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Mahakumbh: समुद्र मंथन से जुड़ा है महाकुंभ, अमृत के साथ निकले थे ये अमूल्य रत्न

Mahakumbh 2025: आस्था का महापर्व महाकुंभ का आगाज हो चुका है, मंगलवार को नागा साधु व संतों ने पहला अमृत स्नान किया। ऐसे में आइए जानते हैं महाकुंभ से जुड़ी एक रोचक कथा...

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 14, 2025 12:52 pm IST, Updated : Jan 14, 2025 12:52 pm IST
Mahakumbh 2025- India TV Hindi
Image Source : INDIA TV महाकुंभ

Kumbh Mela 2025: कई युगों से मान्यता चलती आ रही है कि गंगाजल अमृत तुल्य है क्योंकि इसमें वहीं अमृत की बूंदे मिली हुईं हैं जो समुंद्र मंथन के दौरान निकली थी। जी हम उसी मंथन की बात कर रहे हैं, जिसे देवता और असुरों ने मिलकर किया था, लेकिन असुरों ने जब अमृत के लिए झगड़ना शुरू कर दिया तो वह किसी को नहीं को मिल सका। इसी संघर्ष के दौरान अमृत कलश से कुछ बूंदें धरती पर गिर गई थीं, जिससे ही महाकुंभ की शुरुआत हुई।

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4 जगहों पर क्यों लगता है कुंभ

अमृत की 4 बूंदें धरती के 4 जगहों पर गिरी, जिनमें एक हरिद्वार, प्रयागराज, नाशिक और उज्जैन हैं। इसी के कारण महाकुंभ देश में मात्र इन्हीं 4 जगहों पर लगते हैं। कहा जाता है कि एक बार देवराज इंद्र का अहंकार हो गया था, इसी अहंकार में आकर उन्होंने महर्षि दुर्वासा का अनादर कर दिया, जिसके बाद दुर्वासा ऋषि नाराज हो गए और देवराज इंद्र का श्रीहीन होने का श्राप दे दिया, जिससे देवताओं का एश्वर्य, धन-वैभव, समृद्धि जैसे शुभ कार्य सब खत्म हो गए। दुखी होकर सभी भगवान नारायण के पास गए। तो भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन करने को कहा। साथ ही असुरों की मदद लेने को भी कहा।

इसके बाद देवताओं जैसे-तैसे असुरों को मनाया और फिर भगवान विष्णु ने वासुकी नाग को मथनी (रस्सी ) बनने को कहा। साथ वे स्वयं कछुए का रूप लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखा। फिर सुमुद्र मंथन शुरू हुआ। कहा जाता है कि ये समुद्र मंथन कई युगों तक चला। विष्णु पुराण के मुताबिक समुद्र मंथन में कुल 14 रत्न निकले।

कौन-कौन से थे वे रत्न?

  • पहला- कालकूट विष, जिसे भगवान शिव ने ग्रहण किया और तभी से उनका नाम नीलकंठ पड़ा।
  • दूसरा-   कामधेनु गाय, कहा जाता है कि इसे ऋषियों को दे दिया गया था। 
  • तीसरा- उच्चैश्रवा घोड़ा, यह मन की गति से दौड़ता था, इसे असुरों के राजा बलि ने रखा था।
  • चौथा- ऐरावत हाथी, इसे देवराज इंद्र ने रखा था।
  • पांचवां- कौस्तुभ मणि, इसे भगवान विष्णु ने स्वयं धारण किया था।
  • छठवां- कल्पवृक्ष, इसे भी देवताओं ने स्वर्ग में लगा दिया था। 
  • सातवां- अप्सरा रंभा को भी देवताओं ने स्वर्ग में रखा था।
  • आठवां - समस्त ऐश्वर्यों की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी, देवी लक्ष्मी का वरण भगवान विष्णु ने किया था।
  • नौवां - वारुणी देवी, वारुणी यानी मदिरा, इसे दानवों ने अपने पास रखा था।
  • दसवां- बाल चन्द्रमा, इसे शिव जी ने अपने मस्तक पर स्थान दिया था।
  • ग्यारहवाँ- परिजात वृक्ष, इसे भी देवताओं ने रख लिया था, कहा जाता है कि इसे छूने मात्र से शरीर की थकान दूर हो जाती है। 
  • बारहवां- पांचजन्य शंख, इसे भगवान विष्णु ने अपने पास रखा था।
  • तेरहवां और चौदहवां- धनवन्तरि धनवन्तरि के हाथों में शोभायमान अमृत से भरा कुम्भ यानी कलश निकला था, जिसे देवताओं ने ग्रहण किया था।
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