हिंदू धर्म में साधु का काफी पवित्र माना गया। उनसे भी ज्यादा पवित्र नागा साधुओं को माना जाता है। महाकुंभ में नागा साधुओं की टोली ने सभी का दिल जीत लिया है। महाकुंभ प्रयागराज का पहला अमृत स्नान हो चुका है। पहले अमृत स्नान में 13 अखाड़ों ने अमृत स्नान किया है। साथ ही 3.5 करोड़ लोगों ने भी पवित्र डुबकी लगाई है। अब दूसरे अमृत स्नान की बारी है जो 29 जनवरी को होनी है। इस महाकुंभ में 12 हजार संतों को नागा साधु बनने की परीक्षा देनी है।
कैसे बनते हैं नागा?
दूसरे अमृत स्नान में भी पहला अमृत स्नान नागा साधुओं का ही होगा। लेकिन इससे पहले 27 जनवरी को अखाड़ों में अनुष्ठान की शुरुआत होगी, जिसमें पहले दिन आधी रात को विशेष पूजा होगी। इस पूजा में दीक्षा लेने वाले संतों को गुरुओं के सामने लाया जाएगा। संन्यासी आधी रात गंगा में 108 डुबकी लगाएंगे और स्नान के बाद उनकी आधी शिखा काट दी जाएगी। इसके बाद उन्हें तपस्या के लिए वन भेज दिया जाएगा और फिर जब संत अपना शिविर छोड़ देंगे तो उन्हें मनाकर वापस बुलाया जाएगा।
तीसरे दिन वे नागा बनने के लिए तैयार संत नागा भेष में लौटेंगे और उन्हें अखाड़े के महामंडलेश्वर के सामने जाना होगा। गुरु के हाथ में पर्चा होगा, जिससे यह तय होगा कि संत नागा बन सकता है या नहीं। इसके बाद गुरु तड़के 4 बजे उनकी पूरी शिखा काट देंगे और जब 29 जनवरी को मौनी अमावस्या स्नान के लिए जाएंगे तो उन्हें भी अन्य नागा के साथ स्नान के लिए भेजा जाएगा और फिर वे नागा साधु के रूप में स्वीकार किए जाएंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि इन नागाओं की पहचान क्या होती है तो आइए जानते हैं।
स्थान के मुताबिक दीक्षा लेने वाले नागाओं की होती है पहचान
महाकुंभ में स्थान के मुताबिक दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं की पहचान होती है, जो उनके करीबी भी जानते हैं। यानी कि अखाड़ों को पता चलता है कि यह कौन से नागा है। जैसे उज्जैन में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को खूनी नागा कहा जाता है, हरिद्वार में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को बर्फानी और नासिक में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं का खिचड़िया जबकि प्रयागराज में दीक्षा लेने वाले नागा साधुओं को राजराजेश्वरी कहा जाता है।