Pitru Paksha 2022 : इस बार पितृ पक्ष का प्रारंभ 10 सितंबर से होगा। वहीं पितृ का विसर्जन 25 सितंबर को है। भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष में पंद्रह दिनों का पितृ पक्ष मनाया जाता है। बता दें पितृ पक्ष के दिन अपने पूर्वजों की मृत्युतिथि पर श्राद्ध किया जाता है। इस दिन श्राद्ध करने से पिंडदान सीधे पितरों तक पहुंचता है। साथ ही आपको पितरों का आर्शीवाद मिलता है उनकी कृपा आप पर बनी रहती है।
पितृ पक्ष के दिनों में लोग अपने पितरों को याद कर उनके नाम पर उनका पिंडदान (Pind Daan), तर्पण (Tarpan) करते हैं। कहा जाता है पितृ के दौरान यमराज भी पितरों की आत्मा को मुक्त कर देते हैं, ताकि वे धरती पर अपने वंशजों के बीच रहकर अन्न और जल ग्रहण कर सकें। पिंडदान तो सब करते हैं,लेकिन बिहार के गया में पिंडदान करने का अलग महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि गया में पिंडदान करने से 108 कुल और 7 पीढ़ियों का उद्धार होता है और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है।
राजा दशरथ का पिंडदान
गरुण पुराण के अनुसार भगवान राम और माता सीता ने भी यहां राजा दशरथ का पिंडदान किया था। गरुण पुराण में उल्लेखित एक कथा के अनुसार भगवान राम माता सीता और लक्ष्मण जी के साथ पिता राजा दशरथ का पिंडदान करने के लिए अयोध्या आए थे। वह पिंडदान की सामाग्री एकत्रित करने के लिए चले गए और सीता जी फल्गु नदी के किनारे बैठकर उनके आने का इंतजार कर रही थी। लेकिन तभी राजा दशरथ जी की आत्मा ने पिंडदान करने की मांग की। ऐसे में सीता जी ने फल्गु नदी के साथ वटवृक्ष, केतकी के फूल और गाय को साक्षी मानकर बालू का पिंड बनाकर पिंडदान कर दिया था।
मोक्ष की प्राप्ति
मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से मृत आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। साथ ही उसकी आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्वयं भगवान विष्णु यहां पर जल के रूप में विराजमान हैं। गरुण पुराण में भी गया में पिंडदान का विशेष महत्व बताया गया है।
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