Tuesday, November 05, 2024
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Ramayan: भगवान राम से क्यों भेष बदलकर मिले थे बजरंगबली? जानिए पहली बार कब और कहां हुआ था मिलना

जब भगवान राम और हनुमान जी का पहली बार मिलना हुआ था तो हनुमान जी ने अपना भेष बदल लिया था। आखिर हनुमान जी ने ऐसा क्यों किया था और कहां हुई थी श्रीराम और हनुमान जी की एक दूसरे से भेट, आइए जानते हैं रामचरितमानस के अनुसार।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: January 16, 2024 13:03 IST
Ramayan- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Ramayan

Ramayan: भगवान राम का वनवास बहुत दुःखदायी रहा। मां सीता के हरण के बाद भगवान राम अपने भाई लक्ष्मण के साथ उनकी खोज में वनों में भटकते रहे। तब पक्षिराज जटायू ने उन्हें बताया कि रावण ने मां सीता का हरण कर लिया है। मुझे क्षमा करिएगा भगवन मैं उन्हें रावण से मुक्त कराने में असफल रहा। तब भगवान ने जटायू को प्रेम पूर्वक कहा इसमें आपका कोई दोष नहीं है। आपने अपने प्राण की पर्वाह न करते हुए जो कार्य मेरे प्रति किया है उसके लिए मां आपका ऋणि रहूंगा।

जटायू रावण के प्रहार से लहूलुहान हो चुके थे और उन्होंने भगवान राम की गोद में अपने प्राण त्याग कर मोक्ष को प्राप्त किया था। इसके बाद श्रीराम किष्किंधा की ओर बढ़ते चले गए और जब वह किष्किंधा राज्य में पहुंचे तो वहां उनका मिलना हनुमान जी से पहली बार हुआ था। आइए जानते हैं कैसे हुआ था श्रीराम से हनुमान जी का पहली बार मिलना और क्यों बदला था हनुमान जी ने अपना भेष।

यहां हुआ था भगवान राम से हनुमान जी का पहली बार मिलना

अति सभीत कह सुनु हनुमाना। पुरुष जुगल बल रूप निधाना।

धरि बटु रूप देखु तैं जाई। कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई॥

पठए बालि होहिं मन मैला। भागौं तुरत तजौं यह सैला॥
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ। माथ नाइ पूछत अस भयऊ॥

रामचरितमानस के अनुसार जब भगवान राम किष्किंधा राज्य के ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तो सुग्रीव को भगवान राम और लक्ष्मण जी के बल रूप को देख कर भय हुआ। उन्होंने हनुमान जी को उनके पास भेजा और कहां आप ब्राह्मण रूप धर कर ही जाइएगा। हनुमान आप यहा पता लगाएं कि यह दोनों यहां क्या कर रहे हैं। अगर आपको लगे कि यह बलि के भेजे हुए लोग हैं, तो मुझे सूचना दे दीजिएगा मैं तुरंत यह पर्वत छोड़कर भाग जाऊंगा।

को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा। छत्री रूप फिरहु बन बीरा।
कठिन भूमि कोमल पद गामी। कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी॥

 सुग्रीव के इतना कहते ही हनुमान जी ने ब्राह्मण रूप धरा और भगवान राम से पहली बार उनका मिलना हुआ। हनुमान जी भगवान राम को पहचान न सके और उनसे कहां आप वन में कहां विचरण कर रहे हैं मुझे आप क्षत्रिय कुल से लगते हैं। 

कोसलेस दसरथ के जाए, हम पितु बचन मानि बन आए।
नाम राम लछिमन दौउ भाई, संग नारि सुकुमारि सुहाई॥

 इहां हरी निसिचर बैदेही। बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही।
आपन चरित कहा हम गाई। कहहु बिप्र निज कथा बुझाई॥

तब भगवान राम ने अपना परिचय हनुमान जी को देते हुए कहा। हम कोसलराज महाराज दशरथ जी के पुत्र राम और यह मेरे प्रिय भाई लक्ष्मण हैं। यहां वन में एक राक्षस ने मेरी पत्नी सीता को हर लिया है। हम उन्हीं की खोज में यहां आए हुए हैं।

प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना। सो सुख उमा जाइ नहिं बरना।
पुलकित तन मुख आव न बचना। देखत रुचिर बेष कै रचना॥

जैसे ही हनुमान जी ने राम नाम सुना उनकी आंख भर आई और अपने असली रूप में आते ही प्रभु राम के चरणों से लिपट कर कहने लगे प्रभु में आपको पहचान न सका मुझे क्षमा करिएगा।

इस प्रकार हनुमान जी का भगवान राम से पहली बार किष्किंधा के ऋष्यमूक पर्वत पर मिलना हुआ था। इन सारी बातों को रामचरितमान के किष्किंधाकांड में बताया गया है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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