानव सभी अपने पास रखना चाहते थे। किंतु लक्ष्मी जी ने भगवान विष्णु के पास रहना स्वीकार किया। जिसका अर्थ यह है कि धन उन लोगों के पास जाता है, जो कर्म करना जानते हैं।
वारुणी देवी रत्न
वारुणी का अर्थ मदिरा होता है। इसको दानवों ने ग्रहण किया था। इसका राज यह है कि नशा करने वाला बुराई से दब जाता है।
चंद्रमा रत्न
इसे भगवान शंकर ने मस्तक पर धारण किया था। इसका सार है कि जब हमारा मन सभी बुराइयों से मुक्त हो जाता है, तब हमें शांति महसूस होती है।
पारिजात वृक्ष रत्न
इसे सभी देवताओं ने ग्रहण किया, क्योंकि इसे स्पर्श करते ही थकान दूर हो जाती थी। इसका राज यह है कि जब मन में शांति आ जाती है, तब शरीर की थकान भी दूर हो जाती है।
पांचजन्य शंख रत्न
भगवान विष्णु ने इसे अपने पास रखा। इसका राज यह है कि थकान दूर होने के बाद मन भक्ति में लीन हो जाता है।
भगवान धन्वंतरि एवं अमृत कलश रत्न
दरअसल अंत में 13वें रत्न के रूप में भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए। उनके हाथ में 14वें रत्न के रूप में अमृत कलश था। भगवना धन्वंतरि ने सभी देवताओं को अमृत का सेवन कराया और श्राप से मुक्ति दिलाई। इसका राज यह है कि बुराइयों को दूर करके जब हम भक्ति में लीन हो जाते हैं, तब भगवान का आशीर्वाद मिलना तय हो जाता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। INDIA TV इसकी पुष्टि नहीं करता है।)
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