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कौन थी वो राक्षसी जिसे मां सीता की पहरेदारी में किया गया था तैनात, सपने में देखा था उसने रावण का विनाश

वाल्मिकी रामायण में स्वप्न शास्त्र का जिक्र किया गया है और इसी से जुड़ी एक घटना आज हम आपको बताने जा रहे हैं। जब रावण के द्वारा मां सीता जी की पहरेदारी में एक रक्षसी को नियुक्त किया गया था। उस दौरान उसने रावण समेत लंका के विनाश से जुड़े सपने में क्या-क्या देखा आइए जानते हैं।

Written By: Aditya Mehrotra
Updated on: January 06, 2024 16:13 IST
Ramayan- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV Ramayan

Ramayan: रामायण के ऐसे कई अनसुने प्रसंग है जो बहुत कम लोग ही जानते हैं। आज हम आपको ऐसे ही एक प्रसंग के बारे में बताने जा रहे हैं। दरअसल मां सीता के हरण के बाद वह लंका की अशोक वाटिका में दिन रात अपने रघुनाथ श्री राम के वियोग में दुःख-संताप में एक-एक पल काटती थीं। रावण की लंका में अशोक वाटिका में उनकी पहरेदारी में रावण ने त्रिजटा नाम की राक्षसी को तैनात किया हुआ था। जो थी तो एक राक्षसी परंतु उसमें विवेक के साथ ही साथ मानव गुण भी थे।

त्रिजटा जन्म से असुरी थी लेकिन उसमें अपने पिता विभीषण के कुछ गुण राम भक्ति के भी थे और वह मां सीता के दुःख को समझती थी। त्रिजटा वहां की सारी राक्षसियों में से सबसे बूढ़ी थी। एक बार जब वह सोकर उठी तो उसने वहां रहने वाली राक्षसनियों से कहा कि अब रावण और इस लंका का अंत होने वाला है। मैंने सपने में ऐसा देखा है। कहीं न कहीं यह स्वप्न शास्त्र की ओर भी ईशारा करता है। आइए जानते हैं त्रिजटा ने अपने सपने के बारे में क्या बताया।

वाल्मिकी रामायण के सुंदरकांड के 27वें सर्ग में त्रिजटा के सपने का वर्णन

त्रिजटा विभीषण की पुत्री थी जो मां सीता की पहरेदारी में रावण द्वारा नियुक्त की गई थी। वह नींद में एक सपना देखती है जिसे वह अन्य निशाचरियों को बताती है कि मैंने एक बड़ा भयानक सपना देखा है। जो राक्षसों का विनाश और श्री राम के जीत की सूचना देने वाला है।

स्वप्नो ह्यद्य मया दृष्टो दारुणो रोमहर्षणः।

राक्षसानामभावाय भर्तुरस्या भवाय च।।

त्रिजटा ने बताया कि उसने एक दिव्य पुष्पक विमान से श्री राम, मां जानकी और लक्ष्मण जी को उत्तर दिशा की ओर जाते हुए देखा है। फिर त्रिजटा कहती है मैने रावण को भी सपने में देखा वह मूड़ मुड़ाये हुए तेल से नहाया हुआ करवीर के फूलों की माला पहना हुआ था और वह पुष्पक विमान से जमीन पर गिरा पड़ा हुआ था। फिर मैंने उसे गधे पर सवार हुए दक्षिण दिशा की ओर जाते हुए देखा। इसी के साथ मैंने कुंभकर्ण को भी इसी हालत में देखा। लेकिन विभीषण एक ऐसे हैं जिनको मैंने शुभ अवस्था में साफ वस्त्र पहने हुए देखा। मैंने लंका को समुद्र में डूबे देखा और इसके प्रेवेश द्वार टूटे हुए थे। मैंने सपने में यह भी देखा की राम के एक दूत जो वानर रूप में थे उन्होंने लंका को जलाकर भस्म कर दिया है। 

प्रणिपातप्रसन्ना हि मैथिली जनकात्मजा।
अलमेषा परित्रातुं राक्षस्यो महतो भयात्।।

ऐसा सनुकर सब निशाचरनियां भय से कांप उठी तभी त्रिजटा ने कहां यदि तुम प्रायश्चित करना चाहती हो तो मां जानकी की शरण में आकर उनसे क्षमा मांग लो और उन्हें प्रणाम करो वह तुम्हें मांफ कर देंगी और घोर कष्ट से मुक्त कराएंगी।

अर्थसिद्धिं तु वैदेह्याः पश्याम्यहमुपस्थिताम्।
राक्षसेन्द्रविनाशं च विजयं राघवस्य च।।

आगे त्रिजटा लंका की उन सभी पहरेदारी निशाचरियों से कहती हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि मां जानकी के सभी मनोरथ अब पूर्ण होते दिखाई दे रहे हैं। अब रावण का विनाश और श्री राम की परम विजय निश्चित है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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