Rangbhari Ekadashi 2024: फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन से काशी में होली का पर्वकाल आरंभ हो जाता है। रंगभरी एकादशी के दिन श्री काशी विश्वनाथ श्रृंगार दिवस मनाया जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक काशी विश्वनाथ मंदिर में इस दिन बाबा विश्वनाथ और पूरे शिव परिवार यानि माता पार्वती, श्री गणपति भगवान और कार्तिकेय जी का विशेष रूप से साज-श्रृंगार किया जाता है। इसके अलावा भगवान को हल्दी, तेल चढ़ाने की रस्म निभाई जाती है और भगवान के चरणों में अबीर-गुलाल चढ़ाया जाता है। साथ ही शाम के समय भगवान की रजत मूर्ति, यानि चांदी की मूर्ति को पालकी में बिठाकर बड़े ही भव्य तरीके से रथयात्रा निकाली जाती है।
रंगभरी एकादशीशुभ मुहूर्त
- एकादशी तिथि आरंभ- 20 मार्च को रात 12 बजकर 21 मिनट से
- एकादशी तिथि का समापन- 21 मार्च को सुबह 02 बजकर 22 मिनट पर
- रंगभरी एकादशी तिथि- 20 मार्च 2024
रंगभरी एकादशी के दिन शिव-पार्वती की पूजा का महत्व
रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। लेकिन रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव और माता गौरी की उपासना का भी विशेष महत्व है। रंगभरी एकादशी के दिन काशी (बनारस) में खास रौनक देखने को मिलती है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशीके दिन ही भोलेनाथ मां गौरी का गौना कराकर काशी लेकर आए थे। तब महादेव और माता पार्वती के आने की खुशी में सभी देवता-गणों ने दीप-आरती के साथ फूल, गुलाल और अबीर उड़ाकर उनका स्वागत किया था। कहते हैं कि तब से काशी में इस तिथि के दिन शिवजी और पार्वती जी की पूजा के साथ उनके साथ होली खेलनी की परंपरा शुरू हुई और इसे रंगभरी एकादशी के नाम से जाने जाना लगा।
कहा जाता है कि रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव माता पार्वती के साथ काशी आते हैं और देवी मां को नगर भ्रमण कराते हैं। धार्मिक मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दिन जो भी लोग महादेव और मां गौरी की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में मधुरता आती और विवाहित महिलाओं के अखंड सौभाग्यवती का आशीर्वाद मिलता है।
आमलकी एकादशी
रंगभरी एकादशी के आमलकी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विष्णु जी की उपासना का विधान है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की वजह से ही इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)
ये भी पढ़ें-