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Mahakumbh 2025: महाकुंभ में स्नान के बाद करना चाहिए इन मंदिरों के दर्शन, वरना अधूरी मानी जाएगी तीर्थयात्रा

Mahakumbh 2025: सभी तीर्थों में प्रयागराज को सबसे बड़ा तीर्थ माना गया है, ऐसे में 12 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हो रहा है, यहां दूर-दूर से लोग महाकुंभ स्नान करने आएंगे।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Jan 11, 2025 7:00 IST, Updated : Jan 11, 2025 7:52 IST
Mahakumbh 2025
Image Source : INDIA TV प्रयागराज के प्रसिद्ध मंदिर

Kumbh Mela 2025: महाकुंभ 2025 का पहला शाही स्नान 14 जनवरी को है, लेकिन महाकुंभ का आयोजन 13 जनवरी से ही हो रहा है। ऐसे में लाखों-करोड़ों लोग अपने आस्था की डुबकी लगाने संगम पहुंचेंगे। महांकुभ 26 फरवरी को अपने अंतिम शाही स्नान के साथ खत्म होगा। ऐसे में लोगों को यह जानना बेहद जरूरी है कि उन्हें स्नान के बाद कहां-कहां के मंदिरों के दर्शन करने बेहद अनिवार्य हैं वरना उनकी तीर्थयात्रा अधूरी मानी जाएगी। आइए जानते हैं वो कौन-कौन-सी मंदिरें हैं...

लेटे हुए हनुमान जी मंदिर

पौराणिक काल से बजरंग बली का नाम चमत्कारों से जुड़ा हुआ है। हमारे देश में हनुमान जी के जगह-जगह चमत्कारी मंदिर हैं इन्हीं में से एक मंदिर हैं लेटे हुए हनुमान जी। आपने अब तक देश के कोने-कोने में हनुमान जी की प्रतिमा खड़ी ही पाई होगी, पर ये इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी लेटे हुए हैं। इस प्रतिमा की लंबाई करीब 20 फीट बताई जताई है। कहा जाता है कि संगम स्नान के बाद इनके दर्शन बेहद जरूरी है, अगर इनके दर्शन नहीं किए तो आपका आना व्यर्थ माना जाएगा। ऐसा माना जाता है कि लंका से जब बजरंगबली लौट रहे थे तो उन्होंने यहीं विश्राम किया था।

नाग वासुकी मंदिर

प्रयागराज में संगम तट के उत्तर दिशा में प्राचीन नाग वासुकी विराजमान है। पौराणिक कथाओं की मानें तो समुद्र मंथन के बाद देवताओं और असुरों ने नाग वासुकी को सुमेरु पर्वत रस्सी जैसा लपेटा था, जिसे कारण नागवासुकी घायल हो गए थे और फिर भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयागराज में इसी जगह आराम करने को कहा था। इसी वजह से इसे नागवासुकी मंदिर कहा जाता है। माना जाता है कि प्रयागराज आने वाले तीर्थयात्रियों की यात्रा तब तक अधूरी रहती है जब तक इनके दर्शन न कर लें।

अलोपी मंदिर

आप तो जानते ही होंगे कि मां दुर्गा के कई रूप हैं, जिनके दर्शन के लिए शक्तिपीठ मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। देवी के इन्हीं मंदिरों में एक पीठ संगम नगरी में मौजूद हैं, यहां मां दुर्गा की मूर्ति रूप में पूजा नहीं होती बल्कि यहां एक चुनरी में लिपटे एक पालने की पूजा होती है। यहां मां दुर्गा को अलोपशंकरी देवी के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि मां सती के दाहिने हाथ का पंजा यहा गिरा था, जो विलुप्त हो गया था, इस कारण इस मंदिर का नाम अलोप शंकरी पड़ा। स्नान के बाद यहां जरूर जाना चाहिए।

अक्षयवट मंदिर

प्रयागराज में ही एक काफी पुराना अक्षय वट (बरगद का पेड़) मौजूद है, जिसे देखने दूर-दराज से लोग आते हैं। महाकुंभ आए श्रद्धालुओं को इस जगह जरूर जाना चाहिए। पुराणों की मानें तो प्रलय के समय जब पूरी पृथ्वी डूब जाती है तो वट का एक वृक्ष बच जाता है, वही अक्षयवट कहलाता है। पातालपुरी में स्थित वट वृक्ष को कई सौ साल पुराना बताया जाता है।

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं। इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। इंडिया टीवी एक भी बात की सत्यता का प्रमाण नहीं देता है।)

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