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Parshwanath Jayanti: कल है पार्श्वनाथ जयंती, जानें उनसे जुड़ी रोचक और मज़ेदार कहानियां

Parshwanath Jayanti: कल जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की जयंती है। कहा जाता है कि वाराणसी के सम्मेद पर्वत पर लगभग 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

Written By : Acharya Indu Prakash Edited By : Poonam Yadav Updated on: December 17, 2022 19:06 IST
Parshwanath Jayanti- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM Parshwanath Jayanti

कल यानी 18 दिसंबर को जैन धर्म के 23 वें तीर्थंकर भगवान श्री पार्श्वनाथ जी की जयंती है। माना जाता है कि- इनकी माता वामा देवी ने गर्भकाल के दौरान स्वप्न में सर्प देखा था और जन्म के पश्चात इनके शरीर पर सर्पचिन्ह होने की वजह से इनका नाम पार्श्व रखा गया। पार्श्वनाथ जी तीसवर्ष की आयु में ही गृह त्याग कर संन्यासी हो गए और जैनेश्वरी दीक्षा ली। 

सम्मेद पर्वत पर की कठोर तपस्या

कहा जाता है कि वाराणसी के सम्मेद पर्वत पर लगभग 83 दिन तक कठोर तपस्या करने के बाद उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के पश्चात 70 वर्षों तक श्री पार्श्वनाथ जी ने लोगों को चातुर्याम यानि सत्य, अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रहकी शिक्षा दी और अपने मत एवं विचारों का प्रचार-प्रसार किया।

इन 10 रूपों में लिया था जन्म

जैन धर्मग्रंथो के अनुसार तीर्थंकर बनने से पूर्वपार्श्वपनाथ जी को नौजन्म लेने पड़े थे। माना जाता है कि-पहले जन्म में ब्राह्मण, दूसरे में हाथी, तीसरे में स्वर्ग के देवता, चौथे में राजा, पाँचवें में देव, छठवें जन्म में चक्रवर्ती सम्राट और सातवें जन्म में देवता, आठवें में राजा और नौवें जन्म में स्वर्ग का राजा,तत्पश्चात दसवें जन्म में उन्हें तीर्थंकर बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

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श्री पार्श्वनाथ जी के प्रमुख चिह्न- सर्प, चैत्यवृक्ष-धव, यक्ष- मातंग, यक्षिणी-कुष्माडी है। पार्श्वनाथ ने चतुर्विध संघ की स्थापना की, जिसमे मुनि, आर्यिका, श्रावक, श्राविका होते है और आज भी जैन समाज इसी स्वरुप में है। प्रत्येक गण एक गणधर के अन्तर्गत कार्य करता था। सभी अनुयायियों, स्त्री हो या पुरुष सभी को समान माना जाता था। भगवान पार्श्वनाथ की लोकव्यापकता का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि आज भी सभी तीर्थंकरों की मूर्तियों और चिह्नों में पार्श्वनाथ का चिह्न सबसे ज्यादा है। आज भी पार्श्वनाथ की कई चमत्कारिक मूर्तियाँ देश भर में विराजित है। उनकी मूर्ति के दर्शन मात्र से ही जीवन में शांति का अहसास होता है। ऐसा माना जाता है कि महात्मा बुद्ध के अधिकांश पूर्वज भी पार्श्वनाथ धर्म के अनुयायी थे। ऐसे तीर्थंकर को शत्-शत् नमन।

(आचार्य इंदु प्रकाश देश के जाने-माने ज्योतिषी हैं, जिन्हें वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र और ज्योतिष शास्त्र का लंबा अनुभव है। इंडिया टीवी पर आप इन्हें हर सुबह 7.30 बजे भविष्यवाणी में देखते हैं।)

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