नवरात्रि के दौरान भक्त माता दुर्गा के नौ रूपों की विधि-विधान से पूजा करते हैं। पहले दिन माता के रूप शैलपुत्री की पूजा के साथ नवरात्रि की शुरुआत होती है और नवरात्रि के अंतिम दिन सिद्धिदात्री रूप की पूजा के साथ नवरात्रि समाप्त होती है। मान्यताओं के अनुसार, माता के नौ रूप स्त्री के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक की अवस्थाओं का प्रतीक हैं। आज हम आपको इसी विषय में विस्तार से जानकारी देंगे।
शैलपुत्री
माता शैलपुत्री स्त्री के बाल रूप का प्रतीक मानी गयी हैं। जैसे शैलपुत्री अपने पिता 'शैल' यानि पर्वतराज हिमालय के नाम से जानी जाती हैं वैसे ही बाल रूप में स्त्री भी अपने पिता के नाम से जानी जाती है। अर्थात माता का ये रूप नवजात बालिका का प्रतीक है।
ब्रह्मचारिणी
माता का दूसरा रूप है ब्रह्मचारिणी, पुत्री के ब्रह्मचर्य काल को दर्शाता है साथ ही इसी दौरान बालिका शिक्षा अर्जित करती है और अपने ज्ञान में वृद्धि करती है। यानि माता का यह रूप शिक्षा अर्जित करने वाली बालिका का प्रतीक है।
चंद्रघंटा
माता का यह स्वरूप शिक्षित और ज्ञान से परिपूर्ण स्त्री या बालिका का प्रतीक है। माता के इस रूप की दस भुजाएं दर्शाती हैं की स्त्री अब अपने ज्ञान से समाज में स्थिरता और विकास के लिए तैयार है।
कुंष्मांडा
माता दुर्गा का चौथा रूप कुष्मांडा माता का है। इस रूप में माता के हाथ में एक घड़ा होता है जिसे गर्भ का प्रतीक माना जाता है। यानि माता का ये रूप गर्भवती महिला का प्रतीक है।
स्कंदमाता
यह स्वरूप महिला के मातृ स्वरूप को दर्शाता है। स्कंदमाता की गोद में एक शिशु को दर्शाती कई तस्वीरों को आपने देखा होगा।
कात्यायनी
जैसे माता कात्यायनी ने महिषासुर का वध किया था, वैसे ही माता का यह रूप स्त्री के उस स्वरूप को दर्शाता है जिसमें माता बनी स्त्री सभी बुराइयों को अपने बच्चे से दूर रखती है और अवगुणों को उसके अंदर घर नहीं करने देती।
कालरात्रि
माता के इस रूप को अत्यंत उग्र और शक्तिशाली माना जाता है। यह रूप स्त्री के पारिवारिक जीवन में आ रहे संघर्षों पर विजय का प्रतीक माना गया है।
महागौरी
माता का यह रूप स्त्री की परिपक्वता और स्थिरता को दर्शाता है। जीवन के सभी संघर्षों पर विजय पाकर स्त्री संपन्नता की ओर अपने परिवार को ले जाती है। इसलिए नवरात्रि में अष्टमी की पूजा का बड़ा महत्व है। अष्टमी की पूजा करने से घर में संपन्नता आती है।
सिद्धिदात्री
माता का यह रूप स्त्री के वृद्ध और ज्ञानमय स्वरूप का प्रतीक है। अपने अनुभव और समझदारी से स्त्री इस रूप में अपने परिवार के साथ ही समाज का भी कल्याण करती है और नई पीढ़ियों को अच्छे गुण देकर जाती है।
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इंडिया टीवी इस बारे में किसी तरह की कोई पुष्टि नहीं करता है। इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है।)
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