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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में शाही स्नान का क्या महत्व है? नोट कर लीजिए शाही स्नान की सभी तारीखें

Mahakumbh 2025: महाकुंभ के दौरान शाही स्नान के दिन स्नान करने का विशेष महत्व है। शाही स्नान के दिन कुंभ मेला में लाखों-करोड़ों की संख्या में तीर्थयात्री जुटते हैं। तो आइए जानते हैं कि महाकुंभ में शाही स्नान का इतना महत्व क्यों है।

Written By: Vineeta Mandal
Published : Jan 11, 2025 11:47 IST, Updated : Jan 11, 2025 11:56 IST
महाकुंभ 2025
Image Source : FILE IMAGE महाकुंभ 2025

Kumbh Mela 2025: 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ मेला शुरू होने वाला है। कुंभ के दौरान श्रद्धालु त्रिवेणी संगम में पावन डुबकी लगाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि महाकुंभ में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप मिट जाते हैं और पुण्यकारी फलों की प्राप्ति होती है। कहते हैं कि महाकुंभ के दौरान अगर प्रयागराज में व्यक्ति तीन दिन भी नियमपूर्वक स्नान कर लेता है तो उसे एक सहस्र अश्वमेघ यज्ञों को करने के बराबर पुण्य प्राप्त हो जाता है। कुंभ महापर्व के दौरान कभी भी स्नान-दान कर पुण्य फल पा सकते हैं लेकिन शाही स्नान के दिन संगम में डुबकी लगाने से  विशेष फलों की प्राप्ति होती है। तो आइए जानते हैं कि महाकुंभ का पहला शाही कब किया जाएगा और इसका क्या धार्मिक महत्व है।

महाकुंभ में शाही स्नान का क्या महत्व है? 

शाही स्नान यानि वह स्नान जिसको करने से मन की अशुद्धियां भी दूर हो जाती है। 14 जनवरी 2025 को महाकुंभ का पहला शाही स्नान किया जाएगा। शाही स्नान के दौरान सबसे पहले नागा साधु स्नान करते हैं। इसके बाद ही आम जनता स्नान कर सकती है। शाही स्नान के दिन संगम में स्नान करने से कई गुना अधिक पुण्यकारी फलों की प्राप्ति होती है। इतना ही नहीं शाही स्नान के दिन स्नान करने से जातक को इस जन्म के साथ ही पिछले जन्म के पापों से भी मुक्ति मिलती है। महाकुंभ में शाही स्नान के दिन स्नान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है।

महाकुंभ 2025 शाही स्नान की तिथियां

  • पहला शाही स्नान- 14 जनवरी 2025, मकर संक्रांति
  • दूसरा शाही स्नान- 29 जनवरी 2025, मौनी अमावस्या
  • तीसरा शाही स्नान- 3 फरवरी 2025, सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी

महाकुंभ मेला

बता दें कि महाकुंभ पूरे 12 वर्षों बाद लगता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत से भरा कुंभ यानी कलश बाहर आया था तब देवताओं और राक्षस के बीच बारह दिन तक भयंकर युद्ध हुआ था। युद्ध के दौरान देवताओं के संकेत पर इंद्र देव के पुत्र जयंत अमृत से भरा कलश लेकर बड़े ही तीव्र गति से भागने लगे तब दैत्यगण जयंत का पीछा करने लगे। इस युद्ध के दौरान जिन-जिन स्थानों पर कलश से अमृत की बूंदें गिरी थी, वे स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक है।  जहां-जहां अमृत की बूंदे गिरी वहां-वहां कुंभ मेला का आयोजन किया जाता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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