Highlights
- नागवासुकि मंदिर है विशेष
- काल सर्प दोष से दिलाता है मुक्ति
Nagvasuki Temple for Kaal Sarp Dosh: आज नागपंचमी का त्योहार है, आज के दिन भोलेनाथ के भक्त भगवान की विशेष पूजा करते हैं, वहीं नागदेव की पूजा करके अपनी कुंडली के दोष भी दूर करते हैं। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो दुनिया में सबसे अनोखे मंदिर के रूप में जाना जाता है, क्योंकि यहां के दर्शन मात्र से पाप का नाश होता है और कालसर्प के दोष (Kalsarp Dosh) से भी मुक्ति मिलती है।
प्रयागराज में है ये अनोखा मंदिर
आज नागपंचमी के दिन प्रयागराज में दारागंज (Daraganj) में स्थित नागवासुकि मंदिर (Nagvasuki Temple) का महत्व विशेषरूप से बढ़ जाता है। सावन माह और नागपंचमी पर मंदिर में भक्तों की लाइन लगी रहती है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान मंदिर में विग्रह के दर्शन मात्र से पाप का नाश होता है। वहीं, कालसर्प के दोष (Kalsarp Dosh) से भी मुक्ति मिलती है।
साल में एक दिन देश भर से जाते हैं भक्त
अक्सर प्रसिद्ध मंदिरों में साल भर भक्तों की भीड़ होती है। लेकिन इस मामले में यह मंदिर अलग है। क्योंकि वैसे तो साल भर इस मंदिर में सन्नाटा पसरा रहता है, लेकिन सावन का महीना आते ही यहां दर्शनार्थी आने लगते हैं। वहीं नागपंचमी के दिन तो मंदिर में भक्तों का जमघट लग जाता है। प्रयागराज में इस मौके पर, नागपंचमी का मेला भी लगता है। इसकी परंपरा महाराष्ट्र के पैष्ण तीर्थ से जुड़ती है, जो नासिक की तरह गोदावरी के तट पर स्थित है।
नागवासुकी मंदिर के केंद्र में
इस प्रसिद्ध नागवासुकि मंदिर की कई खास बातें हैं, बता दें कि यह विश्व का इकलौता मंदिर है, जिसमें नागवासुकि की आदमकद की प्रतिमा है। मंदिर के पूर्व-द्वार की देहली पर शंख बजाते हुए दो कीचक बने हैं, जिनके बीच में लक्ष्मी के प्रतीक कमल दो हाथियों के साथ बने हैं। देश में ऐसे मंदिर अपवाद रूप में ही मिलेंगे, जिसमें नाग देवता को ही केंद्र में प्रतिष्ठित किया गया हो। इस दृष्टि से नागवासुकि मंदिर असाधारण महत्ता रखता है। इसलिए धर्म के साथ वास्तुकला के लिए भी यह मंदिर प्रसिद्ध है। इसकी कलात्मकता लोगों को आकर्षित करती है।
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पुरातन काल का है मंदिर
माना जाता है कि यह मंदिर कई सदियों से यहां स्थित है। लेकिन यह मंदिर कब बना और कितनी बार बना, इसे लेकर कोई लिखित प्रमाणित जानकारी नहीं है। बताया जाता है कि मराठा शासक श्रीधर भोंसले ने वर्तमान मंदिर का निर्माण कराया। वहीं, कुछ लोग इसे बनाने का श्रेय राघोवा को देते हैं। जिस प्रकार असम के गुवाहाटी में नवग्रह-मंदिर ब्रह्मपुत्र के उत्तर तट पर स्थित है, वैसे ही प्रयागराज में नागवासुकि मंदिर भी गंगा के तट पर स्थित है।
आर्यसमाज के लोगों के लिए विशेष महत्व
इस मंदिर को मानने वालों में आर्यसमाज के अनुयायी भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। इसकी वजह यह है कि स्वामी दयानंद सरस्वती ने इस मंदिर की सीढ़ियों पर कई रातें काटी थीं। यह तब की बात है कि जब आर्यसमाज की स्थापना के दौरान वह कड़ाके की ठंड में कुंभ मेले में पहुंचे थे।
कालसर्प दोष से मिलती है मुक्ति
ऐसी मान्यता है कि प्रयागराज के नागवासुकि मंदिर (Nagvasuki temple) में कालसर्प दोष का शमन करने की शक्ति है। माना जाता है कि इस मंदिर में विशेष पूजा करने से कालसर्प दोष और व्यक्ति के जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। इस मंदिर के अलावा त्र्यबंकेश्वर, उज्जैन, हरिद्वार और वाराणसी में भी कालसर्प दोष निवारण की विशेष पूजा होती है।